Saturday, February 26, 2022

कर्मो के नोकर्म

 

नोकर्म = जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव और भाव जिस प्रकृति के उदयस्वरूप फ़ल में कारणभूत हों वह द्रव्य-क्षेत्र आदि उन उन प्रकृति के नोकर्मद्रव्यकर्म समझना। (गो0क0 गाथा 68 आदिमति जी टीका)


विभिन्न कर्मो के नोकर्म:

ज्ञानावरणवस्तु के चारों तरफ़ लगा कनात का कपङा

दर्शनावरण – राजा के दर्शन न करने देने वाला द्वारपाल

वेदनीय – शहद लपेटी तलवार की धार

मोहनीय - मदिरा

आयु – अन्नादि आहार

नाम - शरीर

गोत्र – ऊंचा-नीचा शरीर

अंतराय – भंडारी

मतिज्ञानावरण – वस्तु को ढ़ंकने वाले वस्तादि पदार्थ

श्रुतज्ञानावरण – पंचेन्द्रिय के विषयादि

अवधिज्ञानावरण – संक्लेश परिणाम को करने वाली बाह्य वस्तु

मनःपर्याय ज्ञानावरण – संक्लेश परिणाम को करने वाली बाह्य वस्तु

केवलज्ञानावरण – कोई वस्तु नहीं

चक्षु दर्शनावरण – वस्तु

अचक्षु दर्शनावरण – वस्तु

आवधिदर्शनावरण – अवधिज्ञान के समान

केवलदर्शनावरण – केवलज्ञान के समान

5 निद्रायें – भैंस का दही, लहसुन, खली आदि पदार्थ

साता वेदनीय – इष्ट अन्नपानादि वस्तु

असाता वेदनीय – अनिष्ट अन्नपानादि वस्तु

सम्यक्त्व प्रकृति – 6 आयतन

मिथ्यात्व प्रकृति – 6 अनायतन

सम्यक्मिथ्यात्व प्रकृति – आयतन और अनायतन मिले हुवे

अनन्तानुबन्धी – 6 अनायतन आदि

अप्रत्याख्यानावरण आदि – घातक काव्य ग्रन्थ, नाटक ग्रन्थ, कोकादि ग्रन्थ अथवा पापी लोगो की संगति

स्त्रीवेद – स्त्री का शरीर

पुरूषवेद – पुरूष का शरीर

नपुंसकवेद -स्त्री, पुरूष और नपुंसक का शरीर

हास्यकर्म- विदूषक और बहरूपिया आदि

रतिकर्म – अच्छा गुणवान पुत्र

अरति कर्म – इष्ट वस्तु का वियोग होना, अनिष्ट का संयोग

शोक कर्म – स्त्री आदि का मरना

भयकर्म – सिंह आदि

जुगुप्सा कर्म – निंदित वस्तु

नरकायु – अनिष्ट आहार- नरक की विषरूप मिट्टी

तीर्यंच – इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसे अन्न-पानी आदि

गति नामकर्म – चार गतियों का क्षेत्र है।

एकेन्द्रिय आदि जातियां – अपनी अपनी द्रव्येन्द्रिय

शरीर नामकर्म – नमकर्म द्रव्य से उत्पन्न हुवे अपने शरीर के स्कंधरूप पुद्गल

औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस शरीर नामकर्म – अपने अपने उदय से प्राप्त हुई शरीर वर्गणा ।

कार्माण शरीर – विस्रसोपचय रूप परमाणु

बन्धन नामकर्म से लेकर जितनी पुद्गल विपाकी प्रकृतियां हैं उनका, और पहले कही हुई प्रकृतियों के सिवाय जीवविपाकी प्रकृतियों मे से बची प्रकृतियां – नोकर्म शरीर

क्षेत्र विपाकी अनुपूर्वी प्रकृतियां – अपना अपना क्षेत्र

स्थिर नामकर्म – अपने अपने ठिकाने पर रहने वाले रस-रक्त आदि

अस्थिर नामकर्म – अपने अपने ठिकाने से चलायमान रस-रक्त आदि

शुभ प्रकृति – नोकर्म द्रव्य शरीर के शुभ अवयव

अशुभ प्रकृति – नोकर्म द्रव्य शरीर के अशुभ अवयव

स्वर नामकर्म – सुस्वर रूप परिणमे पुद्गल परमाणु

दुःस्वर नामकर्म – दुःस्वर रूप परिणमे पुद्गल परमाणु

नीच गोत्र – लोकपूजित कुल में उत्पन्न हुआ शरीर

उच्च गोत्र – लोक निंदित कुल में उत्पन्न हुआ शरीर

दानादि अन्तराय – दानादि में विघ्न करने वाले पर्वत, नदी, पुरूष, स्त्री आदि

दीर्यान्तराय – रूखा आहार आदि बल के नाश करने वाले पदार्थ

 

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