नोकर्म = जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव
और भाव जिस प्रकृति के उदयस्वरूप फ़ल में कारणभूत हों वह द्रव्य-क्षेत्र आदि उन उन
प्रकृति के नोकर्मद्रव्यकर्म समझना। (गो0क0 गाथा 68 आदिमति जी टीका)
विभिन्न कर्मो के नोकर्म:
ज्ञानावरण – वस्तु
के चारों तरफ़ लगा कनात का कपङा
दर्शनावरण – राजा के दर्शन न करने देने वाला
द्वारपाल
वेदनीय – शहद लपेटी तलवार की धार
मोहनीय - मदिरा
आयु – अन्नादि आहार
नाम - शरीर
गोत्र – ऊंचा-नीचा शरीर
अंतराय – भंडारी
मतिज्ञानावरण – वस्तु को ढ़ंकने वाले वस्तादि
पदार्थ
श्रुतज्ञानावरण – पंचेन्द्रिय के विषयादि
अवधिज्ञानावरण – संक्लेश परिणाम को करने वाली
बाह्य वस्तु
मनःपर्याय ज्ञानावरण – संक्लेश परिणाम को करने
वाली बाह्य वस्तु
केवलज्ञानावरण – कोई वस्तु नहीं
चक्षु दर्शनावरण – वस्तु
अचक्षु दर्शनावरण – वस्तु
आवधिदर्शनावरण – अवधिज्ञान के समान
केवलदर्शनावरण – केवलज्ञान के समान
5 निद्रायें – भैंस का दही, लहसुन, खली आदि
पदार्थ
साता वेदनीय – इष्ट अन्नपानादि वस्तु
असाता वेदनीय – अनिष्ट अन्नपानादि वस्तु
सम्यक्त्व प्रकृति – 6 आयतन
मिथ्यात्व प्रकृति – 6 अनायतन
सम्यक्मिथ्यात्व प्रकृति – आयतन और अनायतन मिले
हुवे
अनन्तानुबन्धी – 6 अनायतन आदि
अप्रत्याख्यानावरण आदि – घातक काव्य ग्रन्थ,
नाटक ग्रन्थ, कोकादि ग्रन्थ अथवा पापी लोगो की संगति
स्त्रीवेद – स्त्री का शरीर
पुरूषवेद – पुरूष का शरीर
नपुंसकवेद -स्त्री, पुरूष और नपुंसक का शरीर
हास्यकर्म- विदूषक और बहरूपिया आदि
रतिकर्म – अच्छा गुणवान पुत्र
अरति कर्म – इष्ट वस्तु का वियोग होना, अनिष्ट
का संयोग
शोक कर्म – स्त्री आदि का मरना
भयकर्म – सिंह आदि
जुगुप्सा कर्म – निंदित वस्तु
नरकायु – अनिष्ट आहार- नरक की विषरूप मिट्टी
तीर्यंच – इन्द्रियों को प्रिय लगे ऐसे
अन्न-पानी आदि
गति नामकर्म – चार गतियों का क्षेत्र है।
एकेन्द्रिय आदि जातियां – अपनी अपनी
द्रव्येन्द्रिय
शरीर नामकर्म – नमकर्म द्रव्य से उत्पन्न हुवे
अपने शरीर के स्कंधरूप पुद्गल
औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस शरीर नामकर्म – अपने अपने उदय से
प्राप्त हुई शरीर वर्गणा ।
कार्माण शरीर – विस्रसोपचय रूप परमाणु
बन्धन नामकर्म से लेकर जितनी पुद्गल विपाकी
प्रकृतियां हैं उनका, और पहले कही हुई प्रकृतियों के सिवाय जीवविपाकी प्रकृतियों
मे से बची प्रकृतियां – नोकर्म शरीर
क्षेत्र विपाकी अनुपूर्वी प्रकृतियां – अपना अपना
क्षेत्र
स्थिर नामकर्म – अपने अपने ठिकाने पर रहने वाले
रस-रक्त आदि
अस्थिर नामकर्म – अपने अपने ठिकाने से चलायमान
रस-रक्त आदि
शुभ प्रकृति – नोकर्म द्रव्य शरीर के शुभ अवयव
अशुभ प्रकृति – नोकर्म द्रव्य शरीर के अशुभ
अवयव
स्वर नामकर्म – सुस्वर रूप परिणमे पुद्गल
परमाणु
दुःस्वर नामकर्म – दुःस्वर रूप परिणमे पुद्गल
परमाणु
नीच गोत्र – लोकपूजित कुल में उत्पन्न हुआ शरीर
उच्च गोत्र – लोक निंदित कुल में उत्पन्न हुआ
शरीर
दानादि अन्तराय – दानादि में विघ्न करने वाले
पर्वत, नदी, पुरूष, स्त्री आदि
दीर्यान्तराय – रूखा आहार आदि बल के नाश करने वाले
पदार्थ
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