Understanding of body by Agyaani and Gyaani:
| अज्ञानी | ज्ञानी |
| शरीर से जीवो की हिंसा करता हैं। | शरीर का प्रयोग जीवो की रक्षा के लिए करता है। |
| वाणी का प्रयोग दूसरे को दुख पहुंचाने में, अपने को ऊंचा दिखाने में करता है। | वाणी का प्रयोग दूसरे के हित के लिए ही करता है। |
| शरीर का प्रयोग परिग्रह इकट्ठा करने में करता है। | शरीर का प्रयोग मात्र धर्म के एक उपकरण की तरह करता है। उसे परिग्रह नहीं मानता। |
| शरीर को सुन्दर दिखाकर सम्मान प्राप्त करने की इच्छा रखता है। | शरीर की सुन्दरता की इच्छा नहीं रखता। |
| बार बार शरीर को दर्पण में देखकर खुश होता है। | अशुचि भावना भाकर शरीर से विरक्त रहता है। |
| शरीर को बलिष्ट बनाकर सम्मान प्राप्त करने की इच्छा रखता है। | इस प्रकार की इच्छा नहीं रखता। |
| अगर शरीर सुन्दर, बलिष्ट ना दिखे तो चिन्तित होता है। | इस प्रकार से चिन्तित नहीं होता। |
| आंख का प्रयोग आकर्षक वस्तुओं को देखने के लिये | आंख का प्रयोग शास्त्र स्वाध्याय आदि के लिये करता है। |
| कान का प्रयोग संगीत के लिए | शास्त्र सुनने के लिए |
| नाक का प्रयोग सुगंध सुनने के लिए | |
| जीह्वा का प्रयोग स्वाद के लिए | मात्र स्वास्थ्य के लिए भोजन सा स्वाद जानने के लिये कि वो प्रकृति अनुकूल हो। |
| स्पर्शन का प्रयोग विषयों के लिए। | |
| मन का प्रयोग आर्त, रौद्र ध्यान के लिए करता है। | मन का प्रयोग धर्मध्यान आदि के लिए करता है। |
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