ऐसा जीवन.. जहां कोई इष्ट नहीं, अनिष्ट नहीं.. जो सभी निमित्तो को नोकर्म रूप देखता है.. अपने को स्वतन्त्र रूप जान लिया है..
जहां किसी पर क्रोध नहीं, आकांक्षा नहीं, भय नहीं..
जो जान चुका है.. कि मैं अकेला हूं, स्वतन्त्र हूं.. मेरा किसे से कोई लेन देन नहीं..
जिसका जीवन संसार से अछूता है..जिसने अपनी आत्मा को ही छू के सुखी रहना सीख लिया है.. जिसका लक्ष्य मात्र सुख और ज्ञान के विकास का ही रह गया है..
ऐसे जीवन को प्रणाम!
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