video: https://www.youtube.com/watch?v=pYqJKoKRGrY
फ़ूलों को चुनो, बुराइयों के कांटॊ और सङे गले पत्तो को देखकर अनदेखा करने की कोशिश करो। फ़ूल चुनना तुम्हारे ऊपर निर्भर है, तुम्हारे दृष्टि के ऊपर निर्भर है। तुम किस तरीके से आगे चलते हो, ये सोचना चाहिये। अच्छाई और बुराई दोनो संसार में हैं। अब ये हमारे ऊपर है कि हम उसमें से अच्छाई को ग्रहण करते हैं या बुराई को। जिस मनुष्य के ह्रदय में अच्छाई भरी होती है वो सदैव अच्छाईयां देखता है, अच्छाइयों को ग्रहण करता है। और जिसके मन में बुराइयां भरी होती हैं, उसे सब बुरा बुरा नजर आता है। कहा जाता है आंख में आप जैसा चश्मा लगा लो सारी दुनिया वैसी दिखने लगती है। काला चश्मा लगाने पर दुनिया काली, और हरा चश्मा लगा लेने पर सब हरा हरा दिखता है, ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस दृष्टि से देखते हो।
जो तुम्हारे से गुणों में ज्येष्ठ हैं, श्रेष्ठ हैं उनका सत्कार करो। अपने मन से पूछो कि तुम्हारे नजर में सबसे पहले क्या आता है अच्छाई या बिराई। किसी भी व्यक्ति से तुम्हारा सम्पर्क होता है तो तुम उसमें सबसे पहले उसमें क्या देखते हो- उसकी खूबी या खामी। दूसरो की खूबी देखना सबसे बङी खूबी है, दूसरो की खामी देखना सबसे बङी खामी है। गुणोको देखोगे, गुणात्मक विकास होगा। दोषो को देखोगे तुम्हारा जीवन दूषित होगा। तुम्हे तय करना है तुम्हे क्या करना है। वस्तुतः ये सब मनुशःय के नजरिये पर निर्भर करता है। जिस मनुष्य की सोच ऊंची होती है जिसका चिन्तन उदार होता है हिसका ह्रदय विशाल होता है, वह व्यक्ति दोष में भी गुण देखता है और जिस व्यक्ति की सोच ओछी होती है चिन्तन संकीर्ण होता है चित्त अनुदार होता है और ह्रदय छोटा होता है वह व्यक्ति गुणों में भी दोष देखता है। हमें देखना है कि हम क्या करते हैं। देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है सब कुछ।
आज के लिये चार बाते:
१) गुण ग्राहक बनें
२) गुण गायक बनें
३) गुण वाहक बनें
४) गुण धारक बनें
1. गुण ग्राहक-
सबसे पहले आपकी दृष्टि गुणो को ग्रहण करने की होनी चाहिये। मनुष्य की दुर्बलता है कि उसकी दृष्टि में गुण कम आते हैं, दोष जल्दी दिखते हैं। इस दुर्बलता को दूर करों। आज तक मैने जो किया सो किया - अब मैं गुणों को देखूंगा, दोषो को नहीं देखूंगा, क्योंकि दोष को देखने से कुछ नहीं मिलता, गुण को देखने से मिलेगा। दोष देखूंगा- पर के नहीं, निज के। अपने दोष देखो, पर के गुणों को देखो। तुम औरो के दोष देखते हो, और अपने गुण देखते हो। सन्त कहते हैं, दूसरो के दोषो के देखने से क्या होगा - अपने दोषो को देखोगे तो तुम्हारा जीवन सुधरेगा। गुरूदेव हमेशा कहा करते हैं - दूसरो के घर में झाङू लगाने से अपने घर का कचरा साफ़ नहीं होगा। इसलिये बुहारी लगानी है तो अपने घर में लगाओ। ऐसा दुनिया में कोई व्यक्ति जिसमें कोई दोष नहीं, और ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जिसमें कोई गुण नहीं। संसार के हर प्राणी में किसी ना किसी प्रकार का दोष है। तुम उसको देखोगे तो सब दुषित दिखेंगे। उसे मत देखो। गुण ग्राहक बनो- उन दोषो में से भी गुणों का अन्वेषण करना सीखो। कहीं ना कहीं कोई ना कोई गुण है। श्रीकृष्ण की उस बात को देखो - कि सबको मरा हुआ कुत्ता दिखा - उसकी सङी गली काया दिखी, और श्रीकृष्ण ने देखा - अरे इस कुत्ते की दन्त पंक्ति कितनी व्यवस्थित है। ये दृष्टीकोण का उदाहरण है। क्या देखते हो? दोष नहीं देखना, गुण देखना है। हम दोष देखें तो खुद के देखें, और औरो के लिये जब भी देखने की बात आये गुण देखें जहां भी कोई भी गुण हो उसका सत्कार करें। सन्त कहते हैं कि कुटिया हो या महल उसमें कम से कम एक प्रवेश द्वार होगा। कोई कितना भी महान व्यक्ति हो या पतित व्यक्ति हो, उसमें कोई ना कोई एक अच्छाई जरूरो होगी। किसके माध्यम से उसमें प्रवेश करो। कोई कितना भी बुरा है उसे बुरा कहने के बजाय उसकी बुराई में अच्छाई देखें। संसार में निर्दोष कोई नहीं, निर्दोष केवल भगवान हैं। संसार में जो हैं सबमें दोष हैं, जहां भी अच्छाई हो उसे देखो। बुराई में अच्छाई खोजने वाला मनुष्य कभी दुखी नहीं होता। जो अच्छाई में भी बुराई देखता है, उसकी जिन्दगी ऐसे ही खत्म हो जाती है। आप क्या देखते हैं - घर परिवार से चलिये। आपका बेटा है - हो सकता है उसमे कोई कमजोरी हो, बुराई हो। मेरे पास जितने भी परिवार अपने बच्चो को लेके आते हैं, उनका परिचय positive नहीं करते बल्कि negative ही करते हैं। कहते हैं कि महाराज - इसकी यह आदत खराब है, इसे सुधारिये। ये यह बात नहीं मानता इसे सुधारिये। ये गुटखा खाता है, इसे सुधारिये। ये वो करता है- इसे सुधारिये। वो कभी यह नहीं कहते कि मेरा बेटा बङा आज्ञाकारी है। मेरा बेटा मेरी किसी बात को उठाता नहीं, मेरा बेटा बङा धार्मिक है - कभी नहीं। किस से शुरूआत करते हैं- आलोचना से। और मैने देखा कि इसका ब्ङा विपरीत असर पङता है। बच्चो में झेंप आती है, संकोच पैदा होता है। फ़िर वो आने में भी संकुचाने लगते हैं। क्योंकि आपने जो पहले संपर्क कराया वो negative था। बुराई है, बुराइयो का पोषण मत कीजिये। लेकिन अच्छाइयों को highlight किजीये। उसकी अच्छाईयों को उभार दीजिये} जब मनुष्य की अच्छाईयां उभरेंगी, बुराई अपने आप दब जायेंगी। आप लोग उलटा करते हैं- बुराई को राई का पहाङ बना देते हैं। जबकि होना चाहिये अच्छाई को पहाङ बनाये। बुराई को उभारने का क्या? अच्छाई को उभारो। शराब की क्या प्रशंसा करनी, दूध की प्रशंसा करो। सामने वाला दूध के प्रति आकर्षित हो जायेगा। कहीं भी, कभी भी किसी की निन्दा मत करो। बुराई करने से प्रेम छुटता है, प्रशंसा करने से आत्मियता बङती है। क्या चाहिये? आत्मियता प्रेम, या बैर- वैमनस्य। अपने मन से पूछो - कोई चार आदमियों के बीच तुम्हारी आलोचना करे, क्या तुम्हारा मन प्रसन्न होगा उसके प्रति। उसके प्रति लगाव बङेगा या द्वेष की गांठ बंधेगी। कोई परोक्ष में तुम्हारी प्रशंसा करे, उसके प्रति तुम्हारी क्या धारणा होगी? सीधा सीधा सूत्र है - अपने दायित्व ऐसे manage करो- मैं सबके गुणो को देखूंगा। कर सकते हैं। चलो इतना नहीं कर सकते तो एक कदम आगे चलो। चलो किसी के दोष देखने की कोशिश नहीं करूंगा। कदाचित किसी के दोष दिख जाये, उसे दूसरो को नहीं बताऊंगा। इतना कर सकते हो। दोष दिख जायें, किसी को बताऊंगा नहीं। कर सकते हो। रोज भगवान से प्रार्थना करते हो - "दोष ढ़ाकू सभे का.." भगवान से जो भी प्रार्थना करते हो, किसको सुनाते हो? भगवान से वायदा कुछ करते हो, भगवान से कामना कुछ करते हो। वायदा कुछ और करते हो, वयवहार में कुछ ओर करते हो। कितनी दुर्बलता है, जीवन में सुख कैसे आयेगा।
अपने जीवन को सुखी बनाना चाहते हो, हमें अपनी approach ko change करना होगा। हमें गुण ग्राहक बनना है। कोई भी हो, हम उसके गुणों को उभारने की कोशिश करें। अच्छाईयों को उभारें, बुराइयां दबेंगी। वाक कला में एक कला है- कभी बात की शुरूआत आहिस्ता से मत करो। भोजन की शुरूआत खटाई या मिर्ची से मत करो। कैसे करते हो। सबसे पहले चटनी खाते हो या मीठा खाते हो।
2. गुण गायक बनें:
गुणग्राहक बनिय, गुणगायक बनिये। पहले तो गुण को ग्रहण करेंगे, आपका गुणात्मक विकास होगा। जब कभी आप किसी की अच्छाई को देखो, प्रशंसा करने में कसर मत छोङो। गुणगायक बनो। आप औरो का गुणगाण ही करते हो या निन्दा। गुणगान करो। प्रशंसा, प्रेरणा और प्रोत्साहन वह खुराक है, जो मरणासन्न में भी प्राण फ़ूंक देते हैं। घर परिवार से शुरूआत करो। अगर परिवार के किसी भी सदस्य में कोई भी गुण हो, तो उससे कुछ सीख लो - और जब भी मौका आये तो उसकी प्रशंसा में चूक मत करो। उसकी प्रशंसा करो। गुणगायक बनो। गुणगान करो।
आप लोग गुणगायक तो हो - मगर अपने, पर के नहीं। अपने मूंह मिया मिट्ठू। आत्मप्रशंसा तीव्र कषाय का लक्षण है। आत्म प्रशंसा ये हमारे आचार्यो ने तीव्र कषाय का लक्षण बतया है। अपनी प्रशंसा नहीं, औरो की प्रशंसा- जो गुणी है जिसमें जो गुण है, उसकी प्रशंसा करो। ओरो को बतलाओ ये कितना अच्छा है। बहुत अच्छा लगेगा। अवगुण दबेंगे, गुण बङेंगे। सामने वाले का आपके प्रति झुकाव बङेगा, लगाव बङेगा, प्रेम और आत्मियता बङेगी। और यही घर परिवार के प्रेम, शान्ति की एक मूल वृत्ति,उस तरीके से देखने की कोशिश करें। किसी के भी कोई भी अच्छा कार्य करे आप उसकी प्रशंसा करिये, पीठ थपथपाइये। कर पाते हैं? आपके घर के नौकर ने कुछ अच्छा कार्य किया, तो आपने उसकी कभी प्रशंसा की। रोज यहां पर तो driver time पर ले आता है, आपके लिये time पर आता है, time पर पहुंचा देता है। आप आनन्द से प्रवचन सुनके चले जाते हो - कभी driver की प्रशंसा करने की इच्छा हुई। अरे तुम बहुत बढ़िया गाङी drive करते हो - time पर हमें पहुंचा दिये - कभी ऐसा भाव आपके अन्दर आता है। एक-आध दिन प्रशंसा करके देखो। उसको धन्यवाद करके देखो। है driver तो क्या हुआ। उसके बिना तो तुम्हारे गाङी तो अटक जायेगी। तुम्हारे लिये कितने useful है। परिवार में तुम्हारे बेटा ने, बेटी ने, तुम्हारे भाई ने, तुम्हारे बहन नें, तुम्हारी दौरानी ने, तुम्हारी जेठानी ने अगर कुछ किया, प्रशंसा करना सीखिये। गुण गाइये। appreciation करिये। दोष तो बोलूंगा नहीं, और कहीं किसी के गुणगान का मौका आयेगा, तो चुकूंगा नहीं। कर सकते हैं, ऐसा? अगर आपको यहां मंच पर बुलाकर कङा किया जाये कि धर्म प्रभावना समीति बहुत अच्छा काम कर रही है, थोङी सी प्रशंसा में दो शब्द बोलिये। तो क्या होगा? आप सोच में पङ जाओगे कि मैं क्या बोलूं। कौन से शब्द बोलूं- हकीकत है ना? अगर आप से कह दिया जाय - धर्म प्रभावना समिति की क्या क्या कमियां हैं बताओ? तो क्या हो गया? अरे वो तो जुबान पर है!
ये मनुष्य की दुर्बलता है कि अच्छाइयों का वह अन्वेषण नहीं कर पाता। बुराइयां दिल में बैठ जाती हैं। खामियां निकालने वाले भरे हैं। गुणगायक बनिये। कोई भी हो उसकी हम आलोचना नहीं करेंगे, प्रशंसा करेंगे।
मैं आपको इतना ही कहता हूं कि दस गल्ती होने पर सामने वाले को एक बार टोको, एक गल्ती होने पर दस बार टोकने की कोशिश कभी मत करना। दस गल्ती हो एक बार टोकोगे, तुम्हारी बात का प्रभाव पङेगा, सामने वाले में सुधार होगा। और एक गल्ती पर दस बार टोकोगे, सामने वाला कहेगा ये तो ऐसे ही बकबक करते रहते हैं।
कमी खामी को निकालने का भी एक तरीका होता है। अन्दर हाथ सम्हार के, बाहर मारे चोट। सामने वाले को सुधारो। देखो ताला बन्द हो और ताला को खोलने का दो तरीका है। एक तरीका तो चाबी उसमें घुसाओ ताला खुल जायेगा, और दूसरा तरीका है हथोङी लाकर के ताले को पीटॊ और ताला खुल जायेगा। कौन सा तरीका अपनाना पसन्द करते हो। चाबी घुमाना, या हथौङी मारना। सामने वाले को ठीक तरीके से समझाने का मतलब है चाबी घुमाके उसके ह्रदय का ताला खोलना। और सामने वाले को उसकी कमियों पर डपट देने का मतलब है एक दम हथौङी ठोक करके उसे तोङने की कोशिश करना। ताला खुल तो जायेगा, मगर किसी काम का नहीं रहेगा। इसलिये हथौङी पीटने की आदत से बाज आइये। समझ में आ रही है बात?
गुणग्राहक बनिय, गुण गायक बनिये, गुण वाहक बनिये।
गुण वाहक बनने का मतलब - गुणों को फ़ैलाइये, दोषो को वहीं रोकिये। जितना बन सके स्व उन गुणों को पुष्ट किजीये और दूसरो के बीच उन गुणों का प्रसार करना शुरू कीजिये। जिस व्यक्ति को जो चाहिये होता है, वो उसी पर ध्यान केन्द्रित करता है। आप गुणों के इच्छुक होंगे, आपका ध्यान उसी तरफ़ जायेगा। Market में आप निकल रहे हो, jewellery खरीदनी है तो आप कौन सी दुकान की तरफ़ देखेंगे - crockey, grocery की, या jewellery की। और jewellery की दुकान पर भी चले गये, और आपको diamond या सोने की jewellery लेनी है तो क्या चांदी वालो के यहां जाओगे? वहां भी आपको अंगुठी लेनी है, तो आप अंगुठी की और देखोगे, या हार की तरफ़? निष्कर्ष क्या निकला? मनुष्य का चित्त उसी तरफ़ दौङता है, जो उसे चाहिये। तो मैं आपसे यही कहता हूं, कि अगर आपको गुण चाहिये तो अपने चित्त को केवल गुणों के साथ जोङ लो। और गुणो के साथ दौङना शुरू कर दो, तो गुण ही गुण प्रकट होते रहेंगे।
3. गुणवाहक बनिये।
देखिये दो प्राणी हैं- एक भौंरा और दूसरा मक्खी। भौंरे को भी आपने देखा, और मक्खी को भी देखा है। दोनो की वृत्ति में बहुत बङा अन्तर है। भौंरा हमेशा फ़ूल पर बैठता है। उसके पराग को चूसता है, उसके पराग को चूसकर जब वो दूसरे फ़ूल पर पहुंचता है तो उसके गुणो का कुछ अंश दूसरे फ़ूल पर छोङ देता है। उसी के कारण से पुष्पो में परागण की क्रिया होती है। तब उसमें फ़ल होता है, फ़ल में बीज होता है। बीज से फ़िर पौधा बनता है, और पौधा बनने के बाद बहुत सारे फ़ूल और फ़ा आ जाते हैं। ये भंवरे का काम। जो एक फ़ूल पर बैठा और दूसरे फ़ूल पर ले गया। तो इसका कुछ गुण कुछ वहां ले गया, तो गुणवाहक बना। यानि कहीं भी गया, तो वहां की बुराई को नहीं देखा, वहां की अच्छाई को अपने साथ लेकर के गया और उस अच्छाई को फ़ैलाया तो अच्छे से अच्छा, अच्छे से अच्छा, अच्छे से अच्छा फ़ैलता गया। वो सदैव अच्छाई पर ही बैठता है, वो ऐसी वैसी चीज पर नहीं बैठता। आपने मक्खी को देखा? मक्खी के एक तरफ़ मिष्ठान्न की थाली हो, और दूसरी तरफ़ विष्ठा पङा हो। मक्खी मिष्ठान्न की थाली की उपेक्षा करके विष्ठा पर बैठना ज्यादा पसन्द करती है। आपने देखा है? और वो क्या करती है? Infection फ़ैलाते है, और क्या करती है? मक्खी जिस चीज पर बैठ जायेगी, वो चीज शुद्ध नहीं रहेगी। आपके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। क्यों? क्योंकि मक्खी दोषवाहक है, भवंरा गुणवाहक है। समझ में आ रही है बात? बस अपने मन को टटोल कर देखो। तुम्हारा जीवन भवंरे की भांति है या मक्खी की भांति। तुम सद्गुणो के मिष्ठान्न या फ़ूलो पर बैठना पसन्द करते हो या बुराइयो की विष्ठा या गन्दगी पर बैठना पसन्द करते हो। तुम्हे तय करना है। तुम अपने मन से पूछो क्या मेरे भीतर किसी गुणवाहक व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है या नहीं। अपने भीतर झांक कर देखो।
फ़ूलों को चुनो, बुराइयों के कांटॊ और सङे गले पत्तो को देखकर अनदेखा करने की कोशिश करो। फ़ूल चुनना तुम्हारे ऊपर निर्भर है, तुम्हारे दृष्टि के ऊपर निर्भर है। तुम किस तरीके से आगे चलते हो, ये सोचना चाहिये। अच्छाई और बुराई दोनो संसार में हैं। अब ये हमारे ऊपर है कि हम उसमें से अच्छाई को ग्रहण करते हैं या बुराई को। जिस मनुष्य के ह्रदय में अच्छाई भरी होती है वो सदैव अच्छाईयां देखता है, अच्छाइयों को ग्रहण करता है। और जिसके मन में बुराइयां भरी होती हैं, उसे सब बुरा बुरा नजर आता है। कहा जाता है आंख में आप जैसा चश्मा लगा लो सारी दुनिया वैसी दिखने लगती है। काला चश्मा लगाने पर दुनिया काली, और हरा चश्मा लगा लेने पर सब हरा हरा दिखता है, ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस दृष्टि से देखते हो।
जो तुम्हारे से गुणों में ज्येष्ठ हैं, श्रेष्ठ हैं उनका सत्कार करो। अपने मन से पूछो कि तुम्हारे नजर में सबसे पहले क्या आता है अच्छाई या बिराई। किसी भी व्यक्ति से तुम्हारा सम्पर्क होता है तो तुम उसमें सबसे पहले उसमें क्या देखते हो- उसकी खूबी या खामी। दूसरो की खूबी देखना सबसे बङी खूबी है, दूसरो की खामी देखना सबसे बङी खामी है। गुणोको देखोगे, गुणात्मक विकास होगा। दोषो को देखोगे तुम्हारा जीवन दूषित होगा। तुम्हे तय करना है तुम्हे क्या करना है। वस्तुतः ये सब मनुशःय के नजरिये पर निर्भर करता है। जिस मनुष्य की सोच ऊंची होती है जिसका चिन्तन उदार होता है हिसका ह्रदय विशाल होता है, वह व्यक्ति दोष में भी गुण देखता है और जिस व्यक्ति की सोच ओछी होती है चिन्तन संकीर्ण होता है चित्त अनुदार होता है और ह्रदय छोटा होता है वह व्यक्ति गुणों में भी दोष देखता है। हमें देखना है कि हम क्या करते हैं। देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है सब कुछ।
आज के लिये चार बाते:
१) गुण ग्राहक बनें
२) गुण गायक बनें
३) गुण वाहक बनें
४) गुण धारक बनें
1. गुण ग्राहक-
सबसे पहले आपकी दृष्टि गुणो को ग्रहण करने की होनी चाहिये। मनुष्य की दुर्बलता है कि उसकी दृष्टि में गुण कम आते हैं, दोष जल्दी दिखते हैं। इस दुर्बलता को दूर करों। आज तक मैने जो किया सो किया - अब मैं गुणों को देखूंगा, दोषो को नहीं देखूंगा, क्योंकि दोष को देखने से कुछ नहीं मिलता, गुण को देखने से मिलेगा। दोष देखूंगा- पर के नहीं, निज के। अपने दोष देखो, पर के गुणों को देखो। तुम औरो के दोष देखते हो, और अपने गुण देखते हो। सन्त कहते हैं, दूसरो के दोषो के देखने से क्या होगा - अपने दोषो को देखोगे तो तुम्हारा जीवन सुधरेगा। गुरूदेव हमेशा कहा करते हैं - दूसरो के घर में झाङू लगाने से अपने घर का कचरा साफ़ नहीं होगा। इसलिये बुहारी लगानी है तो अपने घर में लगाओ। ऐसा दुनिया में कोई व्यक्ति जिसमें कोई दोष नहीं, और ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जिसमें कोई गुण नहीं। संसार के हर प्राणी में किसी ना किसी प्रकार का दोष है। तुम उसको देखोगे तो सब दुषित दिखेंगे। उसे मत देखो। गुण ग्राहक बनो- उन दोषो में से भी गुणों का अन्वेषण करना सीखो। कहीं ना कहीं कोई ना कोई गुण है। श्रीकृष्ण की उस बात को देखो - कि सबको मरा हुआ कुत्ता दिखा - उसकी सङी गली काया दिखी, और श्रीकृष्ण ने देखा - अरे इस कुत्ते की दन्त पंक्ति कितनी व्यवस्थित है। ये दृष्टीकोण का उदाहरण है। क्या देखते हो? दोष नहीं देखना, गुण देखना है। हम दोष देखें तो खुद के देखें, और औरो के लिये जब भी देखने की बात आये गुण देखें जहां भी कोई भी गुण हो उसका सत्कार करें। सन्त कहते हैं कि कुटिया हो या महल उसमें कम से कम एक प्रवेश द्वार होगा। कोई कितना भी महान व्यक्ति हो या पतित व्यक्ति हो, उसमें कोई ना कोई एक अच्छाई जरूरो होगी। किसके माध्यम से उसमें प्रवेश करो। कोई कितना भी बुरा है उसे बुरा कहने के बजाय उसकी बुराई में अच्छाई देखें। संसार में निर्दोष कोई नहीं, निर्दोष केवल भगवान हैं। संसार में जो हैं सबमें दोष हैं, जहां भी अच्छाई हो उसे देखो। बुराई में अच्छाई खोजने वाला मनुष्य कभी दुखी नहीं होता। जो अच्छाई में भी बुराई देखता है, उसकी जिन्दगी ऐसे ही खत्म हो जाती है। आप क्या देखते हैं - घर परिवार से चलिये। आपका बेटा है - हो सकता है उसमे कोई कमजोरी हो, बुराई हो। मेरे पास जितने भी परिवार अपने बच्चो को लेके आते हैं, उनका परिचय positive नहीं करते बल्कि negative ही करते हैं। कहते हैं कि महाराज - इसकी यह आदत खराब है, इसे सुधारिये। ये यह बात नहीं मानता इसे सुधारिये। ये गुटखा खाता है, इसे सुधारिये। ये वो करता है- इसे सुधारिये। वो कभी यह नहीं कहते कि मेरा बेटा बङा आज्ञाकारी है। मेरा बेटा मेरी किसी बात को उठाता नहीं, मेरा बेटा बङा धार्मिक है - कभी नहीं। किस से शुरूआत करते हैं- आलोचना से। और मैने देखा कि इसका ब्ङा विपरीत असर पङता है। बच्चो में झेंप आती है, संकोच पैदा होता है। फ़िर वो आने में भी संकुचाने लगते हैं। क्योंकि आपने जो पहले संपर्क कराया वो negative था। बुराई है, बुराइयो का पोषण मत कीजिये। लेकिन अच्छाइयों को highlight किजीये। उसकी अच्छाईयों को उभार दीजिये} जब मनुष्य की अच्छाईयां उभरेंगी, बुराई अपने आप दब जायेंगी। आप लोग उलटा करते हैं- बुराई को राई का पहाङ बना देते हैं। जबकि होना चाहिये अच्छाई को पहाङ बनाये। बुराई को उभारने का क्या? अच्छाई को उभारो। शराब की क्या प्रशंसा करनी, दूध की प्रशंसा करो। सामने वाला दूध के प्रति आकर्षित हो जायेगा। कहीं भी, कभी भी किसी की निन्दा मत करो। बुराई करने से प्रेम छुटता है, प्रशंसा करने से आत्मियता बङती है। क्या चाहिये? आत्मियता प्रेम, या बैर- वैमनस्य। अपने मन से पूछो - कोई चार आदमियों के बीच तुम्हारी आलोचना करे, क्या तुम्हारा मन प्रसन्न होगा उसके प्रति। उसके प्रति लगाव बङेगा या द्वेष की गांठ बंधेगी। कोई परोक्ष में तुम्हारी प्रशंसा करे, उसके प्रति तुम्हारी क्या धारणा होगी? सीधा सीधा सूत्र है - अपने दायित्व ऐसे manage करो- मैं सबके गुणो को देखूंगा। कर सकते हैं। चलो इतना नहीं कर सकते तो एक कदम आगे चलो। चलो किसी के दोष देखने की कोशिश नहीं करूंगा। कदाचित किसी के दोष दिख जाये, उसे दूसरो को नहीं बताऊंगा। इतना कर सकते हो। दोष दिख जायें, किसी को बताऊंगा नहीं। कर सकते हो। रोज भगवान से प्रार्थना करते हो - "दोष ढ़ाकू सभे का.." भगवान से जो भी प्रार्थना करते हो, किसको सुनाते हो? भगवान से वायदा कुछ करते हो, भगवान से कामना कुछ करते हो। वायदा कुछ और करते हो, वयवहार में कुछ ओर करते हो। कितनी दुर्बलता है, जीवन में सुख कैसे आयेगा।
अपने जीवन को सुखी बनाना चाहते हो, हमें अपनी approach ko change करना होगा। हमें गुण ग्राहक बनना है। कोई भी हो, हम उसके गुणों को उभारने की कोशिश करें। अच्छाईयों को उभारें, बुराइयां दबेंगी। वाक कला में एक कला है- कभी बात की शुरूआत आहिस्ता से मत करो। भोजन की शुरूआत खटाई या मिर्ची से मत करो। कैसे करते हो। सबसे पहले चटनी खाते हो या मीठा खाते हो।
2. गुण गायक बनें:
गुणग्राहक बनिय, गुणगायक बनिये। पहले तो गुण को ग्रहण करेंगे, आपका गुणात्मक विकास होगा। जब कभी आप किसी की अच्छाई को देखो, प्रशंसा करने में कसर मत छोङो। गुणगायक बनो। आप औरो का गुणगाण ही करते हो या निन्दा। गुणगान करो। प्रशंसा, प्रेरणा और प्रोत्साहन वह खुराक है, जो मरणासन्न में भी प्राण फ़ूंक देते हैं। घर परिवार से शुरूआत करो। अगर परिवार के किसी भी सदस्य में कोई भी गुण हो, तो उससे कुछ सीख लो - और जब भी मौका आये तो उसकी प्रशंसा में चूक मत करो। उसकी प्रशंसा करो। गुणगायक बनो। गुणगान करो।
आप लोग गुणगायक तो हो - मगर अपने, पर के नहीं। अपने मूंह मिया मिट्ठू। आत्मप्रशंसा तीव्र कषाय का लक्षण है। आत्म प्रशंसा ये हमारे आचार्यो ने तीव्र कषाय का लक्षण बतया है। अपनी प्रशंसा नहीं, औरो की प्रशंसा- जो गुणी है जिसमें जो गुण है, उसकी प्रशंसा करो। ओरो को बतलाओ ये कितना अच्छा है। बहुत अच्छा लगेगा। अवगुण दबेंगे, गुण बङेंगे। सामने वाले का आपके प्रति झुकाव बङेगा, लगाव बङेगा, प्रेम और आत्मियता बङेगी। और यही घर परिवार के प्रेम, शान्ति की एक मूल वृत्ति,उस तरीके से देखने की कोशिश करें। किसी के भी कोई भी अच्छा कार्य करे आप उसकी प्रशंसा करिये, पीठ थपथपाइये। कर पाते हैं? आपके घर के नौकर ने कुछ अच्छा कार्य किया, तो आपने उसकी कभी प्रशंसा की। रोज यहां पर तो driver time पर ले आता है, आपके लिये time पर आता है, time पर पहुंचा देता है। आप आनन्द से प्रवचन सुनके चले जाते हो - कभी driver की प्रशंसा करने की इच्छा हुई। अरे तुम बहुत बढ़िया गाङी drive करते हो - time पर हमें पहुंचा दिये - कभी ऐसा भाव आपके अन्दर आता है। एक-आध दिन प्रशंसा करके देखो। उसको धन्यवाद करके देखो। है driver तो क्या हुआ। उसके बिना तो तुम्हारे गाङी तो अटक जायेगी। तुम्हारे लिये कितने useful है। परिवार में तुम्हारे बेटा ने, बेटी ने, तुम्हारे भाई ने, तुम्हारे बहन नें, तुम्हारी दौरानी ने, तुम्हारी जेठानी ने अगर कुछ किया, प्रशंसा करना सीखिये। गुण गाइये। appreciation करिये। दोष तो बोलूंगा नहीं, और कहीं किसी के गुणगान का मौका आयेगा, तो चुकूंगा नहीं। कर सकते हैं, ऐसा? अगर आपको यहां मंच पर बुलाकर कङा किया जाये कि धर्म प्रभावना समीति बहुत अच्छा काम कर रही है, थोङी सी प्रशंसा में दो शब्द बोलिये। तो क्या होगा? आप सोच में पङ जाओगे कि मैं क्या बोलूं। कौन से शब्द बोलूं- हकीकत है ना? अगर आप से कह दिया जाय - धर्म प्रभावना समिति की क्या क्या कमियां हैं बताओ? तो क्या हो गया? अरे वो तो जुबान पर है!
ये मनुष्य की दुर्बलता है कि अच्छाइयों का वह अन्वेषण नहीं कर पाता। बुराइयां दिल में बैठ जाती हैं। खामियां निकालने वाले भरे हैं। गुणगायक बनिये। कोई भी हो उसकी हम आलोचना नहीं करेंगे, प्रशंसा करेंगे।
मैं आपको इतना ही कहता हूं कि दस गल्ती होने पर सामने वाले को एक बार टोको, एक गल्ती होने पर दस बार टोकने की कोशिश कभी मत करना। दस गल्ती हो एक बार टोकोगे, तुम्हारी बात का प्रभाव पङेगा, सामने वाले में सुधार होगा। और एक गल्ती पर दस बार टोकोगे, सामने वाला कहेगा ये तो ऐसे ही बकबक करते रहते हैं।
कमी खामी को निकालने का भी एक तरीका होता है। अन्दर हाथ सम्हार के, बाहर मारे चोट। सामने वाले को सुधारो। देखो ताला बन्द हो और ताला को खोलने का दो तरीका है। एक तरीका तो चाबी उसमें घुसाओ ताला खुल जायेगा, और दूसरा तरीका है हथोङी लाकर के ताले को पीटॊ और ताला खुल जायेगा। कौन सा तरीका अपनाना पसन्द करते हो। चाबी घुमाना, या हथौङी मारना। सामने वाले को ठीक तरीके से समझाने का मतलब है चाबी घुमाके उसके ह्रदय का ताला खोलना। और सामने वाले को उसकी कमियों पर डपट देने का मतलब है एक दम हथौङी ठोक करके उसे तोङने की कोशिश करना। ताला खुल तो जायेगा, मगर किसी काम का नहीं रहेगा। इसलिये हथौङी पीटने की आदत से बाज आइये। समझ में आ रही है बात?
गुणग्राहक बनिय, गुण गायक बनिये, गुण वाहक बनिये।
गुण वाहक बनने का मतलब - गुणों को फ़ैलाइये, दोषो को वहीं रोकिये। जितना बन सके स्व उन गुणों को पुष्ट किजीये और दूसरो के बीच उन गुणों का प्रसार करना शुरू कीजिये। जिस व्यक्ति को जो चाहिये होता है, वो उसी पर ध्यान केन्द्रित करता है। आप गुणों के इच्छुक होंगे, आपका ध्यान उसी तरफ़ जायेगा। Market में आप निकल रहे हो, jewellery खरीदनी है तो आप कौन सी दुकान की तरफ़ देखेंगे - crockey, grocery की, या jewellery की। और jewellery की दुकान पर भी चले गये, और आपको diamond या सोने की jewellery लेनी है तो क्या चांदी वालो के यहां जाओगे? वहां भी आपको अंगुठी लेनी है, तो आप अंगुठी की और देखोगे, या हार की तरफ़? निष्कर्ष क्या निकला? मनुष्य का चित्त उसी तरफ़ दौङता है, जो उसे चाहिये। तो मैं आपसे यही कहता हूं, कि अगर आपको गुण चाहिये तो अपने चित्त को केवल गुणों के साथ जोङ लो। और गुणो के साथ दौङना शुरू कर दो, तो गुण ही गुण प्रकट होते रहेंगे।
3. गुणवाहक बनिये।
देखिये दो प्राणी हैं- एक भौंरा और दूसरा मक्खी। भौंरे को भी आपने देखा, और मक्खी को भी देखा है। दोनो की वृत्ति में बहुत बङा अन्तर है। भौंरा हमेशा फ़ूल पर बैठता है। उसके पराग को चूसता है, उसके पराग को चूसकर जब वो दूसरे फ़ूल पर पहुंचता है तो उसके गुणो का कुछ अंश दूसरे फ़ूल पर छोङ देता है। उसी के कारण से पुष्पो में परागण की क्रिया होती है। तब उसमें फ़ल होता है, फ़ल में बीज होता है। बीज से फ़िर पौधा बनता है, और पौधा बनने के बाद बहुत सारे फ़ूल और फ़ा आ जाते हैं। ये भंवरे का काम। जो एक फ़ूल पर बैठा और दूसरे फ़ूल पर ले गया। तो इसका कुछ गुण कुछ वहां ले गया, तो गुणवाहक बना। यानि कहीं भी गया, तो वहां की बुराई को नहीं देखा, वहां की अच्छाई को अपने साथ लेकर के गया और उस अच्छाई को फ़ैलाया तो अच्छे से अच्छा, अच्छे से अच्छा, अच्छे से अच्छा फ़ैलता गया। वो सदैव अच्छाई पर ही बैठता है, वो ऐसी वैसी चीज पर नहीं बैठता। आपने मक्खी को देखा? मक्खी के एक तरफ़ मिष्ठान्न की थाली हो, और दूसरी तरफ़ विष्ठा पङा हो। मक्खी मिष्ठान्न की थाली की उपेक्षा करके विष्ठा पर बैठना ज्यादा पसन्द करती है। आपने देखा है? और वो क्या करती है? Infection फ़ैलाते है, और क्या करती है? मक्खी जिस चीज पर बैठ जायेगी, वो चीज शुद्ध नहीं रहेगी। आपके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। क्यों? क्योंकि मक्खी दोषवाहक है, भवंरा गुणवाहक है। समझ में आ रही है बात? बस अपने मन को टटोल कर देखो। तुम्हारा जीवन भवंरे की भांति है या मक्खी की भांति। तुम सद्गुणो के मिष्ठान्न या फ़ूलो पर बैठना पसन्द करते हो या बुराइयो की विष्ठा या गन्दगी पर बैठना पसन्द करते हो। तुम्हे तय करना है। तुम अपने मन से पूछो क्या मेरे भीतर किसी गुणवाहक व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है या नहीं। अपने भीतर झांक कर देखो।
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