Based on Ratan Karand Shravakachara Shloka 27
- कुल मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे कुल से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो कुल से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- जाति मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे जाति से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो जाति से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- रूप मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे रूप से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो रूप से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- ज्ञान मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे ज्ञान से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो ज्ञान से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- धन मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे धन से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो धन से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- बल मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे बल से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो बल से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- तप मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे तप से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो तप से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
- प्रभुता मद: अगर मेरे पास रत्नत्रय है, तो मुझे अच्छे प्रभुता से क्या लाभ। क्योंकि उससे श्रेष्ठ सम्पत्ति रत्नत्रय मेरे पास है। इसके विपरीत अगर मिथ्यात्व, अविरति आदि आस्रव हैं तो प्रभुता से क्या प्रयोजन - क्योंकि इस आस्रव से दुर्गतिगमन तो अवश्यवमेव होगा।
अर्थात केवल यही प्रयोजनीय है कि मेरे को रत्नत्रय है या मिथ्यात्व, अविरति आस्रव है। बाकी कुछ भी प्रयोजनीय नहीं। जिस प्रकार बनिया देखता है कितना मुनफ़ा हुआ, बस वही प्रयोजनीय है- इस बात से कोई मतलब नहीं कि जो ग्राहक आया वो कौन से गांव से आया कौन से कुल का था। उसे प्रकार अपने को यही प्रयोजनीय है कि अपना श्रद्दान, ज्ञान, चारित्र सम्यक है कि मिथ्या। बाकी कुल, जाति, प्रभाव, नाम आदि कुछ प्रयोजनीय नहीं।
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