कर्म | आस्रव के कारण |
ज्ञानावरण, दर्शनावरण | •प्रदोष: कोई पुरूष
मोक्ष के साधन तत्वज्ञान का उपदेश करता हो तो मुख से कुछ भी न कहकर ह्रदय में
उससे ईर्ष्या आदि रखना। •निह्नव: अपने को शास्त्र का ज्ञान होते हुये भी किसी के पूछने पर यह कह देना कि मैं नहीं जानता •मात्सर्य: अपने को शास्त्र का ज्ञान होते हुए भी दूसरो को इसलिये नहीं देना कि वे जान जायेंगे तो वें मेरे बराबर हो जायेंगे। •अन्तराय: किसी के ज्ञानाभ्यास में विघ्न डालना •आसादना: सम्यग्ज्ञान का समादर न करना, उल्टे उसके उपदेष्टा को रोक देना •उपघात: सम्यग्ज्ञान को एकदम झठा बतलाना |
असाता वेदनीय | •दुःख: पीङा रूप
परिणाम को दुःख कहते हैं। •शोक: अपने किसी उपकारों का वियोग हो जाने पर मन का विकल होना। •ताप: लोक में निन्दा वगैरह के होने से तीव्र पश्चाताप का होना •आक्रन्दन: पश्चाताप से दुःखी होकर रोना धोना। •वध: किसी के प्राणो का घात करना •परिवेदन: अत्यन्त दुखी होकर ऐसा रूदन करना जिसे सुनकर सुनने वालों के ह्रदय द्रवित हो जायें। |
साता वेदनीय | •अनुकम्पा: प्राणियों
पर और व्रती पुरूषों पर दया करना। •दान: दूसरो की कल्याण की भावना से दान करना •सराग संयम, संयमासंयम •क्षमा भाव रखना •शौच: सब लोभ छोङना |
दर्शन मोहनीय | •केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देवों को झूठा दोष लगाना |
चारित्र मोहनीय | •कषाय के उदय से परिणामों में कलुषता के होने से |
नरकायु | •बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह |
तिर्यंचायु | •मायाचार |
मनुष्यायु | •थोङा आरम्भ और थोङा
परिग्रह •स्वभाव से ही परिणामों का कोमल होना |
देवायु | •सरागसंयम, संयमासंयम,
अकामनिर्जरा, बालतप •सम्यग्दर्शन |
अशुभ नामकर्म | •मन वचन काय की
कुटिलता से •किसी को धर्म के मार्ग से छुङा कर अधर्म के मार्ग में लगाने से |
तीर्थंकर | •१६ कारण भावना |
नीच गोत्र | •दूसरो की निन्दा
करना •अपनी प्रशंसा करना •दूसरों के मौजूदा गुणों को भी ढ़ांकना •अपने में गुण नहीं होते हुवे भी प्रकट करना |
उच्च गोत्र | •नीच गोत्र से उल्टे
कारण •नीचैर्वृत्ति: गुणी जनों के सामने विनय से नम्र रहना •अनुत्सेक: उत्कृष्ट तपस्वी होते हुए भी घमण्ड का ना होना |
अन्तराय | •दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य में विघ्न डालने से |
Sunday, December 23, 2012
Cause of bondage of 8 Karma
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