Sunday, July 5, 2020

ममता, इष्ट अनिष्ट चिन्तन

वस्तु मेरी, या इष्ट-अनिष्ट नहीं होती, मगर हमारे उसके साथ हमारे interactions कभी उपकारक और कभी अपकारक बनते हैं। जब उपकारक बनते हैं, तो हम ऐसा मानने लगते हैं कि इससे हमारे सम्बन्ध सदा उपकारक ही रहेंगे। जैसे कोई अनित्य वस्तु थोङे ही समय के लिये हमारे पास है, मगर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि ये सदा रहेगा। ऐसे हे उपकारक सम्बनध होने पर, इससे मेरे को सदा उपकार होगा, ऐसा प्रतीत होने लगता है। 


और उस वस्तु में इष्टपने की बुद्धि बना लेते हैं, और उससे राग करते हैं। और जो इससे राग या द्वेष करते हैं, उससे भी राग द्वेष करता है। इस वस्तु में राग की वजह से पांच पाप, चार कषाय, इन्द्रिय भोग भी करता है। जबकि उस वस्तु में इष्टपने की मानयता मिथ्या है। पुण्य उदय वशात उस वस्तु के साथ उपकारक सम्बन्ध बन गया। अनादि से अनन्त काल तक कर्म वशात उसी वस्तु से कभी उपकारक और कभी अपकारक सम्बन्ध बन जाता है।


इस दुनिया सब जीवो के अन्य जीवो से कर्म वशात उपकारक/अपकारक सम्बन्ध तो हैं, मगर इष्ट अनिष्ट सम्बन्ध नहीं हैं। कोई जीव दूसरे किसी जीव को सदा उपकार ही करता हो, या अपकार ही करता हो ऐसा कोई सम्बन्ध नहीं है। मगर ऐसी मान्यता मोह वशात है जिसे इष्ट-अनिष्ट बुद्धि कहते हैं।


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