Friday, October 28, 2011

Poem: kshamaSagar Ji क्षमासागर जी

जैसे बङा है क्षीरसागर, जिसका कोई अन्त नहीं
ऐसी भरी है तुममे क्षमा, जिसकी कोई सीमा नहीं

करूणा सागर, दया सागर, कितने ही तेरे नाम धरूं
शब्द पढ़ जायें सीमित, कैसे इनमें भक्ति भरूं

वाणी कोमल, कठिन चर्या, कर्म परिक्षा ले रहे
ज्ञान खङग लेके सजग तुम, इसमें सफ़ल हो रहे।

जिनवाणी माता के दुलारे, तुम उसके प्यारे पुत्र हो
तुमको दिलाये ऐसे गुरूवर, जिनकी विद्या असीम हो

इन्द्र, नरेन्द्र तुम नाम लेकर, सदा धन्य हो जाते हैं
तुम्ही उत्तम, तुम्ही मंगल, तुम्हारे गुणो को वें गाते हैं

तुम आत्मा में सजग रहकर, सदा समता रखते हो
सब मित्र और शत्रु से, एक ही मैत्री रखते हो

बन जाऊं तुम जैसा, कैसा वो दिन होगा
निज आत्मा में रच पच जाऊं, तभी असली सुख होगा

करूणा, मैत्री, वात्सल्य भावो से, भिगा दूं इस तन मन को
क्रोध, भय थर थर कांपे, जगा दू मैं दस धर्मों को ।

पंचमकाल में करो साधना, तुम्ही मेरे गुरूवर हो
मुझको भी तुम दे दो दीक्षा, धन्य तभी यह जीवन हो

Saturday, April 16, 2011

Dhoti is very environment friendly


We have multiple options to wear - jeans, pants, Pajama, Dhoti. Out of these I have found Dhoti to be most environment friendly. Below are the reasons:

  • With Jeans if waist size increases/decreases we have to find another Jeans. But Dhoti it is not a problem, one can keep the same Dhoti because one can tie the knot according to the waist size.
  • With Jeans/Pajama if height increases, we have to find another Jeans/Pajama. But Dhoti again the height is something which can be changed.
  • Dhoti is just a piece of cloth, so manufacturing a Dhoti has least number of steps and less machines are needed. While for jeans/pajama when one sew it- more machines are needed and there is waste of cloth also.
For above reasons, one can keep the Dhoti till it is worn out and also can give to others without thinking the waist size or height of others.

Therefore, lets switch to Dhotis :)




Thursday, April 7, 2011

Poem2: Sahajanand Varni Ji

लुट लुट जाऊं तुम चरणॊं में, कब दिन ऐसा आयेगा
मिट मिट जाऊं तुम चरणो में, तब गजब हो जायेगा

मैने तुमको पूजा हमेशा, क्योंकि तुम ज्ञानी विरागी हो
तुमने दिखाया मैं भी विरागी, अब कैसे ये राग रह पायेगा

जाननहार अस्तित्व मेरा, कभी समझ ना पाया था
कोई ना मेरा, कोई ना किसी का, यह राज ना जान पाया था

सब द्रव्य से निराला था मैं , ऐसा कभी ना माना था
खुद को रूपी, रागी मानकर, अनन्त काल बिताया था

अब तो नाम लिया है तेरा, वीरागी बनना मेरा निश्चित है
निश्चित है मुक्ति, निश्चित है मोक्ष, अनन्त सुख भी निश्चित है

धुन लगाऊं तेरे गुण की, तो कैसे ना मुक्ति पाऊंगा
समस्त पुदगल, समस्त राग, छोङकर निज पद जाऊंगा

राह दिखाई तुने ऐसी, जिसमें कोई कंकङ ना हो
सुख सागर में डुबकि लगाने, कि अब कोई कसर ना हो

मिटा दूंगा सारा अज्ञान मैं, अब नाम लिया मैने तेरा
राग को छोङू, द्वेष को तोङूं, निजधाम है बस मेरा

तात्विक जगत का नक्शा दिखाया, ऐसा तेरा ज्ञान महान
बलि बलि जाऊं तुझ चरणों पर, मिल जाये मुझे निजधाम

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...