Wednesday, April 18, 2012

11 Pratima of Jain householder

Below is description of 11 Pratima of Shravak.


1. दर्शन प्रतिमा 
* पच्चीस दोषो से रहित  
     ८ मद [कुल, जाति, रूप, ज्ञान, धन, बल, तप, प्रभुता(आज्ञा, मान्यता)] 
     ३ मूढता [देव, गुरू, लोक]  
     ६ अनायतन [कुगुरू, कुदेव, कुधर्म, कुगुरू सेवक, कुदेव सेवक, कुधर्म सेवक]  
     ८ दोष [शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, मूढ़दृष्टि, अनुपगूहन, अस्थितिकरण, अवात्सल्य, अप्रभावना] 
* संसार, शरीरे, इन्द्रिय भोग से विरक्त हो 
* पंच परमेष्ठी ही जिसको शरणभूत हों 
* जीवादि तत्वो का श्रद्धान करने वाला हो। 
* आठ मूलगुणो को जो धारण करता है। 
* तीन शल्यों का अभाव नहीं 
है। 
* अणुव्रतो में कदाचित अतिचार लगते हैं 

2. व्रती 
* पांच अणुव्रत 
      आहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत, अपरिग्रहाणुव्रत 
* तीन गुणव्रत 
      दिगव्रत, अनर्थदंडव्रत, भोगोपभोगपरिमाणव्रत 
* चार शिक्षाव्रत 
      देशावकाशिक(देशव्रत), सामायिक, प्रोषोधोपवास, वैयावृत्य(अतिथिसंविभाग) 
उपर्युक्त व्रतो को माया-मिथ्या-निदान शल्यो से रहित होकर पालन करता हो। 
* तीन शल्य छूट जाते हैं। 
* अणुव्रतो का निरतिचार पालन होता है। 
* तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत में कदाचित  
अतिचार लगते हैं। 
3. सामायिक 
३ समय सामायिक करता है (प्रातःकाल, मध्यान्ह काल, सांयकाल) 

4. प्रौषध 
अष्टमी, चतुर्दशी पर प्रौषध करता है 
शक्ति अनुसार करने को कहा गया है।  
वृद्धावस्था या बिमारी आदि के कारण यदि  
उपवास की शक्ति क्षीण हो गयी है  
तो अनुपवास या एकासन भी कर सकता है। 
5. सचित्त त्याग 
दया की मूर्ति होता हुआ मूल, फ़ल, पत्र, डाली आदि बिना अग्नि से पकाये हों, कच्चे हों उन्हे भक्षण नहीं करता। 

6. रात्रि भुक्ति विरत 
दयालु होता हुआ रात में कुछ नहीं खाता पीता 
पहली प्रतिमा में रात्रि भोजन त्याग कृत अपेक्षा होता है। 
इस प्रतिमा में ९ कोटि (मन, वचन काय और  
कृत, कारित अनुमोदना) से त्याग होता है। 
7. ब्रहमचारी 
शरीर के प्रति अशुचि भाव रखता हुआ अपनी स्त्री के साथ शयन त्याग देता है 
राग उत्पन्न करने वाले वस्त्राभरण नहीं पहनता, 
शृंगारकथा, हास्यकथा, काव्य नाटकादि का  
पठन श्रवण यानि रागवर्धक सभी वस्तुओं का  
त्याग कर देता है। 
8. आरंभ त्याग 
प्राणघात के कारण नौकरी, कृषि, असि, लेखन आदि छोङ देता है 
* अभिषेक, दान, पूजन आदि का आरम्भ कर सकता है। 
* जिस वाणिज्य आदि में प्राणिहिंसा नहीं होती उसमें बाधा नहीं। 
* आरम्भ का त्याग कृत, कारित से होता है, अनुमोदना से नहीं। 
पुत्रों आदि को आरम्भ की अनुमति दे सकता है। 
* कपङे धोना, जलादि भरना आदि कार्य  
स्वयं अपने हाथ से कर सकता है। 
* धनोपार्जन के लिये पापारम्भ का त्याग करे और स्त्री  
पुत्रादि था धनादि समस्त परिग्रह का विभाग करके  
अल्प धन स्वयं रखे। उसे अपने शरीर के साधन,  
भोजन, औषधि आदिअ में लगावे, दान पूजा करे।  
स्वयं भोजन बनाकर खा भी सकते हैं। 
9. परिग्रह त्याग 
दस बाह्य वस्तुओं में ममता का त्याग करता है, आत्मा में लीन रहके सन्तोषी होता है।      
* दस प्रकार का परिग्रह: क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, द्विपद(दासादि), 
चतुष्पद(गायादि), शयन, यान (पालकी), कृप्य(रेशमी-सूती  
कोशादि के वस्त्र), भाण्ड (चन्दन, कांसा आदि के बर्तन) 
* वस्त्र, मकान आदि परिग्रह को छोङकर शेष सब परिग्रह छोङ देता है। 
*  ममत्वभाव होने से आरम्भ आदि में पुत्र को अनुमति देता है। 
10. अनुमति त्याग 
आरंभ की कार्यो में अनुमोदना/अनुमति नहीं करता/देता 
* आरम्भ-परिग्रह और विवाह आदि ऐहिक कार्यों में जिसकी
 अनुमति नहीं है। स्वजनो और परजनो के पूछने पर भी गृह 
सम्बन्धी कार्यो में अनुमति नहीं देता। 
*  धार्मिक कार्यो में अनुमति दे सकता है। 
*  घर से निकलने की इच्छा हो जाने पर गुरूजन, बन्धु-बान्धव 
और पुत्रादि से यथायोग्य पूछे। 
11. उद्दिष्टत्याग 
घर छोङकर मुनि संघ में रहता है। भिक्षा द्वारा भोजन ग्रहण करता है। एक खंड वस्त्र को घारण करता है। 
क्षुल्ल्क: 
* खण्ड वस्त्र पहनते हैं: जिससे मस्तक ढ़के तो पैर न ढ़के, पैर 
ढ़के तो मस्तक न ढ़के। 
*  दाढ़ी, मूंछ और सिर के बालो को कैंची से कटावे। 
*  पिच्छी से उपकरण को मार्जन करके उठावे, रखे 
*  बैठकर पात्र में भोजन करे। हाथ में पात्र लिये 
हुए  श्रावक के घर जाकर उसके 
आंगन में खङे होकर ’धर्मलाभ’ कहकर भिक्षा 

की प्रार्थना करे।  इस प्रकार घर-घर भिक्षा 
मांगना ना रूचे तो एक घर में ही मुनियों 
के पश्चात दाता के घर जाकर भोजन करे। 
*  अन्तराय आने पर भोजन पान का त्याग करे। 

ऐलक: 
*  लंगोट रखते हैं 
*  दाढ़ी मूछ के बालो को हाथ से उखाङते हैं। 

एषणा के दोषो से रहित करपात्र में ही भोजन 
करते हैं। 
*  ये सभी परस्पर ’इच्छामि’ उच्चारण द्वारा 
विनय व्यवहार करते हैं। 
* दोनो ही क्षुल्लक ऐल्लक रेल, मोटर आदि वाहन 
में बैठकर यात्रा नहीं करते, पैदल विहार करते हैं। 

क्षुल्लिका: 
*  सोलह हाथ की सफ़ेद साङी और चद्दर रखती है। 
*  क्षुल्लिका की सारी क्रियाएं क्षुल्लक के समान है। 

आर्यिका: 
*  सोलह हाथ की फ़ेद साङी रखती है। 
*  उपचार से महाव्रती कहा है। 
 

4 comments:

dexlethal said...

I want to know can a person who indulges in alcohol, meat but has tattva shraddhan can be called Avirati Samyak dristi .As per my view he cant become samyak drishti because 8 mulagunas are bare min. necessary for any person to be called even a Shravak .Please reply.

dexlethal said...

Please refer to these comments on quora to get the reason for my above doubt.


http://www.quora.com/Was-Ravna-a-Jain/answer/Amit-Jain-183/comment/6794126?__snids__=724579951&__nsrc__=1&__filter__=all#comment6804791

Shrish Jain said...

I think I have read somewhere in texts that 4th Gunsthan person does not indulge in Anyaya, Aneeti, Abhaksha. So it is difficult to understand that one can be Samyagdrishti while taking alcohol, meat.

To me it seems one should have 8 mulguna to become a Samyagdrishti.

dexlethal said...

thanks a lot.Jai Jinendra!

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...