Tuesday, July 7, 2009

Poem: मेरे गुरू - पूज्य जिनेन्द्र वर्णी

पूज्य जिनेन्द्र वर्णी जी महाराज:

अमृत बिन्दु जहां
-जहां पङे, वहां-वहां अमृत होये।
गुरू नजर जिस जिस पर गिरे
, उस उस मे गुरूता होये॥


पङा पथ पर मैं दुर्बुद्धी, अनादि से ज्ञानहीन।

अब तो प्रभु चरण रज लगा दो, करदो मिथ्याहीन॥


पथिक तुम्ही हो, सन्त तुम्ही हो, जानो विश्व का ज्ञान।

मु्झको तुम वाणी सुलभ हुई, फ़िर भी मैं रहा अजान


अब तो सन्तेश्वर हाथ पकङ्कर, लेलो अपने साथ।

तुम नाम दिन रात जपू, करू जो आप कहो नाथ॥


ना विवेक है, ना ज्ञान है, है बस एक अज्ञान

ना चारित्र है, ना संयम है, फ़िर भी किया मान॥


प्रभु अगर अब नही, पकङोगे मेरा हाथ,

कोई नहीं तुमको पूजेगा, नहीं कहेगा नाथ ॥


तुम वचन से उबर गये, नर, पशु और चोर

कोई कारण नहीं कि, मुझे दो इस दुनिया मे छोङ


कैसे करू प्रार्थना अब मै, कि ले लो मुझे अपने संग

अल्प बुद्धि हू, अल्प मति हू, जानू ना भक्ति के ढंग


मुझे मालूम है, कि शरण तुमने दी है भर भर

जाने क्यों मैं रहा अछूता, इस संसार मे अटक कर


अब एक तुम्ही सहारा हो, तुम्ही प्रभु, तुम्ही ईश्वर

एक बार कृपा कर दो, दे दो अमरता का वर॥


5 comments:

Anonymous said...

Amazing.. Very nice.
True devotion..

Preeti said...

Good Work !!!
Keep it up.....

-Preeti Jain
www.jainparinay.com
Email - infp@jainparinay.com

Kunal said...

didn't believe this was your creation, until yestreday when Avani said that Darpan also has some of your poems..And this is by no means a poem for the sake of it - it very nicely captures your devotion to Varniji. Wishing that your heart forever brims with this devotion and that you remain unaffected by praises such as this bestowed upon you.

JinVaani Team said...

Initially I thought you pasted it from somewhere........after reading othere's comments......you wrote this....just amazing!!! You are good in expressing your feelings and thoughts. I really appreciate it.

Patiently Curious said...

Amazing

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