अज्ञानी के संसारिक लक्ष्य
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ज्ञानी की संसारिक लक्ष्य
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* अज्ञानी यह
आसक्ति करता, कि ’मुझे यह
चाहिये’।
* जो चीजे
उसकी पूर्ति में लाभ करती है, उससे राग करता है और जो नहीं करती उससे द्वेष करता है।
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* ज्ञानी यह
विचार करता है, कि यह
स्थिति मेरे लिए अनुकूल है, और नहीं मिली तो प्रतिकूल।
* ज्ञानी अनुकूल के
लिए पुरूषार्थ करता है।
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* अज्ञानी की
लक्ष्य के प्रति आसक्ति बहुत है। अगर उसे नहीं मिलता तो खेद करता है। अगर मिलता
है तो बहुत खुश होता है।
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* ज्ञानी की
लक्ष्य के प्रति राग है,
मगर आसक्ति नहीं। मिले या ना मिले उसे स्वीकार करता है और
उसमें राग-द्वेष नहीं करता।
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* अज्ञानी कर्म
और पुरूषार्थ के समन्वय को नहीं जानता
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* ज्ञानी
पुरूषार्थ करता है और परिणाम को ’कर्म और पुरूषार्थ’ पर छोङ देता है।
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Monday, August 18, 2014
Worldly goals
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