"In this world everybody has some kind of suffering or the other. If you think you are suffering because you lack one thing, then you should look around and you would not find anybody with everything. One can have lot of things but not everything. There is difference in having lot of things than everything.
We can spend our whole life to fill those gaps - but not able to finish all those gaps. Therefore we should not get affected with gaps rather we should accept what we have.
Those who understand the reality of world, they are able to win over their expectations. All these expectations are meaningless. Expectations from others only bring suffering. We think once we fill those gaps we will be happy, but in reality we will never be happy. One who is not satisfied with his present, how can he be satisfied with his future.
We should accept what we have. Suffering is an essential element in this world ( Samsara). It depends on us whether we suffer it by crying or by becoming unaffected." - translated from discourses by Muni Shri Praman Sagar Ji
Sunday, February 21, 2016
Friday, February 19, 2016
About Greed
मैं गुजरात में तारंगा नाम के स्थान में गया। वहां एक पुरूष के एक रोटी लंगूर को खाने को दी। लंगूर ने रोटी को मूंह में डाला, और जब वह रोटी आधी उसके मूंह में और आधी बाहर थी, तभी एक दूसरा लंगूर आया और उस रोटी को अपने हाथ से छीनकर भागता चला। मुझे देखके ऐसा लगा कि देखो इन लंगूरो में नैतिकता का इतना अभाव है कि दूसरे के मूंह से रोटी तक ये छीन लेते हैं।
कुछ दिनो बाद मैं अपने शहर सहारनपुर आया और वहां भी एक घटना देखी। एक वुढ़िया रोटी दूध में डालकर एक कमजोर कुत्ते के लिये लायी। और उसने दूध में डूबी रोटी नीचे फ़र्श पर कुत्ते के लिये डाली। और तभी एक दूसरा ताकतवर कुत्ता दूर से भौंकते और गुर्राते हुवे आया, और उससे डरके कमजोर कूत्ता दूर भागने लगा। ताकतवर कुत्ता आके वह रोटी खाने लगा। बुढिया ने ताकतवर कुत्ते को धमकाया, मगर उसे इसका कोई असर नहीं पढ़ा। वो पूरी रोटी खा गया, और बुढ़िया दुखी होकर चली गयी। अब मैने समझा कि नैतिकता की कमी मात्र लंगूरो में ही नहीं बाकी जानवरो में भी है।
कुछ दिनो बाद और विचार आये तो ऐसा लगा कि यह अनैतिकता और भी जगह है - मात्र जानवरों में ही नहीं मनुष्यों में भी है। समाज में कोई अध्यक्ष की पदवी हो तो उसमें भी एक व्यक्ति दूसरे को हटाने के लिये और कुर्सी पाने के लिये अनेक दुष्कर्म करता है।
दुनिया में वस्तुयें तो सीमित हैं, और लोगो की इच्छायें असीम हैं, अतः यह समस्या सारी जगह है।
एक ही वस्तु की इच्छा जब दो या दो से अधिक लोग कर लेते हैं, तो समस्या हो जाती है। उसमें उन लोगो में संघर्ष शुरु हो जाता है क्योंकि वस्तु तो एक को ही मिल सकती है।
यह समस्या अनेक रूपों में हमे दिखाई देती है। जैसे
- प्रधानमंत्री की गद्दी एक है, और उसे चाहने वाले अनेक प्रत्याशी है।
- पाकिस्तान एक है। अमेरिका की पाकिस्तान से अपने कुछ अपेक्षायें है, चीन के कुछ ओर, भारत की कुछ ओर, तालिबान की कुछ ओर, और पाकिस्तान के खुद भी कुछ इच्छायें हैं।
- पारिवारिक स्तर पर भी बेटे से मां और बाप की अपेक्षाओं में मतभेद हो जाता है। बाप चाहता है कि बेटा इंजीनोयर बने, और बेटा डाक्टर बनना चाहे।
- अयोध्या एक है, और उस पर हक जमाने वाले अनेक समुदाय हैं।
- मैं चाहता हूं कि शरीर स्वस्थ रहे, और शरीर स्वास्थ ना होने की अपस्था में है।
- कम्पनियों में किस प्रकार से आमदनी ज्यादा हो इस बारे में मलिकों की विचारधाराओं में संघर्ष हो सकता है।
हम विचार करें तो देखेंगे यह एक मूलभूत समस्या है इस दुनिया में। एक ही वस्तु पर लोगो की नाना प्रकार की अपेक्षायें हो सकती हैं, और इसका देखो तो मूलतः कोई समाधान नहीं है - क्योंकि सबकी अपेक्षायें अलग अलग दिशाओं में है।
अतः यह निष्कर्ष निकला : जहां जहां लोभ है, इच्छा है, अपेक्षायें हैं, वहां वहां लङाई है, झगङा है।
एक सीधा समाधान तो यह है कि जिस चीज के बिना हमारा काम चल सकता है, उसकी इच्छा को हम छोङ सकते है - तो ये झगङा खतम। और हम इसी में खुशी मानले कि हमारी इच्छा के त्याग से दूसरे को तो खुशी मिल गयी। शायद ऐसा करने से आधे से ज्यादा झगङे समाप्त हो जाये। हम संसारी लोगो के लिये तो ऐसा कर ही सकते हैं।
अगले स्तर पर साधू होते हैं जो सारी ही इच्छाओं को जीत लेते हैं, और सारे झगङो से दूर हो जाते हैं।
कुछ दिनो बाद मैं अपने शहर सहारनपुर आया और वहां भी एक घटना देखी। एक वुढ़िया रोटी दूध में डालकर एक कमजोर कुत्ते के लिये लायी। और उसने दूध में डूबी रोटी नीचे फ़र्श पर कुत्ते के लिये डाली। और तभी एक दूसरा ताकतवर कुत्ता दूर से भौंकते और गुर्राते हुवे आया, और उससे डरके कमजोर कूत्ता दूर भागने लगा। ताकतवर कुत्ता आके वह रोटी खाने लगा। बुढिया ने ताकतवर कुत्ते को धमकाया, मगर उसे इसका कोई असर नहीं पढ़ा। वो पूरी रोटी खा गया, और बुढ़िया दुखी होकर चली गयी। अब मैने समझा कि नैतिकता की कमी मात्र लंगूरो में ही नहीं बाकी जानवरो में भी है।
कुछ दिनो बाद और विचार आये तो ऐसा लगा कि यह अनैतिकता और भी जगह है - मात्र जानवरों में ही नहीं मनुष्यों में भी है। समाज में कोई अध्यक्ष की पदवी हो तो उसमें भी एक व्यक्ति दूसरे को हटाने के लिये और कुर्सी पाने के लिये अनेक दुष्कर्म करता है।
दुनिया में वस्तुयें तो सीमित हैं, और लोगो की इच्छायें असीम हैं, अतः यह समस्या सारी जगह है।
एक ही वस्तु की इच्छा जब दो या दो से अधिक लोग कर लेते हैं, तो समस्या हो जाती है। उसमें उन लोगो में संघर्ष शुरु हो जाता है क्योंकि वस्तु तो एक को ही मिल सकती है।
यह समस्या अनेक रूपों में हमे दिखाई देती है। जैसे
- प्रधानमंत्री की गद्दी एक है, और उसे चाहने वाले अनेक प्रत्याशी है।
- पाकिस्तान एक है। अमेरिका की पाकिस्तान से अपने कुछ अपेक्षायें है, चीन के कुछ ओर, भारत की कुछ ओर, तालिबान की कुछ ओर, और पाकिस्तान के खुद भी कुछ इच्छायें हैं।
- पारिवारिक स्तर पर भी बेटे से मां और बाप की अपेक्षाओं में मतभेद हो जाता है। बाप चाहता है कि बेटा इंजीनोयर बने, और बेटा डाक्टर बनना चाहे।
- अयोध्या एक है, और उस पर हक जमाने वाले अनेक समुदाय हैं।
- मैं चाहता हूं कि शरीर स्वस्थ रहे, और शरीर स्वास्थ ना होने की अपस्था में है।
- कम्पनियों में किस प्रकार से आमदनी ज्यादा हो इस बारे में मलिकों की विचारधाराओं में संघर्ष हो सकता है।
हम विचार करें तो देखेंगे यह एक मूलभूत समस्या है इस दुनिया में। एक ही वस्तु पर लोगो की नाना प्रकार की अपेक्षायें हो सकती हैं, और इसका देखो तो मूलतः कोई समाधान नहीं है - क्योंकि सबकी अपेक्षायें अलग अलग दिशाओं में है।
अतः यह निष्कर्ष निकला : जहां जहां लोभ है, इच्छा है, अपेक्षायें हैं, वहां वहां लङाई है, झगङा है।
एक सीधा समाधान तो यह है कि जिस चीज के बिना हमारा काम चल सकता है, उसकी इच्छा को हम छोङ सकते है - तो ये झगङा खतम। और हम इसी में खुशी मानले कि हमारी इच्छा के त्याग से दूसरे को तो खुशी मिल गयी। शायद ऐसा करने से आधे से ज्यादा झगङे समाप्त हो जाये। हम संसारी लोगो के लिये तो ऐसा कर ही सकते हैं।
अगले स्तर पर साधू होते हैं जो सारी ही इच्छाओं को जीत लेते हैं, और सारे झगङो से दूर हो जाते हैं।
Monday, February 1, 2016
अनुकूलता और प्रतिकूलता
एक कहानी:
मैने मन्दिर में एक ताई जी से सौ रूपये उधार लिये, और कहा कि एक हफ़्ते बाद लौटा दूंगा। १-२ दिन बाद मन में हुआ कि लौटाना ना पङे तो ज्यादा अच्छा। मन्दिर तो रोज जाता था और ताई जी मिलती थी। अब रूपये लौटाने का मन नहीं था तो मैने आंखे बचाना शुरू कर दी। जब भी ताई जी को देखता तो इधर उधर हो लेता। और मन में ही डर और थोङी चिन्ता भी शुरू हो गयी- अगर ताई जी ने मुझे देख लिये और पैसे मांगे तो क्या जवाब दूंगा? अगर ताई जी ने किसी और को ये बात बता दी तो क्या होगा?
मेरा एक दूसरा मित्र भी था, उसने भी ताई जी से पैसे उधार लिये और एक हफ़्ते का वायदा किया और २ दिन में ही लौटा दिया।
अब ये ही बात जीवन में लागू होती है। हम दूसरो को दुख देते हैं, और जब उसका फ़ल हमें मिलता है तो उससे डरते हैं, और चिन्तित होते हैं। जबकि ज्ञानी लोग फ़ल को सहर्ष रूप से स्वीकार करने को तैयार रहते हैं, जैसा कि मेरे मित्र ने किया।
होना तो यह चाहिये कि हम प्रतिकूलताओं को आने दें क्योंकि वे हमारे पुराने कर्मो के आधार पर ही आ रहें है, जबकि हम उनसे चिन्तित हो जाते हैं, और डरने लगते हैं।
दुनिया में उसे बहादुर कहते हैं जो प्रतिकूलताओं से लङकर उन्हे अनुकूलता में बदल दे, मगर वास्तविकता में तो बहादुर वह है जो प्रतिकूलता होने पर भी अपने मन को सम्भाल ले।
इसलिये कहते हैं:
⦁ जब किसी से पैसे लिये है तो वापस करने पङेंगे - ऐसे ही जब किसी को दुख दिया तो दुख झेलना भी पङेगा।
⦁ प्रतिकूलता को समता से सहे बगैर परमात्मा के शासन में जाना संभव नहीं।
⦁ कष्टसहिष्णु बनो।
मैने मन्दिर में एक ताई जी से सौ रूपये उधार लिये, और कहा कि एक हफ़्ते बाद लौटा दूंगा। १-२ दिन बाद मन में हुआ कि लौटाना ना पङे तो ज्यादा अच्छा। मन्दिर तो रोज जाता था और ताई जी मिलती थी। अब रूपये लौटाने का मन नहीं था तो मैने आंखे बचाना शुरू कर दी। जब भी ताई जी को देखता तो इधर उधर हो लेता। और मन में ही डर और थोङी चिन्ता भी शुरू हो गयी- अगर ताई जी ने मुझे देख लिये और पैसे मांगे तो क्या जवाब दूंगा? अगर ताई जी ने किसी और को ये बात बता दी तो क्या होगा?
मेरा एक दूसरा मित्र भी था, उसने भी ताई जी से पैसे उधार लिये और एक हफ़्ते का वायदा किया और २ दिन में ही लौटा दिया।
अब ये ही बात जीवन में लागू होती है। हम दूसरो को दुख देते हैं, और जब उसका फ़ल हमें मिलता है तो उससे डरते हैं, और चिन्तित होते हैं। जबकि ज्ञानी लोग फ़ल को सहर्ष रूप से स्वीकार करने को तैयार रहते हैं, जैसा कि मेरे मित्र ने किया।
होना तो यह चाहिये कि हम प्रतिकूलताओं को आने दें क्योंकि वे हमारे पुराने कर्मो के आधार पर ही आ रहें है, जबकि हम उनसे चिन्तित हो जाते हैं, और डरने लगते हैं।
दुनिया में उसे बहादुर कहते हैं जो प्रतिकूलताओं से लङकर उन्हे अनुकूलता में बदल दे, मगर वास्तविकता में तो बहादुर वह है जो प्रतिकूलता होने पर भी अपने मन को सम्भाल ले।
इसलिये कहते हैं:
⦁ जब किसी से पैसे लिये है तो वापस करने पङेंगे - ऐसे ही जब किसी को दुख दिया तो दुख झेलना भी पङेगा।
⦁ प्रतिकूलता को समता से सहे बगैर परमात्मा के शासन में जाना संभव नहीं।
⦁ कष्टसहिष्णु बनो।
Are we drawing lines in water?
Insightful story:
A baby is born - he studies and gets the job and works hard for the rest of his life sincerely. He get married and have kids. He loves his wife and kids and takes care of them with utmost sincerity.
Now he is on his death bed and can leave anytime. He asks the Mother Nature - "I am going to die soon. I have worked with honesty and sincerity my whole life. I love my children and I nurtured them with my best efforts. Now I am going to leave. Is this not your injustice that you do not allow me to take my wealth, wife and children along with me in my next birth?"
The Mother Nature replies - "If you draw lines in water to make a beautiful picture, you will fail. This is not the nature of water to hold your drawings. Similarly the transient nature of life does not let any associations’ lasts forever in the cycle of birth and death. Your desire to let them be permanent is because of your ignorance."
Therefore we need to think - Are we drawing lines in water?
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