Sunday, December 23, 2012

Cause of bondage of 8 Karma

कर्म आस्रव के कारण
ज्ञानावरण, दर्शनावरण •प्रदोष: कोई पुरूष मोक्ष के साधन तत्वज्ञान का उपदेश करता हो तो मुख से कुछ भी न कहकर ह्रदय में उससे ईर्ष्या आदि रखना।
•निह्नव: अपने को शास्त्र का ज्ञान होते हुये भी किसी के पूछने पर यह कह देना कि मैं नहीं जानता
•मात्सर्य: अपने को शास्त्र का ज्ञान होते हुए भी दूसरो को इसलिये नहीं देना कि वे जान जायेंगे तो वें मेरे बराबर हो जायेंगे।
•अन्तराय: किसी के ज्ञानाभ्यास में विघ्न डालना
•आसादना: सम्यग्ज्ञान का समादर न करना, उल्टे उसके उपदेष्टा को रोक देना
•उपघात: सम्यग्ज्ञान को एकदम झठा बतलाना
असाता वेदनीय •दुःख: पीङा रूप परिणाम को दुःख कहते हैं।
•शोक: अपने किसी उपकारों का वियोग हो जाने पर मन का विकल होना।
•ताप: लोक में निन्दा वगैरह के होने से तीव्र पश्चाताप का होना
•आक्रन्दन: पश्चाताप से दुःखी होकर रोना धोना।
•वध: किसी के प्राणो का घात करना
•परिवेदन: अत्यन्त दुखी होकर ऐसा रूदन करना जिसे सुनकर सुनने वालों के ह्रदय द्रवित हो जायें।
साता वेदनीय •अनुकम्पा: प्राणियों पर और व्रती पुरूषों पर दया करना।
•दान: दूसरो की कल्याण की भावना से दान करना
•सराग संयम, संयमासंयम
•क्षमा भाव रखना
•शौच: सब लोभ छोङना
दर्शन मोहनीय •केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देवों को झूठा दोष लगाना
चारित्र मोहनीय •कषाय के उदय से परिणामों में कलुषता के होने से
नरकायु •बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह
तिर्यंचायु •मायाचार
मनुष्यायु •थोङा आरम्भ और थोङा परिग्रह
•स्वभाव से ही परिणामों का कोमल होना
देवायु •सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा, बालतप
•सम्यग्दर्शन
अशुभ नामकर्म •मन वचन काय की कुटिलता से
•किसी को धर्म के मार्ग से छुङा कर अधर्म के मार्ग में लगाने से
तीर्थंकर •१६ कारण भावना
नीच गोत्र •दूसरो की निन्दा करना
•अपनी प्रशंसा करना
•दूसरों के मौजूदा गुणों को भी ढ़ांकना
•अपने में गुण नहीं होते हुवे भी प्रकट करना
उच्च गोत्र •नीच गोत्र से उल्टे कारण
•नीचैर्वृत्ति: गुणी जनों के सामने विनय से नम्र रहना
•अनुत्सेक: उत्कृष्ट तपस्वी होते हुए भी घमण्ड का ना होना
अन्तराय •दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य में विघ्न डालने से

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...