Thursday, November 16, 2017

मैं ज्ञायक हूं।


  • शरीर मेरा नहीं है। भस्म हो जायेगा एक दिन। मिट्टी है, मिट्टी में मिल जायेगा।
  • परिवार, रिश्तेदार, दोस्त हैं, मरने के बाद कोई किसी का नहीं। Cashier के समान हैं।
  • मेरे राग और द्वेष भी स्वभाव नहीं कर्म जनित हैं।
  • मेरी स्मृति भी मेरी नहीं, मतिज्ञानावरण के देशघाती स्पर्धको के उदय से हुई है।
  • जो पुरानी चीजे मेरे को याद आती रहती हैं, वह मेरी नहीं है। क्योंकि स्मृति से आयी हैं, जो मेरा स्वभाव नहीं।
  • जो भविष्य में करने के कार्य मेरे मन में आते हैं, वो भी मेरे नहीं। जैसा मैने विकल्प किया है, और मेरे मन में संचित (स्मृति) है, वैसा ही करने के भाव मेरे मन में आते रहते हैं। विकल्प और स्मृति मेरे स्वभाव नहीं, इसलिये भविष्य के विकल्प(कर्ता पनी या भोक्ता पने) भी मेरे स्वभाव नहीं।
  • पर पदार्थो के प्रति इष्ट-अनिष्ट बुद्धि, मेरे मलिन कषायों के द्वारा मतिज्ञान के धारणा ज्ञान में संचित है- वह भी मेरे स्वभाव नहीं।
  • जो संस्कार मेरे को दूसरो के द्वारा दिये हैं, वो भी इष्ट अनिष्ट रूप हैं, वो भी मेरे नहीं।
  • क्या बचा? मात्र ज्ञान। मैं बस ज्ञायक भाव।


  • मैं ज्ञान हूं, उसमें कुछ जुङना सम्भव नहीं, इसलिये मुझे किसी से राग नहीं।
  • मैं ज्ञान हूं, उसमें कुछ खण्डित नहीं हो सकता, इसलिये मुझे किसी से भय नहीं।
  • मेरे अन्दर ही अपार सुख है, इसलिये मुझे हीन इन्द्रिय सुख की इच्छा नहीं है।
  • सारे जीव ज्ञान स्वभाव को लिये हैं, इसलिये मुझे किसी से ऊंचे पनी, या नीच पने का भाव नहीं।

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...