अज्ञानी के संसारिक लक्ष्य
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ज्ञानी की संसारिक लक्ष्य
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* अज्ञानी यह
आसक्ति करता, कि ’मुझे यह
चाहिये’।
* जो चीजे
उसकी पूर्ति में लाभ करती है, उससे राग करता है और जो नहीं करती उससे द्वेष करता है।
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* ज्ञानी यह
विचार करता है, कि यह
स्थिति मेरे लिए अनुकूल है, और नहीं मिली तो प्रतिकूल।
* ज्ञानी अनुकूल के
लिए पुरूषार्थ करता है।
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* अज्ञानी की
लक्ष्य के प्रति आसक्ति बहुत है। अगर उसे नहीं मिलता तो खेद करता है। अगर मिलता
है तो बहुत खुश होता है।
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* ज्ञानी की
लक्ष्य के प्रति राग है,
मगर आसक्ति नहीं। मिले या ना मिले उसे स्वीकार करता है और
उसमें राग-द्वेष नहीं करता।
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* अज्ञानी कर्म
और पुरूषार्थ के समन्वय को नहीं जानता
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* ज्ञानी
पुरूषार्थ करता है और परिणाम को ’कर्म और पुरूषार्थ’ पर छोङ देता है।
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Monday, August 18, 2014
Worldly goals
Friday, August 8, 2014
मैं राग क्यों करूं, मैं द्वेष क्यो करूं
जैसे बैंक के दो ATM हैं। एक खराब है एक सही। खराब वाला पैसे नहीं देता और account से पैसे काट भी लेता है। सही वाला सही काम करता है। तो हम खराब वाले के पास नहीं जाते और सही वाले के पास जाते हैं। ना खराब वाले से द्वेष करते हैं, और सही वाले से राग। मात्र उनके गुण दोष जानकर अपना काम चला लेते हैं।
ऐसे ही कोई व्यक्ति से सम्पर्क होने पर वो हमारे लिये हितकारी निमित्त बनाता है, और कोई व्यक्ति अहितकारी बनता है। तो हम गुण दोष जानकर सम्पर्क करें, राग-द्वेष ना करें। कभी हमें गुण-दोष नहीं पता होते और सम्पर्क करके भुगतते हैं, तो अपनी अज्ञानता पर पछतावा करो बजाय कि दूसरे से द्वेष करने के।
दूसरा हमारे लिये अहितकारी है, तो है - उससे द्वेष क्यों करे। कोई कारण नहीं कि हम उससे द्वेष करें।
दूसरा हमारे लिये हितकारी है, तो है - उससे राग क्यों करे। कोई कारण नहीं कि हम उससे राग करें।
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