Wednesday, June 22, 2016

NeeyamSagar Maharaj Ji ke liye- unko aahaar daan ke saubhagya me:

आज मेरे घर कोई आया,
नाम मालूम नहीं,
कोई ज्ञानी कहता है, कोई अहिंसा, कोई समता।

मेरे पास दो आंखे हैं,
एक अच्छा देखती है, और एक बुरा
मगर उसकी तो एक ही आंख थी - समता।

मैंने सुरक्षा के लिये घर लिया, मगर मैं तो घर के बन्धन में ही पङ गया।
और वो घर को ही छोङ दिया।

इस दुनिया में सबसे सुलभ है- राग।
हम सब जैसे Fevicol से हो गये हैं. जो मिला उससे चिपक गये।
मगर वो, सबसे अलग - अचिपक।

हम जोङ लेते हैं, अपने को बहुतो से
शरीर से, परिवार से, समाज से, धन से, देश से,
मगर वो अजोङ, और इसलिये बेजोङ।

जब चले तो जीव रक्षा,
जब ठहरे तो ऐसा ठहरे
कि मन भी ठहर जाये।

जब हम इच्छा करते हैं, तो उसकी जो मेरा शाश्वत कभी हो नहीं पाया।
तब वो इच्छा करते हैं, उस अनिच्छा की- जो कभी मुझे समझ नहीं आया।

वो वीर मैं कायर।
वो दीपक मैं अन्धकार
वो क्षमा, मैं गुस्सा
वो मृदु, मैं कठोर
वो सरल, मैं टेढ़ा
वो सन्तोष, मैं लालच
वो दया, मैं दानव
वो अपने में रमने वाले राम, मैं विषयों में रचा-पचा रावण
वो शुक्ल, मैं कृष्ण
वो पवित्र, मैं कीचङ
वो गुरू, मैं शिष्य भी नहीं।
वो लोकोत्तम, मैं अधम
वो मंगल, मैं रहा संसार में गल।
वो सब कुछ, मैं कुछ भी नहीं।

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