Friday, September 27, 2019

न्याय ढ़ूंढ़ने में संघर्ष है

रावण के सीता माता के अपहरण को हमने देखा तो सोचा कितना अन्यायपूर्ण कार्य किया.. और फ़िर जब राम ने रावण को जीता तो हमें लगा कुछ न्याय हुआ। पाण्डवो ने कौरवो से लङाई करी न्याय के लिये।

हमें अपने भविष्य को लेकर भय चिन्ता होता होती है, क्योंकि हम सोचते हैं – क्या पता अगर मेरे साथ अन्याय हो जाये। क्या पता अगर वो ऐसा कर दे, या ऐसा कह दे।

किसी को देखके उसके कार्य पर खेद होता है, कभी वो गुस्से में भी परिवर्तित हो जाता है जब हमें दूसरे का बर्ताव न्यायोचित नहीं लगता।

दुनिया की सारी लङाइयां न्याय प्राप्त करने के लिये हुई हैं। और भविष्य में अगर न्याय ना मिला – ऐसी कल्पना करके डर भी हुआ। और न्याय ना मिल पाने पर शोक भी हुआ। और दूसरे ने न्याय नहीं किया ऐसा जानने पर क्रोध भी हुआ।

कितना संघर्ष कषायो का – क्रोध का, डर का, शोक का, क्रोध आदि का.. हमने न्याय की खोज में कर डाला।
मगर दुनिया में तो सब कुछ न्याय से ही भरा था। न्याय को अन्याय देखना मेरी ही कल्पना थी। स्वसंचालित कर्म व्यवस्था को अनदेखा कर मैं न्याय को अन्याय देखता रहा।

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...