Friday, June 27, 2008

Udaya Vyachhati Chart

गुणस्थान

No.

व्युच्छिन्न प्रकृतियां

मिथ्यात्त्व

5

मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण

सासादन

9

अनन्तानुबन्धी-४, एकेन्द्रिय, स्थावर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय

मिश्र

1

मिश्र

अविरत

17

अप्रत्याख्यान-४, वैक्रियिक शरीर-आंगोपांग, नरकायु-गति-गतुआनुपूर्वी, देवायु-गति-गतुआनुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति

देश विरत

8

प्रत्याख्यान-४, तिर्यंचायु, उद्योत, नीचगोत्र, तिर्यंचगति

प्रमत्त-संयत

5

आहारकशरीर-आंगोपांग, स्त्यानगृद्धी, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला

अप्रमत्त-संयत

4

सम्यक्तव, अर्धनाराच-कीलित, सृपाटिकासंहनन

अपूर्वकरण

6

हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा

अनिवृत्तिकरण

6

स्त्री-वेद, पुरुष-वेद, नंपुसक-वेद, संज्वलन-क्रोध-मान-माया

सूक्ष्म-सांपराय

1

संज्वलन लोभ

उपशांत-कषाय

2

वज्रनाराच, नाराचसंहनन

क्षीण-कषाय

16

निद्रा, प्रचला, ज्ञानावर्णी-५, दर्शनावर्णी-४, अन्तराय-५

सयोग-केवली

30

एक वेदनीय, वज्रर्षभनार्राचसंहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुस्वर-दुस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर-आंगोपांग, तैजस-कार्माण शरीर, ६ संस्थान, वर्णादिक-४, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, प्रत्येक

अयोग-केवली

12

एक वेदनीय, मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थंकर, मनुषायु, उच्चगोत्र

No comments:

प्रश्न: जब शरीर भी नहीं हूं, तो आत्मा साधना ही करूं, परिवार वालो के प्रति कर्तव्यो का निर्वाह क्यों करूं?

उत्तर : हमारे अन्दर कितनी विरक्ति होती है उसके अनुसार ही कार्य करने योग्य है। अगर जीव में पर्याप्त विरक्ति है, तो परिवार छोङकर सन्यास धारण क...