Sunday, July 31, 2016

Praman Sagar Maharaj Ji Pravachan

Excerpts from the pravachan 2016-07-24 प्रवचन https://www.youtube.com/watch?v=wA6ZaxdFCH4

घटिया सोच वाले बढ़िया जीवन नहीं जी सकते। अगर बढ़िया जीवन जीना चाहते हो, अच्छी सोच रखो। अच्छी सोच, अच्छा दृष्टिकोण, हर चीज के प्रति आपका दृष्टिकोण बढ़िया होना चाहिये। और ये अगर जीवन में घटित हो गया, तो संसार में आपसे ज्यादा सुख, आपसे ज्यादा खुश इन्सान आपसे ज्यादा दूसरा नहीं हो सकता। वस्तुतः लोग कहते हैं कि हम दूसरो के कारण दुखी हैं। ये हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रताप है। मनुष्य दूसरे के कारण कभी दुखी नहीं होता, उसके दुख का कारण उसके भीतर का अज्ञान है, जो उसके गलत नजरिये का परिणाम है। यदि हमारे पास दृष्टि हो, तो हम हर हाल में प्रसन्न होकर जी सकते हैं, हर हाल में सन्तुष्ट होकर जी सकते हैं। हमें वो देखने की कला होनी चाहिये। आज के दिन मैं आपके बेहतर जीवन का बेहतर नजरिया हम चार बिन्दुओं के बीच हम कहना चाहेंगे। आज की चार बाते हैं:

1. सकारात्मक दृष्टि रखें: 

अपनी दृष्टि को हमेशा सकारात्मक बनायें रखें। कोई भी कैसी भी परिस्थितियां बने, आप उसे सकारात्मकता से देखने की कोशिश करें। उसमें किसी भी प्रकार के नकारात्मक angle से मत देखिये। यदि आप चीजो को सकारात्मक दृष्टि से देखेंगे, तो कितनी भी बङी घटना घट जायेगी, आप उससे प्रभावित नहीं होंगे। कैसा भी प्रसंग बन जायेगा, आप पर उसक असर नहीं पङेगा। और असर पङेगा भी, तो positive असर पङेगा। साहू अशोक जी का कुछ लोगो ने विरोध किया - तो उन्होने कहा कि हमारे कर्मो की तो निर्जरा हो गयी। है तुम्हारे में ऐसी दृष्टि कि कोई तुम्हारी प्रखर आलोचना करे, और तुम उससे अप्रभावित रहो। अगर positive attitude होगा, तो तुम अपनी आलोचना को भी अपने जीवन के निखार का आधार बना लोगे। और तुम्हारा attitude negative होगा, तो तुम अपनी प्रशंसा में भी परेशान हो जाओगे, कि सामने वाले ने मेरी प्रशंसा तो की, मगर मेरी प्रशंसा में केवल चार विशेषण लगाये। पद से मनुष्य बङा और छोटा नहीं होता,  सोच से मनुष्य बङा और छोटा होता है। सकारात्मक सोचिये। हर स्थिति में उसी तरीके से देखने से देखने की कोशिश कीजिये। अपना attitude सदैव positive बनाकर चलियेगा, तो चाहे घर परिवार हो, चाहें व्यापार कारोबार हो या समाज व्यवहार हो, कहीं भी तुम कभी उलझन में नहीं फ़सोगे। और यदि ऐसा positive दृष्टिकोण नहीं है, तो कहीं भी सुखी नहीं रह सकते। सारी समस्याओं का निवारण अपनी सकारात्मका के बल से किया जा सकता है। बङे-बङे झगङे और फ़साद भी सकारात्मकता के बल से समाप्त किये जा सकते हैं। ध्यान रखना - जहां सकारात्मकता है, वहां समाधान है। और जहां नकारात्मकता है, वहां समस्या है।

पिता पुत्र दोनो साथ खाय करते थे., एक दफ़ह पुत्र पिता से नाराज हो गया और नाराज होकर उसने कहा और कहा- "पापा, कल हम आपके साथ नहीं खायेंगे।" पिता ने कहा - "कोई बात नहीं बेटा, तू मेरा साथ नहीं खाना चाहता तो कोई बात नहीं, मैं तेरे साथ खा लूंगा।" ये है सकारात्मकता। ये दृष्टिकोण तुम्हारे अन्दर होना चाहिये।

मैं सम्मेद शिखर जी की परिक्रमा कर रहा था। हजारो लोग हमारे साथ थे। अशोक पाटनी भी थे} अशोक ज्की ने कहा- महाराज! आपकी चाल तेज होगी, हम कैसे चल पायेंगे। मैने कहा - आप चिन्ता मत करो। आप हमारे साथ नहीं चल पाओ तो कोई बात नहीं। हम आपके साथ चल लेंगे।

जीवन में सूत्र अपनाओ। कोई आपका अनुगामी तो बहुत अच्छी बात है, और यदि नहीं बन सके तो तुम उसके अनुगामी बन जाओ। क्योंकि जितनी उसको तुम्हारी आवश्यकता है, उतनी ही तुमको उसकी आवश्यकता है। और यही आपकी जीवन को पूर्णता प्रदान करने वाले हैं।

2. प्राप्त को पर्याप्त समझिये:

आपको लगता है कि जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।किसी के लिये प्राप्त, अपर्याप्त की परिभाषा पूछो तो क्या है?
जो मुझे प्राप्त हुआ बस उसे देखिये। जिस मनुष्य की दृष्टि में प्राप्त पर्याप्त होता है वो कभी दुखी नहीं होता, और जिसके लिये प्राप्त अपर्याप्त दिखता है, वो कभी सुखी नहीं होता। एक बात ध्यान रखो जो तुम्हारे पास है, वही तुम्हारे काम का है। जो दूसरो का है, दूसरो के पास है वो तुम्हारे काम का नहीं हो सकता। इसलिये जो तुम्हारा है, तुम उसका उपयोग करो, तुम उसका उपभोग करो, तुम उसका रस लो, तुम उसका आनन्द लो, तुम उसका लुत्फ़ उठाओ - बाकी से क्या प्रयोजन है। प्राप्त के प्रति अपनी दृष्टि होनी चाहिये। पर मनुष्य की बहुत बङी कमजोरी है, वो कितना भी पा ले, उसे सन्तोष नहीं होता। कभी सन्तोष नहीं होता। कितना पा ले? कहते हैं जितना होना, उतना रोना । बस पाते जाओ, तो रोते जाओ। सारी जिन्दगी भागते रहोगे, कहीं ठहर नहीं पाओगे। जीवन को सुखी बनाना चाहते हो, तो एक बहुत बङा सूत्र है - प्राप्त को पर्याप्त मानने का। जो आज है पर्याप्त है। मैं यह नहीं कहता कि आगे बङने का प्रयास मत करो, और कुछ पाने की कोशिश मत करो। लेकिन ध्यान रखो। पाने के लिये प्रयास करना अलग बात है, और पाने के परेशान होना अलग बात है। पाओ, परेशान मत होओ। जो मेरे पास है वो मेरे लिये sufficient है। किसी आदमी के पास लाख रूपया हो, वो उसके जीवन के निर्वाह के लिये पर्याप्त है। लेकिन जब वो किसी करोङपति को देखता है, और उसके जीवनस्तर से अपने जीवनस्तर से तुलना करता है, तो उसके लिये वह लाख रूपया अपर्याप्त प्रतीत होने लगता है। अरे मेरी lifestyle क्या है, lifestyle तो उसकी तरह होनी चाहिये। और कहीं भागदौङ, मशक्कत करके लखपति से करोङपति बन भी जाये। और अपनी lifestyle में बदलाव भी ले आये, तो अपने से ओर ऊपर वाले को देखता है और सोचता है कि मेरे पास तो एक साधारण सी गाङी है - सामने वाला तो audi और bmw में घूमता है - यदि मैं वो ना पाऊं तो फ़िर मजा क्या? और आगे बङ जाये तो अगले ने हेलीकोप्टर ले रखा है। चाहें जहां चाहें जब आ सकता है, जा सकता है। जब तक मेरे पास वो ना हो तो फ़िर मजा क्या? है ना ये भागदौङ। ये भागदौङ ये आपा धापी कब तक चलेगी? एक बात मैं कहता हूं - तुम्हारे पास जो है यदि तुम उससे सन्तुष्ट नहीं हो, तो उस चीज से भी कभी सन्तुष्ट नहीं हो सकते जिसे कि तुम चाहते हो, और वो मिल जाये । जो मिला है, उससे भी सन्तोष नहीं, तो ये भी मानना कि जो मिलेगा उससे भी सन्तोष नहीं होने वाला। क्योंकि जब तक वो मिलेगा, तब तक तुम्हारे चाहत कुछ ओर हो जायेगी। कहते हैं - The more they get, the more they want. जितना पाते हैं, उतनी चाहत बढ़ती जाती है। नहीं, प्राप्त को पर्याप्त समझने की कोशिश कीजिये। जितना है वो sufficient है, मेरे लिये वो पर्याप्त है। बन्धुओं , अगर प्राप्त को पर्याप्त मानो तो सब ठीक, वरना सब गङबङ। जीवन में कई चीजे ऐसी आती हैं कि लोग अपनी ही कारण अपने जीवन को दुखी बना लेते हैं। अपनी स्थिति से असन्तुष्ट रहने के कारण ।

३. दुख में सुख खोजे:

मनुष्य अपने दुखो से दुखी होता है। आपके दुखो को दूर करने की एरे पास कोई व्यवस्था नहीं है, और मेरे पास क्या भगवान के पास भी नहीं है। भगवान भी तुम्हारे दुखो को दूर करने में समर्थ नहीं हैं, ऐसा भगवान ने ही बताया है। हमारे गुरू ने ऐसा मार्ग हमें बताया कि जिसे तुम अपना लो तो दुख में भी सुख खोज सकते हो। खोजो गहराई में जाके खोजो, अपने दुख में सुख खोजो। कैसे? आप सङक पर चल रहे हो, नंगे पाव चलना पङ रहा है। निश्चित नंगे पाव चलना कष्टकर होता है। पर मैं आपसे कहूंगा, जब भी सङक पर चलो, नंगे पाव चलने की नौबत हो। तो नंगे पांव चलने का दुख महसूस करने की जगह, अपने पांव से चलने का सुख अनुभव करो और भगवान को धन्यावाद दो - हे प्रभु! मेरे पास जूते नहीं है तो क्या हुआ पांव तो है। दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जिनके पास पांव भी नहीं हैं। मैं कितना भाग्यशाली हूं। है यह कला तुम्हारे अन्दर?
.. दुख में सुख खोजो। जीवन में जो भी प्रसंग आये, अगर उसमें दुख में सुख खोजोगे, तो कभी दुखी नहीं हो सकोगे। मेरे सम्पर्क में एक जज साहब हैं। उनकी इकलौती बेटी है जन्म से विकलांग। उनकी सारी क्रियायें उन्ही करानी पङती हैं। बेटी बङी हो गयी, उसका वजन बङ गया, अब उठाने में उनकी slip disc हो गयी। लेकिन उठाना पङता। एक दिन मेरे सामने किसी ने कहा कि महाराज जी इनका जीवन बहुत दुखी है। एक ही बेटी है और ऐसी है। उन्होने उसकी बात को वहीं पर काटते हुये वहीं पर कहा - महाराज, मेरी बेटी विकलांग है मुझी इस बात का दुख नहीं है, मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम वो पागल तो नहीं है। चिल्लाती और काटती तो नहीं है। इसकी सेवा तो मैं जितनी कर सकता हूं, कर लेता हूं। वहीं शहर में दूसरी लङकी थी, वह विकलांग होने के साथ साथ जो मिल जाये उसे काटती थी, चिल्लाती थी। यदि वो ऐसी होती तो हमारा रात का सोना भी मुश्किल होता। जीना भी हराम हो जाता। मैं अपने आप को भाग्यशाली मानता हूं - मैने आपसे यही सीखा है कि जो अपने नसीब में लिखा है उसे भोगना ही पङेगा। हंसकर भोगो तो, रोकर भोगो तो - तो हम क्यों ना हंसकर भोगे। यह है positive attitude. तुम ऐसा कर सकते हो। विचार करो। तुम लोगो की स्थिति तो ऐसी है कि सुख में भी दुख खोजते हो। इसलिये सारी जिन्दगी दुखी होते हो। ध्यान रखना - संसार में एक भी ऐसा प्राणी नहीं है जिसको सब सुख मिल जाये। चक्रवर्तियो को भी सब सुख नहीं मिला। कोई ना कोई कमी तो संसार में सब के साथ बनी ही रहती है। और यदि तुम अपने जीवन के दुखो को देखोगे, तो कभी सुखी नहीं हो सकती है। मैं आपसे कहता हूं कि आपके जीवन में कोई विपत्ति आये और मन विचलित हो , तो उस विपत्ति को देखकर सोचो कि चलो विपत्ति तो आयी है पर उसमें भी positive सोचो और ये सोचो - अरे ये विपत्ती थी- बङी विपत्ति छोटे में टल गयी। मैं भाग्यशाली हूं। अगर ओर बङी विपत्ती आयी होती तो मैं कहां का होता। अभी एक व्यक्ति के घर में आग लगी - कल ही मुझसे बताया । तीन मंजिल का घर राख हो गया । भारी विपत्ति थी। जब उन्होने मुझे बताया, तो एक बात सुनकर बहुत अच्छा लगा - महाराज आपके प्रवचन सुनकर हमने एक बात सीखी - कि चलो आग लगी, घर जला, भस्म हो गया - हम इस बात को लेकर खुश है जनहानि नहीं हुई। पैसे हम दुबारा कमा लेंगे, जन दोबारा नहीं कमा सकते। दुख में सुख खोजने की यह एक दृष्टि है। विपत्ति को तुम टाल नहीं सकते, लेकिन अपनी सोच को बदलकर विपत्ति में अपने को सम्भाल जरूर सकते हो। बिमारी हो। कई लोग थोङी थोङी बिमारी में depression के शिकार बन जाते हैं। और तन की बिमारी से खतरनाक मन की बिमारी होती है। लेकिन अपने तन की बिमारी को मन पर हावी मत होने दो। यदि बिमार हो तो यह सोचो - मैं बिमार कहां हूं - बिमार तो वो है जो हस्पताल में पङा है। बिमार तो वो है जो ICU में है। बिमार तो वो है जिसके नाक और मूंह में नलिया लगी हैं। बिमार तो वो है जो paralyse होकर  पङा है। बिमार तो वो है जो comma में पङा है। मैं कहां बिमार हूं, चल रहा हूं, फ़िर रहा हूं, बोल रहा हूं, अपना काम कर रहा हूं - फ़िर बिमार कहां हूं। सोच सकते हो?
तुम लोग पल में मायूस हो जाते हो - हे भगवान अब क्या होगा? ये मायूसी, ये नकारात्मकता तुम्हे दुखी बनाती है। दुख में सुख खोजने की कला अपनाइये। जहां भी जो भी हो उसको देखो । व्यापार में नुकसान हो रहा है - चलो ठीक है, नुकसान तो हो गया। ये सोचो कि बङा नुकसान नहीं हुआ। ये सोचो मैं time पर सम्भल गया। अगर अभी नहीं देखा होता, तो और ज्यादा नुकसान हो जाता।

देखो, आदमी की सोच जिनकी व्यापक होती है। बुराई में अच्छाई देखो। आप अच्छाई में बुरा देखते हो। अगर देखने की दृष्टि हो तो बन्द घङी भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है।

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