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सच |
झूठ |
नय |
ये मेरी माता है |
जिस प्रकार के कर्म किये उसके अनुसार कोख
मिली। जो जीवन में सुख दुख मां के निमित्त से मिले, वैसे ही कर्म मैने किये थे। इस प्रकार के
सम्बन्ध को, जो उन विशेष
कर्मो के फ़लीभूत होने में निमित्त हो, उस कहते हैं मां। |
उस सम्बंध में कर्मो की समझ ना होने से,
उस सम्बन्ध को
अनित्य/अशरण रूप ना जानने से जो उसके प्रति एकान्त रूप (मात्र नित्यरूप और शरण
रूप अनुभव करने) से मेरे पने का भाव हुआ। वह झूठ है। और यह दृष्टी मोह और राग
मिश्रित है। |
उपचरितअसद्भूत व्यवहार |
ये मेरा बहन है |
जिस प्रकार के मैने और बहन ने कर्म किये उसके
अनुसार दोनो को एक ही कोख मिली। जो जीवन में सुख दुख बहन के निमित्त से मिले,
वैसे ही कर्म मैने किये
थे। इस प्रकार के सम्बन्ध को, जो उन विशेष
कर्मो के फ़लीभूत होने में निमित्त हो, उस कहते हैं बहन। |
उस सम्बंध में कर्मो की समझ ना होने से,
उस सम्बन्ध को
अनित्य/अशरण रूप ना जानने से जो उसके प्रति एकान्त रूप (मात्र नित्यरूप और शरण
रूप अनुभव करने) से मेरे पने का भाव हुआ। वह झूठ है। और यह दृष्टी मोह और राग
मिश्रित है। |
उपचरितअसद्भूत व्यवहार |
घर/धन आदि |
जिस प्रकार के मैने कर्म किये उसके अनुसार
धन/घर आदि की प्राप्ति हुई। जो जीवन में सुख दुख उनके निमित्त से मिले, वैसे ही कर्म मैने किये थे। |
उस सम्बंध में कर्मो की समझ ना होने से,
उस सम्बन्ध को
अनित्य/अशरण रूप ना जानने से जो उसके प्रति एकान्त रूप (मात्र नित्यरूप और शरण
रूप अनुभव करने) से मेरे पने का भाव हुआ। वह झूठ है। और यह दृष्टी मोह और राग
मिश्रित है। |
उपचरितअसद्भूत व्यवहार |
वेदना |
जिस प्रकार के मैने कर्म किये उसके अनुसार
शारीरिक वेदना (दुखद, दुखद) की
प्राप्ति हुई। |
उस सम्बंध में कर्मो की समझ ना होने से,
उस सम्बन्ध को
अनित्य/अशरण रूप ना जानने से जो उसके प्रति एकान्त रूप (मात्र नित्यरूप और शरण
रूप अनुभव करने) से मेरे पने का भाव हुआ। वह झूठ है। और यह दृष्टी मोह और राग
मिश्रित है। |
अशुद्ध निश्चय
नय |
राग-द्वेष |
मेरे ज्ञान, श्रधान, चारित्र और कर्म के उदय
से राग-द्वेष हुवे |
इनको अपना ही स्वभाव मान लेना |
अशुद्धन निश्चय
नय |