’वह गुस्सैल है’ - यह दूसरे की पर्यायगत अवस्था है। मगर ऐसा समझ लिया जाता है कि वो तो गुस्सैल ही है। जबकि उसका स्वभाव तो पारिणामिक भाव (जीवत्व) भाव है। गुस्सैल स्वभाव तो पर्यायगत अवस्था है। ऐसा समझने से हम दूसरे को गुस्सैल पर्याय अपेक्षा ही लेंगे। द्रव्य अपेक्षा उसका स्वभाव तो जीवत्व रूप है, और वो एकदम वैसा ही है जैसा मेरा है। ऐसे अनेकान्त से हमरा संक्लेश कम होता है और उसे एकान्त से गुस्सैल नहीं मानते।
इसी प्रकार अपनी बुद्धि, शरीर आदि पर्याय को अपना स्वभाव आदि मान लेना भी गलत है। और दुख प्रदान करने वाला है।
यह दोनो प्रकार की पर्याय पर लेना है - गुण पर्याय और द्रव्य पर्याय।
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