सूत्र ४: प्रभु की प्रतिमा साक्षात प्रभु ही हैं
हम रोज मन्दिर जाते हैं, और प्रभु प्रतिमा के दर्शन करते हैं। उसका सच्चा फ़ल तभी है जब हम ये समझे कि यह प्रतिमा नहीं साक्षात प्रभु हैं।
इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। जैसे कि हम video game खेले और उसमे कम्प्यूटर के साथ tennis खेल रहे हों, तो उसमें मजा तभी है जब हम ऐस माने कि हम वास्तव मे tennis खेल रहे हैं। इसी प्रकार से जब हम किसी movie देखने जायें और movie देखते वक्त ये मान ले कि ये ही विचार करते रहे कि ये तो सब अभिनेता इत्यादि ने घन कमाने हेतु किया है, वास्तव में ऐसी कोई घटना घटी नहीं जैसी movie में दिखाई है, तो हम क्या movie का मजा ले पायेंगे, और क्या उस सन्देश को समझ पायेंगे जो movie देना चाह रही है? इसका मतलब जिस चीज का जो प्रयोजन हो हम उसे उसी अनुसार माने तो ही कार्य बन सकता है।
उसी प्रकार हम जब मन्दिर में जायें तो यह समझ ले कि हम साक्षात प्रभु के दर्शन करने जा रहे हैं, उसी में हमारा कल्याण है। साक्षात अनन्त सुखी, सम्पूर्ण विश्व को जानने वाले प्रभु को दर्शन करे। मन्दिर जाते वक्त, पूजा करते वक्त, प्रक्रिमा लेते वक्त, नमस्कार करते वक्त, अर्घ्य चढाते वक्त इसी बात का ध्यान रखे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इच्छा और अपेक्षा
🌿 *इच्छा और अपेक्षा* 🌿 1️⃣ इच्छा क्या है? इच्छा एक कामना है — किसी बात के होने की सरल अभिलाषा। जैसे — > “मुझे अच्छा स्वास्थ्य चाहिए।” ...
-
रत्नकरण्ड श्रावकाचार Question/Answer : अध्याय १ : सम्यकदर्शन अधिकार प्रश्न : महावीर भगवान कौन सी लक्ष्मी से संयुक्त है...
-
The overview of 8 anga is at: http://www.jainpushp.org /munishriji/ss-3-samyagsarshan .htm What is Nishchaya Anga, and what is vyavhaar: whi...
-
सहजानन्द वर्णी जी सहज चिन्तन, सहज परिक्षा, करे सहज आनन्द, सहज ध्यान, सहज सुख, ऐसे सहजानन्द। न्याय ज्ञान, अनुयोग ज्ञान, अरू संस्कृत व्या...
No comments:
Post a Comment