Monday, August 18, 2014

Worldly goals

अज्ञानी के संसारिक लक्ष्य
ज्ञानी की संसारिक लक्ष्य
* अज्ञानी यह आसक्ति करता, कि मुझे यह चाहिये
* जो चीजे उसकी पूर्ति में लाभ करती है, उससे राग करता है और जो नहीं करती उससे द्वेष करता है।
* ज्ञानी यह विचार करता है, कि यह स्थिति मेरे लिए अनुकूल है, और नहीं मिली तो प्रतिकूल।
ज्ञानी अनुकूल के लिए पुरूषार्थ करता है।
* अज्ञानी की लक्ष्य के प्रति आसक्ति बहुत है। अगर उसे नहीं मिलता तो खेद करता है। अगर मिलता है तो बहुत खुश होता है।
* ज्ञानी की लक्ष्य के प्रति राग है, मगर आसक्ति नहीं। मिले या ना मिले उसे स्वीकार करता है और उसमें राग-द्वेष नहीं करता।
* अज्ञानी कर्म और पुरूषार्थ के समन्वय को नहीं जानता
* ज्ञानी पुरूषार्थ करता है और परिणाम को ’कर्म और पुरूषार्थ’ पर छोङ देता है।

No comments:

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...