Thursday, April 7, 2011

Poem2: Sahajanand Varni Ji

लुट लुट जाऊं तुम चरणॊं में, कब दिन ऐसा आयेगा
मिट मिट जाऊं तुम चरणो में, तब गजब हो जायेगा

मैने तुमको पूजा हमेशा, क्योंकि तुम ज्ञानी विरागी हो
तुमने दिखाया मैं भी विरागी, अब कैसे ये राग रह पायेगा

जाननहार अस्तित्व मेरा, कभी समझ ना पाया था
कोई ना मेरा, कोई ना किसी का, यह राज ना जान पाया था

सब द्रव्य से निराला था मैं , ऐसा कभी ना माना था
खुद को रूपी, रागी मानकर, अनन्त काल बिताया था

अब तो नाम लिया है तेरा, वीरागी बनना मेरा निश्चित है
निश्चित है मुक्ति, निश्चित है मोक्ष, अनन्त सुख भी निश्चित है

धुन लगाऊं तेरे गुण की, तो कैसे ना मुक्ति पाऊंगा
समस्त पुदगल, समस्त राग, छोङकर निज पद जाऊंगा

राह दिखाई तुने ऐसी, जिसमें कोई कंकङ ना हो
सुख सागर में डुबकि लगाने, कि अब कोई कसर ना हो

मिटा दूंगा सारा अज्ञान मैं, अब नाम लिया मैने तेरा
राग को छोङू, द्वेष को तोङूं, निजधाम है बस मेरा

तात्विक जगत का नक्शा दिखाया, ऐसा तेरा ज्ञान महान
बलि बलि जाऊं तुझ चरणों पर, मिल जाये मुझे निजधाम

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