- हर एक आदमी की अपनी limitations होती हैं, और कहीं ना कहीं वो अपनी मर्यादाओं को जानता भी है पर अगर वो उसे स्वीकारता है और अपनी मर्यादाओं की सीमा को पार करने की कोशिश करता है तो कभी ना कभी कामयाब जरूर होता है। पर अगर वो उसे जानने से इंकार कर देता है, जानबूझ कर अपने को भ्रम में रखने की कोशिश रखता है दिखावा करता है, तो पकङा जाता है। और फ़िर वो लोगो की हंसी का कारण बनता है।
- दूसरो की गल्तियां देखने में हम अक्सर अपनी गल्ती नहीं देखते हैं
- दूसरे की गल्ती देखूं, उससे अच्छा है कि मैं अपनी गल्ती देखूं और उसे सुधारूं।
- सुख: सुख वही है जिससे ऊब ना जाये, कभी जी ना भरे।
- शर्बत एक जैसा होने पर भी जिसको सुख का ज्यादा अनुभव करना है उसे पहले लम्बे समय तक प्यासा रहकर अपनी प्यास का दुख बढ़ाना पढ़ेगा।
- सुख की बुनियाद क्या है: शर्बत या प्यास का दुख। (प्यास ज्यादा हो तो शर्बत अच्छा लगता है, अगर पहले से ही तृप्त हो तो शर्बत पीने में दुख मिलेगा, सुख नहीं।)
- क्या शर्बत से हमेशा सुख का अनुभव ही होगा?: अगर तृप्त होगा तो नहीं, वह दुख देगा।
- जितना प्यास का दुख उतना सुख, उसके बाद उसी से उल्टा दुख।
- साधनो से सुख मिलता नहीं है, ऐसा नहीं कह रहा हूं। लेकिन सारे सुखो की बुनियाद दुख ही है।
- Pain relieve का process ही सुख बनके रह गया है। जिस चीज का pain होगा उसको relieve करने में ही उसे सुख मिलेगा। Every enjoyment process is a painkiller remedy.
- जैसे जैसे तृष्णा का दुख घटता गया, सुख भी घटता गया। और जैसे तृष्णा का दुख गायब, सुख भी गायब, उलटा दुखदायक बन गया।
- इससे सिद्ध हुआ कि सारे भौतिक सुख वस्तु आधारित या व्यक्ति आधारित नहीं बल्कि दुख आधारित होते हैं । अगर भौतिक सुख पाना है तो पहले दुख को जमा करना पङता है, प्यास और तृष्णा में झुलसना पङता है, तब कहीं जाकर उस दुख को हलका करने का process enjoyment बन पायेगा। ऐसे भ्रामक सुख के पीछे दौङते दौङते अपना सारा जीवन क्यों गवां देना।
- बचपन में खिलौनो से सुख मिलता है। बङे होकर यार, दोस्त, होटल, सिनेमा, प्यार में सच्चा सुख मानने लगते हैं। मगर maturity आते ही safe and secure भविष्य में सुख नजर आने लगता है। फ़िर degree, नौकरी, business, बीवी, बच्चे, परिवार य सब जमाने में ही सुख मिलता है। ये मिलता है तो अगली stage में best in business, best in society बनने की कोशिश रहती है। और जैसे तैसे ये सब पा ले तो उम्र निकल जाती है, और परिवार से सुख मिलेगा ऐसा सोचते। मगर तब तो उनके सुख पाने की यात्रा शुरू हो जाती है। उसमें चाहते हुये भी वो आपको कितना समय से पायेंगे। यहां क्या किसी भी वस्तु या व्यक्ति से ऐसा सुख मिलता है जिससे कभी ऊब ना जाये, कभी जी ना भरे? ऐसा सुख मिलता है? मिलता है, तो जिन्दगी के हर मोङ पर सुख के मायने क्यों बदल जाते हैं। क्यों उम्र बङते ही इच्छायें बङती जाती हैं। Problem यह कि हम सुख की भ्रमणा से प्रेरित होकर दौङते ही रहते हैं। और अन्त में अनन्त इच्छाओं से पैदा हुवे दुख के ढेर पर सुख की इन्तजार करते बैठे रहते हैं।
- इस भौतिक विश्व में किसी ने भी इन्द्रियों के भोगो के साधनो से कभी ऊब ना जायें ऐसा सुख पाया है। नहीं पाया है। ये possible ही नहीं है। क्योंकि सारे भौतिक सुख दुख से इतने गहरे जुङे है कि जैसे ही दुख गायब होता है सुख automatically दुख में convert हो जाता है, फ़िर कहां रहता है सुख। क्योंकि सुख की व्याख्या तो पहले ही तय कर चुके हैं कि जिससे कभी ऊब ना जायें बही सुख है।
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