Friday, May 28, 2021

हे राम।

 हे राम।

जो सीता तुम्हारे साथ वनवास में चल पङी। जो सीता के विरह होने पर तुम वॄक्षो से उनके बारे में पूछ रहे थे। जिसके दीक्षा लेने पर तुम्हे अपार दुख हुआ था। अब वो तुम्हे बोला रही है। - हे नाथ आओ। और मेरे साथ कुछ समय देवलोक में व्यतीत करो। मगर लगता है, तुम तो भेद विज्ञान की गहराइयों में डूबे हुवे हो।

जो भाई तुम्हारे साथ वन में चल दिया। रावण को मारा। तुम्हारा सदा प्रहरी बनकर रहा। तुम्हारी सेवा करी। तुम्हारा अनिष्ट सुनकर जिसकी ह्रदय की धङकन तक रूक गयी। उसके प्रति तुमने राग को कैसे छोङ दिया। कैसे तुमने उससे मूंह मोङ लिया। लगता है, तुम्हे संसार में अब कोई इष्ट अनिष्ट नहीं दिखाई देता।

तुम्हे सबके प्रति साम्यभाव कैसे प्राप्त हो गया। तुमने कर्म कालिमा को कैसे धो डाला। कैसे तुम अपने राज्य से, भाइयों से प्रेम किया करते थे। उस सारे प्रेम को कैसे तुमने हेय मान लिया। सारी प्रजा तुमसे प्रेम करती था। तुम सबके ह्रदय में बसते हो। हम सबके प्रति तुम कैसे विरक्त हो गये।

सम्भवतः इसीलिये क्योंकि तुम राम हो!

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