Thursday, April 28, 2022

प्रशंसा

"जिस पर्याय की तुम प्रशंसा कर रहे हो, उसे तो त्यागने को मैं उद्यत हुआ" - ऐसा विचार करते हुवे मोक्षमार्गी को प्रशंसा में सुख अनुभूत नहीं होता। और ना ही प्रशंसा की इच्छा होती है।

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प्रश्न: जब शरीर भी नहीं हूं, तो आत्मा साधना ही करूं, परिवार वालो के प्रति कर्तव्यो का निर्वाह क्यों करूं?

उत्तर : हमारे अन्दर कितनी विरक्ति होती है उसके अनुसार ही कार्य करने योग्य है। अगर जीव में पर्याप्त विरक्ति है, तो परिवार छोङकर सन्यास धारण क...