अगर पुद्गल में ज्ञान हो तो हर परमाणु अलग अलग है, तो हर परमाणु में स्पर्श, रस आदि के साथ ज्ञान भी होगा। और अब प्रश्न है कि उसमें वेदना होगी कि नहीं। और वो मुक्त होगा कि संसारी। अब जैसे जीव जन्म लेता और वॄद्ध होता है और फ़िर देह परिवर्तन करता है, ऐसा तो कोई परिणमन पुद्गल परमाणु में दिखाई नहीं देता।
पुनर्जन्म में आत्मा शरीर को छोङकर दूसरे शरीर में जाती है। मगर यहा तो पुद्गल में ज्ञान भी है और स्पर्श आदि भी। वो खुद में ही शरीर है और खुद में ही आत्मा। तो यहां तो छॊङने का सवाल ही नहीं उठता।
इसलिये पुद्गल संसारी तो नहीं हो सकता - क्योंकि वहां जन्म मरण का चक्र न्याय संगत नहीं है। इसलिये मुक्त होना चाहिये।
अगर मुक्त है। तो मानलो एक लकङी है, और उसे जला दिया और पुद्गल का परिणमन हो गया। ऐसे में उसे वेदना नहीं होनी चाहिये क्योंकि वह मुक्त है। ऐसा लगता है कि उसमें वेदना नाम का गुण, या सुख और दुख का अनुभवन ही नहीं है।
और अगर ऐसा नहीं तो मात्र ज्ञान ही होना चाहिये। मगर ज्ञान ही होना चाहिये। मगर ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं जो ये सिद्ध करे कि पुद्गल में ज्ञान की शक्ति है। तो उसे ज्ञानवान बनने का कोई औचित्य (न्यायसंगतता) ही नहीं बैठता।
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