Wednesday, June 16, 2010

Shastra Mangalacharan

ओं जय जय जय। नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु।
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं,
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥

ओंकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः |
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः ||
अविरल-शब्द धनोद्य प्रक्षालित सकल भूतल मल-कलंका।
मुनिभिरुपासित-तीर्था सरस्वती हरतु नो दुरितान्‌
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकयाः ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
श्री परम गुरवे नमः। परंपराचार्य श्री गुरुवे नमः ।
सकल कलुष विध्वंसकं, श्रेयसां परिवर्धकं, धर्म-समबन्धकं,
भव्य-जीव-मन: प्रतिबोध-कारकमिदं शास्त्रं
श्री रत्नकरण्डक श्रावकाचारं नामधेयं, अस्य मूलग्रन्थकर्तारः
श्री सर्वज्ञदेवास्तदुत्तर-ग्रन्थ-कर्तारः श्री गणघर-देवाः
प्रतिगणधरदेवास्तेषां वचनानुसारमासाद्ये श्री समन्त्रभद्राचार्येण
विरचितं, सर्वे श्रोतारः सावधानतया श्रण्वंतु।

मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी ।
मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलं ॥
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शास्त्र पठन में मेरे द्वारा यदि जो कहीं कहीं
प्रमाद से कुछ अर्थ वाक्य पद मात्रा छूट गयी
सरस्वती मेरी उस त्रुटी को कृपया क्षमा करे
और मुझे कैवल्यधाम में माँ अविलम्ब धरे
वंचित फल दात्री चिंतामणि सादृश मात तेरा
वंदन करने वाले मुझको मिले पता मेरा
बोधी समाधी विशुद्ध भावना आत्मसिद्धि मुझको
मिले और में पा जाऊ माँ मोक्षमहा सुख को
जा वाणी के ज्ञान से सूजे लोकालोक ।
सो वाणी मस्तक नमो सदा देत हूं धोक ॥

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