अनादि से कर्म बन्धन में हूं। ऐसा कर्म बन्धन जिसमें अनन्त काल बीत गया। ऐसा अनन्त जिसकी कोई सीमा नहीं, जिसे किसी संख्या में ना बांधा जा सके। क्या ऐसे कर्म बन्धन का मैं नाश कर पाऊंगा? क्या इस मोहनीय को मैं जीत पाऊंगा?
द्रव्यकर्म और भावकर्म के चक्रवात में अनादि से घूमता हुआ, क्या मैं विश्राम प्राप्त कर पाऊंगा? जो अनादि से नहीं कर पाया, वो क्या अब कर पाऊंगा? जिस मोहनीय ने मेरी बुद्धि ही भ्रष्ट कर दी है, क्या उसे जीत पाऊंगा?
-----------------
हे कर्मो, जब तुम्हे अपनी स्थिति आने पर छुट ही जाना है, तो तुम मेरे से बन्धते ही क्यों हो? हे परिवार जनो जब तुम्हे एक दिन मुझे अलविदा ही कहना है, तो मुझे तुम अपना बनाते ही क्यों हो?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
इच्छा और अपेक्षा
🌿 *इच्छा और अपेक्षा* 🌿 1️⃣ इच्छा क्या है? इच्छा एक कामना है — किसी बात के होने की सरल अभिलाषा। जैसे — > “मुझे अच्छा स्वास्थ्य चाहिए।” ...
-
रत्नकरण्ड श्रावकाचार Question/Answer : अध्याय १ : सम्यकदर्शन अधिकार प्रश्न : महावीर भगवान कौन सी लक्ष्मी से संयुक्त है...
-
The overview of 8 anga is at: http://www.jainpushp.org /munishriji/ss-3-samyagsarshan .htm What is Nishchaya Anga, and what is vyavhaar: whi...
-
I present my trip details and learnings from my first and only visit to Acharya Shree Vidya Sagar Ji Maharaj's Sangh. I got fortunate to...
No comments:
Post a Comment