Thursday, May 16, 2024

सुख के लिये क्या क्या करता है।

संसारी जीव: 



  • सोचता है विषयो से सुख मिलेगा, तो उसके लिये धन कमाता है। विषयो को भोगता है। मगर मरण के साथ सब अलग हो जाता है। और पाप का बन्ध ओर हो जाता है।
  • सोचता है सत्ता से सुख मिलेगा, तो सत्ता प्राप्त करने को पुरूषार्थ करता है। मगर मरण के साथ वो भी चली जाती है। और पाप का बन्ध और हो जाता है।
  • सोचता है अच्छे रूप, बलिष्ट शरीर मेरे लिये अच्छा रहेगा। उसके लिये प्रयास करता है।
  • सोचता है कि मेरा समाज अच्छा रहेगा तो बढिया होगा। समाज सेवा करता है।
  • सोचता कि मेरा यश होगा तो सुख मिलेगा। तो उसके लिये पुरूषार्थ करता है|
  • इसी प्रकार परिवार, धन आदि में जहां जहां उसे लगता है कि मेरे लिये हितकारी है, वहां वहां पुरूषार्थ करता है।


मगर ये सब क्षणिक हैं। और इनके प्रति पुरूषार्थ पाप कर्मो का ही संचय कराती है।


प्रश्न: जब शरीर भी नहीं हूं, तो आत्मा साधना ही करूं, परिवार वालो के प्रति कर्तव्यो का निर्वाह क्यों करूं?

उत्तर : हमारे अन्दर कितनी विरक्ति होती है उसके अनुसार ही कार्य करने योग्य है। अगर जीव में पर्याप्त विरक्ति है, तो परिवार छोङकर सन्यास धारण क...