Friday, December 25, 2009

How to take bath

As I learnt from Arun Bhaiya Ji:

  • One should not use shower since it wastes a lot of water.
  • One should use a bucket, and if one wants to use warm water- its temperature should be almost same as body temperature.
  • The cup to bath should be small- should have only around 100 grams of water in it. Since it helps save water. If bugger cup is used, then we just fill it whole and lot of water just goes waste.
  • One can take bath in only 1-2 litre.
  • Instead of soap one can use multani mitti to take bath.
  • One very good to take path is a sponge(thick cotton cloth of around 1 ft by 0.5 ft), and dip it first and then scrub the whole body, and then wash it. And do it 4-5 times. This would help save water, opens body pores, give far more freshness, and good for non-voilence as well.

Wednesday, December 23, 2009

Poem: Good and Bad

जन्म लिया स्त्री कोख से, सोचा कितना दर्द सहा उसने मेरे कारण
सुख मिला मुझे उसकी सेवा से, सोचा कितना सुख मिला उसके कारण

निर्भयता मिलि, सोचा कितना सुख मिला पिता के कारण
डांट पङी, सोचा कितना दुख मिला पिता के कारण

स्कूल के विद्यार्थीयों में, मैं जब हिलने डुलने लगा
कैसे संगी से सुख दुख मिलता, यह सब सीखने लगा

माता पिता अरू गुरूऒं ने, बार बार ये समझाया
आसपास के मासूम जीवो को, अच्छा बुरा देखना बतलाया

सिद्धहस्त करने चले थे, हम स्कूल में जीने की कला को
मगर अच्छे बुरे का बोझ, वहीं से सीखता चला आया

विद्या सीखी और कला, कैसे अच्छे बुरे को पहचानू
अच्छे से प्रेम करू, और बुरे को अपना ना मानू

तोङ दिया अखण्ड दुनिया को, दो भागो मे इस तरह
एक को नाम दिया अच्छा, दूसरे को बुरा समझ दुतकार दिया

जब सिद्धहस्त हुआ इस हुनर में, फ़िर नयी कलाओ का समय आया
बुरे और अच्छे के, नयें नयें प्रयोगो में चित्त लगाया

धर्म, जाति, मित्र, व्यक्ति, शहर, देश, भोजन और काल
मकान, दुकान, मन्दिर, मस्जिद, सबको दो भागो में चीर डाला

अच्छे का अच्छा करता रहा, बुरे से मैं दूर रहा
अगर बुरा मिल जाये तो, उससे इर्ष्या, क्रोध खूब करा

व्यक्ति को उसके रूप रंग से, अच्छे बुरे में तोल डाला
थोङा धर्म पङ लिया तो, उसमें भी अच्छा बुरा ढूंढ डाला

ना कोई अच्छा ना कोई बुरा, सब अन्दर का मैल था
अन्दर तो धोया नही, कल्पनाओं में सारा जगत धो डाला

Wednesday, December 2, 2009

Poem: Gyaan

ना मात मेरी, ना पिता मेरा, ना पत्नी मेरी ना ये घर
पूत मेरा ना, ना ये सामान, सबसे अलग मेरा घर ।

ना दुकान, ना घोङे गाङी, ना मित्र ना समाज
ना मरता ना जीता मैं, किसी के ना आऊं काज ।

ना मैं छोटा, ना मैं बङा, ना मैं उंचा ना नीचा
ज्ञान मात्र ही मेरी सीमायें, वही अस्तित्व है मेरा ।

ना मैं काला ना मैं गोरा, ना कमजोर ना बलवान
ना वात पित्त कफ़, इन सबसे भिन्न मैं भगवान ।

ना मैं भारतीय, ना अमेरिकी, ना पता कोई मेरा
ना कोई घर है ना मकान, ज्ञान ही सर्वस्व मेरा ।

ना कोई झगङा, ना कोई प्रेम, ना मेरा कोई मतभेद
ना प्रतिस्पर्धा, ना ग्लानि, ना मेरा लेन और देन ।

ना प्रेम है, ना घृणा है, ना कर्ता ना भोक्ता
ज्ञान लम्बाई, ज्ञान चोङाई, ज्ञान जितना ही मोटा ।

दुनिया रहे दुनिया में, ज्ञान रहे ज्ञान में
ज्ञान रहे सदा एक प्रमाण, वो मैं त्रिकाल घाम।

Poem: Story of 'Baniya'

कविता का शीर्षक: बनिये की कहानी

बनिया चाहे मुनाफ़ा, चाहें दिन हो या रात
जो दे दे परम सुख, वही बनिये का भगवान ।

कोई बन्ध मेरा नहीं, जाना नहीं ये राज
दूसरो को अपना मानकर, किया सत्यानाश ।

बाजार जाके कुछ रूपे देकर, ले आये सामान
उसे अपना मान ले, गया चित्त का आराम ।

जिस घर मे आया वो, माना अपना घर
अपने को भूल गया, हो गया जैसे जङ ।

बियाह के लाया किसी जीव को, लिये फ़ेरे सात
पण्डित बोले ये तेरी है, दे दी सत्य को मात ।

ज्ञाता से भोक्ता बना, झेले प्रेम प्रहार
ऐसा पङा बन्धन में, भूला आत्मज्ञान ।

बच्चे किये बङे फ़िर, लगी उनकी भरमार
ज्ञाता से कर्ता बना, कर्मो की हुई बोछार ।

बैठे दुकान पर सारा दिन, कमायें पैसे चार
’मेरा पैसा’ रटता रहे, कहां दिखे प्रभु द्वार ।

एक दुकान से दूसरी दुकान, एक भव से दूसरा
ठोकर खाये फ़िरता रहूं, यही वर्तान्त है मेरा ।

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...