सूत्र ३: पर वस्तु से सुख दुख नहीं होता।
हमारी लोक में यह धारणा रहती है कि अमूक व्यक्ति ने हमें सुख दिया या दुख दिया। सामने वाले व्यक्ति ने कुछ उपकार कर दिया, तो हम कहते हैं कि हमें सुख दिया। कोई अच्छा TV serial देख लिया तो हमने कहा कि इसने कितना सुख दिया। ऐसा ही दुख में भी होता है। घर पर किसी से ना बने तो कहते हैं कि हमारी सास ने तो हमे बङा ही परेशान किया है।
वास्तव में क्या कोई हमें सुखी दुखी कर सकता है? इसमें विचार २ तरीके से करते है।
१. पहली बात तो यह- कि हमें निमित्त अपने कर्मानुसार मिले। अच्छे कर्म थे तो किसी निमित्त ने आकर हमरा भला कर दिया। बुरे थे तो बुरा कर दिया। तो हम दूसरे को सुखी दुखी करने का जिम्मेदार किस प्रकार ठहरा सकते हैं? यही बात सूत्र ’जो हुआ सो न्याय’ में भी समझी थी।
२. अब दूसरी बात यह है कि जो सुख दुख हुआ वो अपने कषाय के अनुसार हुआ। जब हम कहते हैं कि दूसरे व्यक्ति या वस्तु ने हमे अच्छा या बुरा किया तो हमे जो दुख हुआ वो अपनी कषाय के अनुसार हुआ। अच्छा निमित्त मिलने पर हम रति या लोभ कषाय से ग्रसित हुये तो हमने कहा कि आपने तो मजा दिला दिया। वास्तव में हम खुद ही सुखी दुखी हुवे या दूसरे ने हमें सुखी दुखी कराया, इसके समझने के लिये निमित्तों से सम्बन्ध समझते हैं। ये दो प्रकार के हैं-
२ क) निमित्त driven: अग्नि और पानी का सम्बन्ध: ये ऐसा सम्बन्ध है कि अगर अग्नि और पानी का संयोग हो तो पानी गर्म होगा ही होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि अग्नि का संयोग तो हो मगर पानी गर्म ना हो। एक और उदाहरण लें तो जैसे थाली पर चम्मच मारे तो थाली पर कम्पन्न होगा ही होगा।
२ ख) उपादान driven: मछली और पानी का सम्बन्ध: मछली और पानी के बीच मे सम्बन्ध अलग प्रकार का है। जब मछ्ली गमन करती है तो पानी सहायक होता है, मगर पानी मछली को गमन कराता नहीं है। मछली चाहें तो पानी का सहयोग लेकर गमन करे चाहें तो स्थिर रहे। एक और उदाहरण लें - जैसे जमीन और हमारा उस पर चलना। जमीन हमें चलाती नहीं है, मगर हमारे चलाने में सहायक बनती हैं।
उपर्युक्त दो प्रकार के सम्बन्धो में ये विशेष बात देखने में आती है कि पहले वाले सम्बन्ध में निमित्त contribute कर रहा है कार्य होने में, जबकि दूसरे प्रकार के सम्बन्ध में उपादान निमित्त का आश्रय ले रहा है। या दूसरे शब्दो में कहे कि पहला सम्बन्ध निमित्त driven है और दूसरा सम्बन्ध उपादान driven है। पहले सम्बन्ध में निमित्त की मर्जी कि वो कार्य को drive करे या ना करे। और दूसरे सम्बन्ध में उपादान की मर्जी की वो कार्य drive करे या ना करे। अब हम दुबारा से उपर के उदाहरणो (२क, २ ख) को पढे तो ये बात एकदम स्पष्ट हो जायेगी।
जो हमें व्यक्तियों और पर वस्तुओं से सुख दुख होता है उसमे दूसरी प्रकार का सम्बन्ध बनता है। अर्थात उन सम्बन्धो मे दुख या दुख हमारे द्वारा driven है। हमारी मर्जी कि हम उस निमित्त का आश्रय लेकर सुखी हों या दुखे हो। हमारी खुशी/दुख दूसरी वस्तु drive नहीं करती वरन हम drive करते हैं। और खास बात यह है कि हम चाहें जैसे drive कर लें। चाहें तो उस निमित्त पर सुखी हो जाये और चाहे दुखी और चाहे तो एक सन्त की भांति वीतरागी। I am the driver whether I want to have pain, pleasure or equanimity.
जैसे कि एक horror movie को देखके कुछ लोग भयभीत हो जाते हैं और कुछ मस्त लोग उस पर ठहाके मार के हंसते हैं। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मछली होती है- चाहें तो वो पानी मे रहकार उत्तर दिशा की और दौङ लगा ले और चाहें तो दक्षिण की ओर, और चाहें तो निराकुल अपने स्थान पर ही बैठी रहे। एकदम उसी प्रकार यहां पर भी बात लागू होती है। सो सार यह है कि हम पर वस्तु से नहीं अपनी ही राग द्वेष से दुखी होते हैं। और ऐसा श्रधान करने से हम पर-वस्तु पर होने वाले राग द्वेष को जीत निरकुल सुखी ओर शान्त हो सकते हैं।
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