सूत्र ५: अपने अन्दर शक्ति रूप प्रभु का ध्यान करें।
ध्यान मे बढी ताकत है। यह गलत दिशा में हो तो जीव को खूंखर दरिंदा बना देता है, और सही दिशा में हो तो तीर्थंकर बना देता है, सिद्ध बना देता है। इसी ध्यान के परिणाम स्वरूप ही जीव के विभिन्न चित्र-विचित्र इस ३ लोक के Canvass पर दिखाई पङते हैं। विज्ञान के जगत में जिस प्रकार मात्र ३ मौलिक कणो (प्रोटान, न्यूट्रान, इलेक्ट्रान) से ही सम्पूण जगत के अनगिनत पुद्गल दिखाई पङती हैं- जैसे लकङी, अनेक प्रकार की धातुयें, प्लास्टिक इत्यादि। उसी प्रकार से मात्र १४८ प्रकृतियों के कर्मो के संयोग से अनेको प्रकार के अवस्थायें जीव में पायी जाती हैं जैसे मच्छर, बैक्टीरिया, देव, नारक, नर, सीप इत्यादि
इन सब अवस्थाओं से विलक्षण, सर्वत्र सुन्दर, अनुपम, तीन लोक में पूज्य जीव की स्वतन्त्र अवस्था है। जिसमें कर्मो या किसी भी अन्य द्रव्य का कोई हस्तक्षेप नहीं और जब कोई जीव समस्त कर्मो से मुक्त होता है तो ऐसी अवस्था प्राप्त करता है। दूसरे शब्दो में सभी संसारी जीवो में सम्पूर्ण स्वतन्त्र होने की शक्ति है। इसी शक्ति का ध्यान करने को आचार्यो ने शास्त्रो में बताया है।
पहले समझते हैं शक्ति का मतलब क्या? जैसे एक पहलवान को जंजीरो मे जकङा हुआ है, और वह अब कुछ भी करने मे समर्थ नहीं। जैसे ही जंजीरे खुलती हैं तो वह अकेले २-३ पहलवानो को चित करने में समर्थ हो। तो हम कहेंगे कि जंजीरो में बंधे हुये पहलवान के दूसरे पहल्वानो को चित्त करने की शक्ति है मगर अभी व्यक्त रूप में नहीं है, एक बार जंजीर खोल के देखो तो सारी शक्ति समझ में आयेगी। उसी प्रकार कर्मो के बन्धन में आत्मा का ज्ञान, वीर्य, सुख संकुचित है, मगर है उसमे शक्ति अनन्त ज्ञान, वीर्य और सुख की। जो एक बार कर्म नष्ट हो जाते तो एकदम प्रकट हो समझ मे आती हैं जैसे पहलवान के उदाहरण मे हमने समझा।
लोक में भी शक्तिओं का ध्यान करके ही कार्य बनता है। अगर एक राजा दूसरे राजा से युद्ध करे, और उसकी सेना को अपने जीतने की शक्ति पर विश्वास ही ना हो तो क्या राजा जीत सकता है? इसी प्रकार हमारे मन के विकार जीतने हो और अपने अन्दर वीतराग शक्ति का ध्यान ना हो, तो विकार भी जीता नहीं जा सकता।
जैसे हमें क्रोध जीतना हो तो हम ध्यान करें कि हमारे अन्दर शक्ति है कि हम विपरीत अवस्थाओं में शान्त रह सकूं। हमें लोभ जीतना है तो हम ध्यान करें कि हमारे अन्दर शक्ति है कि हम समस्त लोभ रहित हो सकते हैं। बाहर में विषय को देखकर चित्त डगमगा जाये, तो ध्यान करें कि हम विषयों को जीतने की शक्ति से युक्त हैं। दसलक्षण के अवसर पर हमारे अन्दर धर्म रूप परिणत होने की शक्ति का ध्यान करें। अरहंत भगवान की भक्ति करें तो साथ में अपने अन्दर अरहंत होने की शाक्ति का भी ध्यान करें। साधू सन्तो के दर्शन करें तो हमरे अन्दर तप, परिषह में वीतरागता धारण करने की शक्ति का ध्यान करें। इस प्रकार का ध्यान करें कि हमारे अन्दर शक्ति है कि उनोदर करें और फ़िर भी वीतरागे रह सके, क्षुधा आदि परिषह हो तो फ़िर भी वीतरागी रह सके। हम सब जीवो के अन्दर ये शक्तियां समान रूप से विद्यमान हैं। इस प्रकार हम विभिन्न शक्तियों का ध्यान चलते फ़िरते कर सकते हैं। या फ़िर बैठकर कर सकते हैं, अगर मन ना लगे तो मंत्र ध्यान के साथ भी कर सकते हैं। ऐसा practical हम खुद अपने पर करे।
इस प्रकार उस शक्ति का ध्यान करने से चमत्कार हो जाता है। कर्मो की अवस्था पर परिवर्तन होने लगता है। समस्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अनुकूल हो जाते हैं। और शीघ्र ही वो शक्तियां व्यक्त होने लग जाती है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुख के लिये क्या क्या करता है।
संसारी जीव: सोचता है विषयो से सुख मिलेगा, तो उसके लिये धन कमाता है। विषयो को भोगता है। मगर मरण के साथ सब अलग हो जाता है। और पाप का बन्ध ओर ...
-
रत्नकरण्ड श्रावकाचार Question/Answer : अध्याय १ : सम्यकदर्शन अधिकार प्रश्न : महावीर भगवान कौन सी लक्ष्मी से संयुक्त है...
-
सहजानन्द वर्णी जी सहज चिन्तन, सहज परिक्षा, करे सहज आनन्द, सहज ध्यान, सहज सुख, ऐसे सहजानन्द। न्याय ज्ञान, अनुयोग ज्ञान, अरू संस्कृत व्या...
-
The overview of 8 anga is at: http://www.jainpushp.org /munishriji/ss-3-samyagsarshan .htm What is Nishchaya Anga, and what is vyavhaar: whi...
No comments:
Post a Comment