Saturday, March 17, 2018

My experiences about Team work

एक कमरे को साफ करना था| मेरे को झाड़ू देनी आती थी और मेरे मित्र को पोछा । मैंने कहा पहले मैं झाड़ू लेता हूं और फिर तुम पोछा लगा लेना। उसने कहा - नहीं, अच्छी सफाई करनी है तो पहले वो पोछा पहले लगायेगा और मैं झाड़ू बाद में। मुझे उसकी बात जमी नहीं। थोड़ी बहस हुई। मैंने सोचा एडजस्ट कर लेते है। मगर उसने एक शर्त रख दी कि जैसे ही मैं पोछा लगाऊं तुम्हें उसके तुरंत बाद झाड़ू लगानी होगी। मैंने कहा कि मेरी झाड़ू गीली हो जाएगी और खराब हो जाएगी ऐसा तो मैं नहीं कर सकता। ऐसी बात है तो फिर तुम ही लगा लो। अब क्या था.. उसने खुद ही अपने हिसाब से कमरे की सफाई करी।

 जब भी हम टीम वर्क करते हैं तो हमें अपने आग्रह को तिलांजलि देनी होती है. एडजस्ट करना होता है, दूसरे की बात को appreciate करना होता है। अगर ऐसा नहीं कर पाएंगे तो हम अकेले ही कार्य करेंगे और बड़ा कार्य नहीं कर पाएंगे। बड़ा कार्य करने के लिए बहुत लोगों की आवश्यकता होती है।

जिस प्रकार से एक बड़ा इंजन अनेक पुर्जो से मिलकर के चलता है और पुर्जो में तेल लगा होता है। जिससे वो मशीन ठीक से चल पाती है। ऐसे ही एक अच्छे कार्य में खूब सारे लोग जब कार्य करते हैं तो उनमें परस्पर में जब तक सम्मान की और प्रेम का तेल ना लगा हो तब तक वह परस्पर में काम नहीं कर सकते।

अगर पुर्जे में सूई लगी हो और उसके ऊपर रबङ की belt घूमती हो, तो वो उसे घुमाने की जगह काटना शुरु कर देगा। उसी प्रकार से अगर समुदाय ने एक व्यक्ति अहंकार सम्मान की इच्छा रखता हो या हठाग्रही हो, तो उसकी वजह से पूरी मशीन खतरे में आ जाती है।

“जो मैं कह रहा हूं वही सही है। मेरा अनुभव तुमसे ज्यादा है। अपने को prove करने की इच्छा रखना। दूसरा अगर कोई सुझाव दें तो उसे एकदम से रिजेक्ट कर देना” - यह ऐसी चीजें जो teamwork को आगे नहीं बढ़ने देती।

कई बार व्यक्ति कहता है कि मेरी इस व्यक्ति से बनती नहीं। इसके साथ मैं काम नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति में मेरे ख्याल से उस व्यक्ति को स्वर्ग चले जाना चाहिए या ऐसी जगह जाना चाहिए जहां पर सब लोगों की बनती हो, और सब लोग एक ही सोच के हों। हम इस धरती पर रहते हैं और यहां पर हर प्रकार के लोग हैं- अलग अलग सोच है। अगर मुझे यहां रहना है तो मुझे बाकी लोगों से बनाकर रखना सीखना पड़ेगा।- This is a basic requirement. अगर मेरे को यह पसंद नहीं है, तो मेरे रहने का क्या मतलब है। अभी टिकट कटाओ .. और स्वर्ग जाओ या कहीं और जाओ।

कभी कभी गलत होते हुवे भी दूसरो के हिसाब से adjust करना होता है। Team work के लिये अपने obsessions को छोङना होता है। मान को, अपमान को पचाना सीखना पङता है, तभी कुछ कार्य हो पाता है।

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...