Saturday, March 13, 2021

Virodhi Hinsa

 जब दूसरे को क्रोध या कषाय पूर्वक दुख पहुंचाने के भाव हैं तो वो संकल्पी हिंसा है। और जब अपने को बचाने के लिये दूसरे का घात होता है, उसमें दूसरे को दुख पहुंचाने का क्रोध पूर्वक भाव नहीं है- वरन अपने को बचाने का भाव है.. वह विरोधी हिंसा है।

मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...