*पर भोक्तृत्व का उदाहरण*:
- मैंने विषय को भोगा
*स्व भोक्तृत्व*:
- मैने अपने परिणाम को ही भोगा। उसमें उपादान कारण मैं था, और पर पदार्थ उसमें निमित्त कारण था।
*पर भोक्तृत्व में भूल*:
- अपने उपादान कारण और अन्य निमित्तो को गौण करके, मेरे भोगने में सारा कारण पर पदार्थ पर डाल दाना।
*पर कर्तत्व से नुकसान*:
- मैने अपने परिणमन में दूसरे को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। अपने भोक्तृत्व के अर्जन, संरक्षण, विनाश में संक्लेश प्राप्त करता है। मैं इस सुख को ऐसे ही भोगता रहूं, ये दुख मेरा नष्ट हो जाये, मुझी ऐसा सुख ओर मिल जाये - इन्ही विकल्पो में घूमता रहता है। और अपने सच्चे सुख को भोगने का पुरूषार्थ नहीं करता।
Note: मुझे जब कोई चीज लगती है - कि यह मेरी है। तभी मुझे उसमें कुछ करने का .. उसमें सुधार करने का.. या उससे सुख प्राप्त करने का विकल्प जागता है। यही कर्म चेतना और कर्मफ़ल चेतना को जन्म देती है, और कर्म बन्धन करवाती है।
No comments:
Post a Comment