Monday, February 21, 2022

द्वैत से अद्वैत की ओर

 द्वैत:
शत्रु - बन्धु 
सुख - दुख 
प्रशंसा - निन्दा 
सोना - कांच
जन्म - मरण 

अद्वैत:
सब पर!

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मैं किसी को छूता ही नहीं

वास्तविक जगत और जो जगत हमें दिखाई देता है उसमें अन्तर है। जो हमें दिखता है, वो इन्द्रिय से दिखता है और इन्द्रियों की अपनी सीमितता है। और जो ...