Wednesday, June 3, 2020

हे प्रभु! क्या मुझे मोक्ष प्राप्त हो पायेगा?

अनादि से कर्म बन्धन में हूं। ऐसा कर्म बन्धन जिसमें अनन्त काल बीत गया। ऐसा अनन्त जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसे किसी संख्या में ना बांधा जा सके। क्या ऐसे कर्म बन्धन का मैं नाश कर पाऊंगा? क्या इस मोहनीय को मैं जीत पाऊंगा?

द्रव्यकर्म और भावकर्म के चक्रवात में अनादि से घूमता हुआ, क्या मैं विश्राम प्राप्त कर पाऊंगा? जो अनादि से नहीं कर पाया, वो क्या अब कर पाऊंगा? जिस मोहनीय ने मेरी बुद्धि ही भ्रष्ट कर दी है, क्या उसे जीत पाऊंगा?


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हे कर्मो, जब तुम्हे अपनी स्थिति आने पर छुट ही जाना है, तो तुम मेरे से बन्धते ही क्यों हो? हे परिवार जनो जब तुम्हे एक दिन मुझे अलविदा ही कहना है, तो मुझे तुम अपना बनाते ही क्यों हो? 

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