शरीर संसार बढ़ाने के लिये:
- विषयों की पूर्ती के लिये (पांच इन्द्रिय)
- कषाय की पूर्ती के लिये (क्रोध, मान, लोभ आदि की पूर्ति के लिये)
- पांच पाप के लिये
शरीर संसार घटाने के लिये
- तप - निर्जरा के लिये
- समिति, वैयावृत्ति, स्वाध्याय, स्तुति आदि के लिये
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