Tuesday, June 16, 2020

धन के बारे में हमारी सोच

👉🏻’यह मेरा है’ यह समझकर उसे बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उसके लिये हिंसा भी करनी पङती है, झूठ भी बोलना पङता है.. मानसिक तनाव भी होता है.. उससे पाप कमाता है, और कुगतियों में जाता है।
👉उसकी रक्षा में लगा रहता है। चिन्ता करता है। ’कोई चुरा ना ले’- ऐसे भयभीत रहता है। अगर नुकसान हो जाये तो  शोक करता है।
👉’इसको मैने कमाया’ - ऐसा अहंकार करता है। मान करता है। उसके अधिकार के लिये परिवार जनो से झगङा करता है।अपने नियंत्रण में रखना चाह्ता है।
👉धन आने पर विषय भोग में लीन हो जाता है। गुणी जनो के प्रति इसका आदर कम हो जाता है। जितना धन बङता जाता है, इसकी तॄष्णा बङती जाती है।
👉अपने धन को नित्य मानता है। जैसे वह हमेशा इसके साथ रहेगा। मगर पाप का उदय आता है, तो बङे बङे भण्डार भी नष्ट हो जाते हैं, और पुण्य का उदय आता  है तो खाली भण्डार भी एकदम भर जाते हैं।
👉उसे शरण रूप मानता है। कि मुसीबत में काम आयेगा ही। मगर यह नहीं जानता कि तीव्र पाप का उदय हो रखा हुआ धन भी काम नहीं आता, और तीव्र पुण्य का उदय हो तो बिना धन के भी काम हो जाते हैं।
👉’मैने अनन्त बार राजा होकर, सेठ होकर, अरब पति आदि होकर खूब पैसा कमा कमा के छोङ चुका हूं’ इस सत्य को समझकर उससे विरक्त नहीं होता।
👉धन के आधार पर अपने को अपने मित्रो से तुलना करता है। ईर्ष्या करता है।
👉भगवान की पूजा तो बहुत करता है। मगर जैसे वो धन से रहित हैं, ऐसे मैं भी धन रहित हो जाऊं - ऐसी भावना नहीं भाता।
👉जीवन में धन की आवश्यकता जरूर है। लेकिन कितना जरूरी है, और कहां यह हमें नुकसान देता है - यह समझ विकसित करनी जरूरी है।

Saturday, June 13, 2020

संसार मार्ग और मोक्ष मार्ग क्या?

*संसार मार्ग क्या?*
जीव सुख प्राप्त करना चाहता है। मगर गलत समझ से गलत रस्ते पर चलता है। सुख मिलने के बजाय अपने दुखो को बढाने वाले आठ कर्मो को इकट्ठा करता रहता है। यह संसार मार्ग है।

*मोक्षमार्ग क्या?*
सही समझ से, सही रास्ते पर चलकर आठो कर्मो को नाश करते चले जाना मोक्ष मार्ग है।

*गलत रास्ता क्या है?*:
वस्तुओं में इष्ट अनिष्ट कल्पना करना और उससे राग-द्वेष करना और उससे हिंसादि, पंचेन्द्रिय पाप करना।

*गलत समझ:*
ये राग,द्वेष मेरे स्वभाव हैं। अजीव को अपना मानकर - उसमें अच्छा बुरा की कल्पना करना। मोक्ष को अपना लक्ष्य नहीं मानना।

*सही समझ:*
मैं जीव हूं। राग-द्वेष त्याज्य हैं।  मोक्षा ग्रहण करने योग्य है।

*सही रास्ता:*
सम, शम। (सम का मतलब समता, शम का मतलब इन्द्रिय का शमन)

Monday, June 8, 2020

6 Mantras for a solid meditation


  • Do not run away from anything.
  • Do not want to change anything
  • Do not want to achieve anything. 
  • Be at ease with everything. Accept it. 
  • Do not label things as right or wrong. 
  • Change your 'some relationship' to 'no relationship' with everything around

Thursday, June 4, 2020

कैसी भक्ति है मेरी?

दो कैदी थे। २५ साल की सजा थी। जेलर आया और उसने उनके हाल चाल पूछे। पहले कैदी ने कहा कि सब बढिया है बस पानी थोङा खराब है और उसके लिये अच्छे पानी की व्यवस्था कर दी जाये। दूसरे कैदी ने कहा कि उसे जेल में नहीं रहना। और पूछा कि मुझे तरीका बताओ कि मैं कैसे अपनी सजा को कम कर सकता हूं। अब आप ही सोचिये कि कौन सा कैदी जल्दी से जेल से मुक्त होगा?

ऐसी ही भक्त भी दो प्रकार के होते हैं। एक को कुछ कष्ट परेशान करते रहते हैं, और प्रभु के पास जाकर भी वो ही ध्यान आता है।  कहता है कि - हे प्रभु मेरे को ये समस्या खत्म हो जाय, और वो चीज मिल जाये। सही बात है - जो दिमाग में चलता है वही भगवान के पास भी ध्यान आ ही जाता है।

मगर एक दूसरा भक्त है - उसकी समझ विस्तृत है। उसे अपनी अवस्था अनादि से संसार में भटकता हुई समझ में आ चुकी है। द्रव्यकर्म और भावकर्म का चक्र उसे एक चक्रवात के तूफ़ान की तरह दिखाई दे रहा है। आठ कर्म और विषयों की इच्छा उसे भयंकर रोग दिखाई दे रही है। और पूरी दुनिया में एक मोक्ष अवस्था ही सुखदायी दिखाई देती है। अब बताइये ऐसा भक्त जब प्रभु का नाम लेगा तो उसके परिणाम में गजब की शुद्धता क्यों नहीं बनेगी। अब उसकी प्रार्थना का फ़ल चमत्कारिक क्यों नहीं होगा?

संसार से भय होना, मोक्ष की रूचि होना बहुत दुर्लभ है। और वह सच्ची भक्ति का कारण है। इसलिये सच्ची भक्ति भी बहुत दुर्लभ है।

Wednesday, June 3, 2020

हे प्रभु! क्या मुझे मोक्ष प्राप्त हो पायेगा?

अनादि से कर्म बन्धन में हूं। ऐसा कर्म बन्धन जिसमें अनन्त काल बीत गया। ऐसा अनन्त जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसे किसी संख्या में ना बांधा जा सके। क्या ऐसे कर्म बन्धन का मैं नाश कर पाऊंगा? क्या इस मोहनीय को मैं जीत पाऊंगा?

द्रव्यकर्म और भावकर्म के चक्रवात में अनादि से घूमता हुआ, क्या मैं विश्राम प्राप्त कर पाऊंगा? जो अनादि से नहीं कर पाया, वो क्या अब कर पाऊंगा? जिस मोहनीय ने मेरी बुद्धि ही भ्रष्ट कर दी है, क्या उसे जीत पाऊंगा?


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हे कर्मो, जब तुम्हे अपनी स्थिति आने पर छुट ही जाना है, तो तुम मेरे से बन्धते ही क्यों हो? हे परिवार जनो जब तुम्हे एक दिन मुझे अलविदा ही कहना है, तो मुझे तुम अपना बनाते ही क्यों हो? 

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...