तीन लोक के अध्ययन से हमें फ़ायदे:
पूजन करते समय फ़ायदा:
१) अब हमें मालूम है कि ७२० तीर्थंकर या विदेह के २० तीर्थंकर भगवान के अर्घ हैं, तो कहां कहां वे तीर्थंकर होते हैं। और अर्घ्य चढ़ाते हुये हम अपने मन से वहां पहुंच सकते हैं।
२) समुच्चय महार्घ्य में तीन लोक के कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्याल्य में- पंच मेरू के चैत्यालय, नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यालय, उर्ध्व, अधो, मध्य लोक के चैत्यालय कहां कहां है। ताकि हम अपना मन वहां ले जाकर उन्हे अर्घ्य दे सकें।
३) समुच्चय महार्ध्य में सब हम वर्तमान के अरहन्त, सिद्ध, साधु को अर्घ चढ़ाते हैं - तो हमे मालूम हो गया कि ढ़ाई द्वीप में अरहन्त कहां कहां होते हैं, सिद्ध कहां कहां होते हैं, साधू कहां कहां होते हैं।
४) जब हम कहते हैं- ’अरहंता लोगुत्त्मा’ अर्थात ’अरहंत तीन लोक में उत्तम है’ तो हमें तीन लोक के जीवो को समझने से यह स्पष्ट हो गया कि अरहंत ही तीन लोक में उत्तम कैसे हैं।
५) ऐसे ही अनेको फ़ायदे पूजन करते समय होंगे।
स्वाध्याय करते समय फ़ायदे:
१) प्रथमानुयोग पढ़ते समय जब अनेक भूमियों, समुन्द्रो, भोगभूमियों का वर्णन आयेगा, तो आपको पता होगा कि वे कहां है।
२) द्रव्यानुयोग, करणानुयोग पढ़ते वक्त जब आप तत्व पढेंगे, तो वो सारे तत्व सम्पूर्ण तीन लोक में सत्य है यह विशेष रूप से समझ में आयेगा।
तत्व चिन्तन/ध्यान करते समय फ़ायदे:
१) जब शास्त्र में बतायेंगे: ’सारे संयोग नश्वर हैं’- तो हम पूरे तीन लोक को दृष्टि में लेकर सोच सकेंगे और एक दम स्पष्ट समझ में आयेगा कि वास्तव में सारे संयोग नश्वर ही हैं।
२) जब शास्त्र में बतायेंगे: ’मेरा कोई नहीं’ - तो हम पूरे तीन लोक को दृष्टि में लेकर सोच सकेंगे कि वास्तव में मेरा तीन लोक में किसी स्थान विशेष में या काल विशेष में ना कोई मेरा था, है और होगा।
३) जब पूजा में हम पढते हैं ’शान्ति करो सब जगत में, चौबीसो भगवान’ - तो हमारी भावना अपने देश और पूरे तीन लोक के चारो गतियों के जीवो को समाहित कर लेगी।
३) ऐसी ही सारे तत्व की बाते(बारह भावना) तीनो लोको पर घटाने से विशेष विशुद्धि हमारी बनेगी।
वैराग्य की उत्पत्ति में फ़ायदा:
१) जब तक तीन लोक नहीं जाने तो यह भी कोई सोच सकता है ’क्या पता मोक्ष के अलावा भी कहीं शाश्वत सुख हो’ अथवा ’क्या पता कोई ऐसा विषय सुख होता हो जो हमेशा अपने साथ रहे’। यह संशय टूट जाते हैं, जब तीन लोको के बारे में स्पष्टिकरण हो जाता है।
२) सम्पूर्ण तीन लोक को जानने पर संसार से छुटने का मन, और मोक्ष प्राप्त करने का मन सहज होने लगता है।
मुनि महाराज जी भी संस्थान विचय में लोक का ध्यान, और बारह भावना की लोक भावना भाते हुये तीन लोक का चिन्तवन करते हुये अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं।
ऐसे ही तीन लोक को जानने से मनन करने से हमारा दृष्टिकोण विकसित हुआ, और हमें अनेक जगह इसका लाभ होगा।
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