Monday, April 2, 2012

Visit to India to Jain Saints - March 2012


हस्तिनापुर में महाराज जी के दर्शन

मैंने मुनिमहाराज जी के हस्तिनपुर में दर्शन किये। उनका नाम तो भूल गया- मगर इतना धयान है कि वें आचार्य धर्मभूषण महाराज जी के शिष्य थे। उनको मैने सुबह आहार दिया और मेरा दुर्भाग्य कि रबङी लेते वक्त उसमें बाल निकल जाने से उनका अन्तराय हो गया।

उन्होने बतलाया कि ’कोई तुम्हारे दस हजार रूपये लूटे - तो उससे द्वेष ना करो क्योंकि वो तो पुराने कर्मो का कर्जा था जो तुमने वापस किया। उसके पास जाओ और कहो दस-बीस रूपये और लेले- अगर कुछ पुराने लेन देन का ब्याज बचा रह गया हो।’ बाद में वो व्यक्ति कभी मिले तो कहना- ’जय जिनेन्द्र।’ और मन से आशीष देना ’खुश रहो’।

उन्होने कहा कि अगर श्रावक जबरदस्ती मुनिमहाराज को गरिष्ट भोजन खिलाये तो इसमें मुनि महाराज जी अपना दोष समझे। उन्होने बतलाया कि एक बार एक मुनिमहाराज जी ने एक आचार्य जी से कहा कि श्रावक बहुत जबरदस्ती करते हैं, और ना चाहते हुये भी बहुत गरिष्ट भोजन खिला देते हैं। तो आचार्य जी ने कहा कि अगर कोई रोटी के दो ग्रास तुम्हारी अंजली में रखे और उसके ऊपर स्टील की कटोरी रख दे, तो क्या तुम स्टील की कटोरी खा लोगे या अन्तराय करोगे? उनका कहने का मतलब यह समझ में आया। श्रावक लोग कैसा भी करे, मुनि महाराज जी अपने को दृढ़ रहना चाहिये।

एक बार एक मुनिमहाराज दिल्ली में गये और आंकङी ली कि ब्रहमचारी से ही आहार लूंगा। उन्हे एक गरीब ब्रहम्चारिणि मिली और उन्होने आहार किया। उन्हे आहार में खिचङी इत्यादि ही मिली। जब महाराज जी जाने लगे तो एक सेठ ने ब्रहम्चारिणी को उलाहना दी कि तूने महाराज जी को खिचङी खिला कर ही भेज दिया। इस बात पर महाराज जी ने कहा- ’अब हमारा नीयम है कि अगले ३० दिन तक हम केवल खिचङी, दूध और पानी ही आहार में लेंगे और गरीब के घर ही आहार लेंगे जिसके घर आहार सामान्यतया नहीं होता।’

मेरे को महाराज जी की बातो का निष्कर्ष निकला कि अपने को सुधारो दूसरो को नहीं।

हस्तिनापुर में भरत भूषण महाराज जी के दर्शन

मैने भरत भूषण महराज जी के दर्शन किये। उनके शरीर पर काली मैल की परत जमी हुई, पसीने से शरीर लथपथ देखा। बाद में पिताजी ने बतलाया कि वे काय को बिल्कुल नहीं साफ़ करते और कोई श्रावक साफ़ करने की चेष्टा करे तो उसे डांट देते  है। मुझे उनके शरीर के प्रति वीतरागता देख काफ़ी प्रेरणा मिली।

उनसे बात करने पर उन्होने बतलाया कि एक बार कुछ मुसलमानो ने उन्हे कहा- ’देखो आ गये नंगे बाबा’। इस पर उनके साथ चलने वाले श्रावको ने प्रतिरोध करने की कोशिश की तो महराज जी ने मना कर दिया। उन्होने कहा- कि सही तो कह रहे हैं- शरीर तो है ही नंगा, आत्मा भी नंगी है- उसमें कोई विकार नहीं। हमारी तो आत्मा भी नंगी, इसलिये कहने दो।

महाराज जी सदा प्रसन्न दिखते हैं। मानो उनके अन्दर कोई विकार ही ना हो। चर्या कठोर पालन करते हैं और आदर्शो को पालन करते में रत रहते हैं।

सोनागिरी जी में उत्तम सागर महराज जी के दर्शन

सोनागिरी जी में उत्तम सागर महराज जी से दर्शन हुवे। महाराज जी ने समझाया- ’जब तुम camera से फ़ोटो खींचते हो तो रील पर प्रकाश आता है और कैमरे की खिङकी फ़ोटॊ खींचते ही एक दम बन्द हो जाता है। उसी प्रकार जब भगवान के दर्शन करो तो भगवान को देखो और फ़िर आंखे बन्द कर लो। एक दम बन्द कर लो। उनके फ़ोटो अन्दर खींच लो और देखो ’यही तो मैं हूं’। मैं ही तो परमात्मा हूं। यही तो मेरा स्वरूप है।’ महाराज जी ने रात भार इसका चिन्तन करने को कहा।

मैने इसके बारे में रात भर सोचा। अगले दिन सुबह उठके उन्हे आहार दिया। उन्होने पूछा ’तुम्हारी गाङी garage की है कि showroom की?’ मैने कहा- ’समझ नहीं आया’। महाराज जी ने पूछा- ’शादी हुई की नहीं?’ मैने कहा- ’जी। मेरी गाङी तो garage की है’ महाराज जी ने अफ़सोस जाहिर किया, मगर कहा अगले भव में ध्यान रखना।


सोनागिरी जी में अमित सागर महराज जी के दर्शन

सोनागिरी जी में अमित सागर महाराज जी से चर्चा हुई: उन्होने कहा नमोकार मंत्र की जाप इस प्रकार करे: पहले आती जाती श्वास को देखें। जब श्वास सामान्य हो जाये और आने वाले और जाने वाली श्वास में लगभग समान समय लगे तब नमोकार मंत्र की जाप शुरू कर दे। सांस लेते हुये णमो अरिहंताणं, सांस छोङते हुये णमो सिद्धाणं, सांस लेते हुये णमो आइरियाणं, सांस छोङते हुये णमो उवज्झायाणं, सांस लेते हुये णमो लोए, सांस छोङते हुये सव्वसाहूणं का उच्चारण करें।’ मैने पूछा कि इसमें तो १०८ बार की जाप करने में बहुत समय लग जायेगा। उन्होने समझाया कि ज्यादा समय लगे तो थोङे समय के लिये ही करो- जितने हो जाये उतने ही बढिया। उन्होने भक्तामर स्त्रोत्र के भी उच्चारण के नये तरीके बतलाये।

उन्होने बतलाया- क्रमबद्धपर्याय सही concept नहीं। हिन्दुओं ने बोला कि भगवान ही कर्ता धर्ता है इसलिये तुम कुछ मत करो। और क्रमबद्धपर्याय वाले कहते हैं कि भगवान ने जो देख लिया वैसा ही होगा, इसलिये तुम कुछ मत करो। दोनो ही concepts पुरूषार्थ का लोप करते हैं।

उन्होने यह भी बतलाया कि आजकल जैन श्रावको को पूजा का फ़ल इसलिये कम मिलता है क्योंकि वें अर्घ चढाने में लापरवाही करते हैं। भगवान को अर्घ में मूल्यवान वस्तुयें चढायें। जैसे भिन्न भिन्न प्रकार के फ़ल बदल बदल के चढावें। कभी बादाम, कभी किशमिश, कभी अखरोट इत्यादि। दीप पर पीले चावलों की जगह थोङा सा कपूर जला ले और घर पर बनी धूप को उस पर खे देवें। भगवान का अभिषेक सामन्य पानी की जगह उसमें थोङा कपूर मिला लेवें।

मैने पूछा- ’महाराज जी ठण्ड गर्मी में परिषह कैसे सहते हैं?’ महाराज जी ने बताया- ’ज्ञान का अमृत पीकर’। मैने पूछा - ’महाराज जी आपका आत्मा का ध्यान होता है?’। महाराज जी ने कहा  ’अगर इतना नहीं होता तो यहां नहीं होते। हमने बाहर का नहीं अन्दर का पाया है।’

महाराज जी ने तत्वार्थ सूत्र के शुरू के ७-८ सूत्र समझाये और बतलाया कि मेरे को भी उसे रीति से दूसरो को समझाना चाहिये।

महावीर जी, राजस्थान, में मुनि प्रार्थना सागर महाराज जी के दर्शन

महावीर जी, राजस्थान, में मेरी मुनि प्रार्थना सागर महाराज जी से चर्चा हुई। मैने उन्हे jcnc मन्दिर में होने वाली अभिषेक पद्ध्ति के बारे में बतलाया और बताया कि हम जल प्रासुक नहीं करते, क्योंकि हमारे पास सुबह समय नहीं होता - तो उन्होने कहा कि एक हीटर ले ले - 200 W - 500 W का- उससे जल को २-३ मिनट में प्रासुक कर लें।

महाराज जी ने एक नीती की पुस्तक दी - वो नीति की पुस्तक मुझे बहुत ही बढिया लगी। उसकी pdf शायद उनकी website पर उपलब्ध हो।

ऋषभांचल जी में कौशल माता जी के दर्शन

ऋषभांचल जी में कौशल माता जी से चर्चा हुई। उन्होने ज्ञान और दर्शन के बीच में अन्तर बतलाया। ज्ञान पर को जानता है और दर्शन स्व को। उन्होने यह भी बतलाया - दर्शन स्व को जानते हुये भी स्वानुभव से भिन्न है। क्योंकि मिथ्यादृष्टि के दर्शन में मोहनीय का स्वाद आता है और स्वानुभवी को उसका स्वाद नहीं आता।

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