उनको तो मैं स्याही से रच सकता।
मगर जो मेरे ह्रदय और बुद्धि से पार हैं,
उन्हे रचने का मैं ढोंग ही कर सकता॥
ऊंचे पर्वत पर पहुंच चुके वीर को देख,
उसका प्रशंसा करना आसान है।
मगर जो पहुंच चुके वहां, जहां नजरे पहुंच ना सके,
उनका गुणगान करना मेरी कलम से बाहर है।
जो धर्म में आगे बङे चुके हैं,
उनकी स्तुति तो मैं कर सकता हूं
मगर जो धर्म के सागर मुनिवर आचार्य हैं,
उनकी स्तुति का तो ढ़ोंग ही कर सकता हूं।
कुछ अच्छे वाक्य:(जो संघ में सीखे)
- मन के गुलाम नहीं बनना, मन को अपना गुलाम बनाना है।
- बहुत नहीं, बहुत बार पढ़ो।
- दूसरो से अपेक्षा रखोगे तो दुख मिलेगा, अपने से अपेक्षा रखोगे तो प्रेरणा मिलेगी।
- कष्ट सहिष्णु बनो।
- जीवन को प्राकृतिक रखना चाहिये। जितना प्राकृतिक रखो, उतना स्वस्थ। A.C., heater का प्रयोग ना करने का अभ्यास करें।
- ’ऐसा करो’ ऐसा मत कहो। ’ये सही है, ये गलत है। तुम्हारा जैसा मन करे वैसा कर लो’ ऐसा कहो। अगर सामने वाला गलत ही करे, तो संक्लेष ना करो।
- समता विपत्ति का सबसे बढ़ा प्रतिकार है।
- अधिक से अधिक ३ समय शरीर से वियोग ना हो, इसलिये जीव अपने नीयम भी छोङ देता है।
- जिस प्रकार अंधकार में पदार्थ नहीं दिखता, वैसे अहंकार में यथार्थ नहीं दिखता।
- पति पत्नि को निर्णय मिलकर लेने चाहियें।
- मल, मूत्र से दूर ही रहना चाहिये, इससे अशुद्धता होती है।
- सम्यक्दर्शन के ८ अंग धारण करो।
- घर में सामूहिक स्वाध्याय करना चाहिये। इससे सामूहिक पूण्य का अर्जन होता है, इससे परिवार पर आने वाली समस्याओं से समाधान होता है।
- प्रभावना करने का उपाय internet पर धर्म का प्रचार प्रसार करना नहीं, वरन चारित्र धारण करना है।
- बिमारी हो तो उसे असाता का उदय मानकर हर्षित हो- कि पुराना हिसाब चुकता हो रहा है। ऐसे असाता जल्दी निकल जाता है।
- सहन करने में समाधान है। जवाब देने में संघर्ष।
कुछ प्रश्न उत्तर जो किये:
प्रश्न: स्वास्थ्य आदि की कारण रात्रि भोकन त्याग ना कर सकें तो क्या करें।
उत्तर: (गम्भीरता पूर्वक)चारित्र दुर्लभ है।
प्रश्न: कई बार देर से उठने की वजह से सुबह अभिषेक, पूजन छुट जाता है, क्या करूं।
उत्तर: अभिषेक पूजन का उत्साह रखो। फ़िर नहीं छुटेगा।
प्रश्न: मैं कौन से स्तुति, ग्रन्थ को याद करूं।
उत्तर: पहले भक्तामर, फ़िर इष्टोपदेश
(एक ब्रहम्चारी बहन से प्रश्न) प्रश्न: नीयम ले नहीं कुछ कारण वश तो क्या करें।
उत्तर: जो असली में कारण हैं, उनकी छूट रख लो। पूरा नहीं कर सको तो जितना कर सको उतना नीयम लो।
त्याग तपस्या:
- एक साधर्मी से सुना कि आचार्य जी ने केशलोंच के दिन चौबीस घण्टे खङे होकर तपस्या करी। (नेमावर में)
- एक भाई से सुना कि आचार्य श्री ने संघ के अन्य मुनियो के साथ पूरी रात शमशान घाट में कई बार कायोत्सर्ग कर रात गुजारी।
- आचार्य श्री ने कई बार छत्तीस घण्टे एक पैर पर खङे होकर तपस्या करी।
- संघ में कई महाराज जी का मीठे, नमक का त्याग है। अगर मुनक्के इत्यादि का पानी बनाया तो उसे लेने से भी मना कर दिया।
- ४५ महाराज जी संघ में थे। रोज १०-१५ के उपवास होते थे। ८-१० के अन्तराय हो जाते थे। २०-२५ के ही निरन्तराय आहार हो पाते थी।
- रात को कई मुनि सर्दियों की रात मे भी चटाई का प्रयोग नहीं करते।
- दंशमंशक परिषहजय करते हैं।
संस्मरण:
- एक ब्रहम्चारी भैया जी के बालतोङ हो गया। वो आचार्य श्री के पास समाधान के लिये गये। आचार्य श्री ने कहा कि दवाई से जल्दी ठीक हो जायेगा, मगर दवाई का प्रयोग ना करो तो कष्ट ज्यादा होगा, मगर निर्जरा भी ज्यादा होगी। भैया जी ने दवाई का प्रयोग नहीं किया और गम्भीर दर्द को सहन कर जीता।
- एक सप्तम प्रतिमा धारी व्यक्ति के रीढ़ की हड्डी में slip होने पर भी कोई surgery नहीं कराई। दो साल बिना painkillers के भीषण दर्द भेदविज्ञान के सहारे जीते।
- एक ब्रहम्चारी बहन के देव दर्शन का नीयम था, फ़िर भी उन्होने युक्ति पूर्वक छूट रखी- जैसे महाराज जी को विहार कराते समय मन्दिर सुलभ नहीं हो पाता। अगर महाराज जी के लिये चौका लगा रहे हों, तो समय नहीं मिल पाता।
- एक ब्रह्मचारी बहन को बताया कि मुझे जीवन में स्वाध्याय करने में बहुत कष्ट आये- तो उन्होने कहा ’जो ज्ञान कष्ट सहकर प्राप्त होता है, वो कष्ट आने पर नहीं जाता’।
- एक ब्रहमचारी बहन ने बताया कि कि किस प्रकार उनके पिताजी की हड्डी टूटी और पैसो के अभाव में वो उपचार नहीं कर पायी, फ़िर ८ दिन तक विधान, और कुछ मंत्रो के माध्यम से उपचार हो गया।
- मंत्र शक्ति से गला खराब आदि स्वास्थ्य में परेशानी दूर हुई।