Friday, August 14, 2009

Poem: मेरे वीर प्रभु

मेरे वीर प्रभु:

मैं सुदामा तुम कृष्ण, कैसे आऊं तुम द्वार
लाज मारे चरण ना बङे, ना हो दहलीज पार

कुएं का मेंडक कुएं मे रहे, ना देखे उसके पार
कहां भाग्य मेरे प्रभुवर, जो आऊं तुम दरबार

इन्द्र आयें दरबार तुम्हारे, करे तुम दर्शन
मैं अभागा दूर से ही, नाम लेके करू कीर्तन

मुनिवर अपने पवित्र ह्रदय में, लेते तुम्हारा नाम
मेरे काले ह्रदय में, कैसे बिठाऊ तुम्हे भगवान

शक्ति नहीं प्रभु कि कर लूं तुम वचनो का भान
शब्द गम्भीर मुझको लगे, क्योंकि मैं निपट अजान

तुम अंगुलि पकङ के, लायो निज दरबार,
कहां मुझ मे सामर्थ, जो करूं दहलीज भी पार

तुम देशना सरल करी, बतायो कल्याण पथ
मैं तो अविवेकी हमेशा से,सेवा विषय कुपथ

तुम नाम जपता रहू, पाऊ तीन रतन
२४ भगवान के मार्ग पर, हो जाऊं अर्पण।

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