संसार में लोग क्यों भटक रहे हैं:
अज्ञानता वश भटक रहे हैं और दुख भोग रहे है।
- (आस्रव तत्त्व) हिंसा में आनन्द मान रहे हैं, जबकि कर्म का आस्रव हो रहा है।
- (आस्रव तत्त्व) परिग्रह में सुख मान रहें हैं, जबकि वो छुटने वाला है।
- (आस्रव तत्त्व) धन इकट्ठा होकर मानी हो रहे हैं, जबकि उसका राग तेरा पतन कर रहा है।
- (बन्ध तत्त्व) दूसरे को सुख दुख का कारण समझकर उसे हटाने या जुगाङने की कोशिश में लगा है, जबकि मूल कारण कर्म के लिये कुछ नहीं कर रहा।
- (आस्रव तत्त्व) मानसिक दुखी तीव्र कषायो से होता है| उसके लिये दूसरो को दोष दे रहा है। जबकि इसकी कषायो की जिमीदारे को इसकी खुद की है।
- (आस्रव तत्त्व) इन्द्रिय सुख के पीछे भाग रहा है, जबकि उससे दुख ही मिलता है। अतिन्द्रिय सुख को जानता ही नहीं।
- (मोक्ष तत्त्व) इन्दिय ज्ञान को बढ़ाने में लगा है, जबकि अतिन्द्रिय ज्ञान के बारे में पता हीन हीं
- (मोक्ष तत्त्व) संयोगो में सुख समझ रखा है, जबकि सुख सबके वियोग में है।
- (आस्रव तत्त्व) कषायों को बिमारी नहीं समझता।
- (मोक्ष तत्त्व) मुक्ति सुखको ना जानता है, और ना ही उसके लिये कार्य करता है।
- (जीव अजीव तत्त्व) पर्यायबुद्धि होकर दुखी हो रहा है। शरीर और कषाय को अपना मान बैठा है। बिमारी को अपना स्वभाव मान बैठा है।
- (संवर निर्जरा तत्त्व) तप, ज्ञान, ध्यान को उपयोगी नहीं मानता।
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