Friday, August 8, 2014

मैं राग क्यों करूं, मैं द्वेष क्यो करूं


जैसे बैंक के दो ATM हैं। एक खराब है एक सही। खराब वाला पैसे नहीं देता और account से पैसे काट भी लेता है। सही वाला सही काम करता है। तो हम खराब वाले के पास नहीं जाते और सही वाले के पास जाते हैं। ना खराब वाले से द्वेष करते हैं, और सही वाले से राग। मात्र उनके गुण दोष जानकर अपना काम चला लेते हैं।


ऐसे ही कोई व्यक्ति से सम्पर्क होने पर वो हमारे लिये हितकारी निमित्त बनाता है, और कोई व्यक्ति अहितकारी बनता है। तो हम गुण दोष जानकर सम्पर्क करें, राग-द्वेष ना करें। कभी हमें गुण-दोष नहीं पता होते और सम्पर्क करके भुगतते हैं, तो अपनी अज्ञानता पर पछतावा करो बजाय कि दूसरे से द्वेष करने के।


दूसरा हमारे लिये अहितकारी है, तो है - उससे द्वेष क्यों करे। कोई कारण नहीं कि हम उससे द्वेष करें।

दूसरा हमारे लिये हितकारी है, तो है - उससे राग क्यों करे। कोई कारण नहीं कि हम उससे राग करें।

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