गुणस्थान | No. | व्युच्छिन्न प्रकृतियां |
मिथ्यात्त्व | 5 | मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण |
सासादन | 9 | अनन्तानुबन्धी-४, एकेन्द्रिय, स्थावर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय |
मिश्र | 1 | मिश्र |
अविरत | 17 | अप्रत्याख्यान-४, वैक्रियिक शरीर-आंगोपांग, नरकायु-गति-गतुआनुपूर्वी, देवायु-गति-गतुआनुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति |
देश विरत | 8 | प्रत्याख्यान-४, तिर्यंचायु, उद्योत, नीचगोत्र, तिर्यंचगति |
प्रमत्त-संयत | 5 | आहारकशरीर-आंगोपांग, स्त्यानगृद्धी, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला |
अप्रमत्त-संयत | 4 | सम्यक्तव, अर्धनाराच-कीलित, सृपाटिकासंहनन |
अपूर्वकरण | 6 | हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा |
अनिवृत्तिकरण | 6 | स्त्री-वेद, पुरुष-वेद, नंपुसक-वेद, संज्वलन-क्रोध-मान-माया |
सूक्ष्म-सांपराय | 1 | संज्वलन लोभ |
उपशांत-कषाय | 2 | वज्रनाराच, नाराचसंहनन |
क्षीण-कषाय | 16 | निद्रा, प्रचला, ज्ञानावर्णी-५, दर्शनावर्णी-४, अन्तराय-५ |
सयोग-केवली | 30 | एक वेदनीय, वज्रर्षभनार्राचसंहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुस्वर-दुस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर-आंगोपांग, तैजस-कार्माण शरीर, ६ संस्थान, वर्णादिक-४, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, प्रत्येक |
अयोग-केवली | 12 | एक वेदनीय, मनुष्य गति, पंचेन्द्रिय, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थंकर, मनुषायु, उच्चगोत्र |
Friday, June 27, 2008
Udaya Vyachhati Chart
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प्रश्न: जब शरीर भी नहीं हूं, तो आत्मा साधना ही करूं, परिवार वालो के प्रति कर्तव्यो का निर्वाह क्यों करूं?
उत्तर : हमारे अन्दर कितनी विरक्ति होती है उसके अनुसार ही कार्य करने योग्य है। अगर जीव में पर्याप्त विरक्ति है, तो परिवार छोङकर सन्यास धारण क...
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार Question/Answer : अध्याय १ : सम्यकदर्शन अधिकार प्रश्न : महावीर भगवान कौन सी लक्ष्मी से संयुक्त है...
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सहजानन्द वर्णी जी सहज चिन्तन, सहज परिक्षा, करे सहज आनन्द, सहज ध्यान, सहज सुख, ऐसे सहजानन्द। न्याय ज्ञान, अनुयोग ज्ञान, अरू संस्कृत व्या...
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