ऐसा समझ में आता है कि संसारी जीव को ये चीजे चाहिये
▪️इन्द्रिय सुख
▪️मानसिक सुख
▪️अपने मान और अन्य कषायो की पूर्ती
▪️अच्छा मकान, व्यवसाय, धन, परिग्रह
▪️अच्छा शरीर, परिवार आदि
*अब देखते हैं कि ये चीजे क्यों चाहियें?*
बिना ज्ञान के कोई डायबीटीज का मरीज चीनी खाता रहता है, उसे उसमें रस लेकर आनन्द मानता है, मगर यह नहीं जानता कि वो अपने पैरो पर कुल्हाङी मार रहा है। ऐसे ही हम संसारी जीव अनादि से कर रहे हैं।
▪️*इन्द्रिय सुख*: वो इसको नित्य बनाने का प्रयास करता रहता है, जबकि वो अनित्य है। "इससे कर्म बन्ध होता है इसलिये ये मेरे दुख का कारण है, यह नहीं समझता", बल्कि उसे मित्र समझकर प्राप्त करने का प्रयास करता है। उसे यह नहीं समझ में आता कि इन्द्रिय सुख केवल हमें इन्द्रिय सुख दे सकता है, मानसिक सुख नहीं। इस प्रकार गलत समझ से वो इसी के पीछे भागता रहता है, और उसमें अनेक पाप करते हुवे बहुत पाप कर्मो का संचय करता है।
▪️*मानसिक सुख*: अपने थोङे से मानसिक सुख के लिये या तनाव मुक्त होने के लिये ही अधिकतर धर्म या अध्यात्म करता है, मगर शाश्वत सुख को नहीं जानता। मानसिक सुख इष्ट अनिष्ट, ममत्व, कर्तत्व, भोक्तृत्व आदि की वजह से होती है। मगर उसे अपने मानसिक सुख के कारण बाहर ही दिखाई देते हैं, और बाहर में चीजे इकट्ठी करता है, और अपने अन्दर की इष्ट अनिष्ट आदि बुद्धि को सही करने का प्रयास नहीं करता।
▪️*मान की पुष्टी* के लिये प्रसिद्धि, धन आदि चाहता है। उन्हे इस प्रकार इकट्ठा करताहै , जैसे वो हमेशा इसके पास रहने वाले हों। उन्हे और अपने शरीर को अपना मानता है। उन्हे सुख का कारण मानता है, जबकि वो उसके कर्म बन्धन में ही कारण बनते हैं।
▪️*हिंसा* करके सुख मानता है। कषाय को अपना स्वभाव मानता है। और उन्ही में लगा रहता है।
▪️*सच्चे सुख का ज्ञान नहीं*: उसे सच्चे सुख और ज्ञान का भान नहीं। इसलिये इन्द्रिय सुख और इन्द्रिय ज्ञान के पीछे ही भागता रहता है।
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