Saturday, February 20, 2010

Poem - प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है

इस अनन्त संसार में, अपना दिखे ना कोय

अपनेपन को पाने हेतु, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


अनेक दिशायें दिखाईं देती, सत्य जाने भाग्यशाली कोय

सत्य मार्ग पता करने को, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


परिवार यात्रा पर्यटन यात्रा, संसार यात्रा छोङी ना कोय

अब आखिरी यात्रा करने के लिये, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


प्रभु तुम ना मिले अभी तक, ना कुन्दकुन्द ना वर्णी जी

ज्ञानियों का अकाल मिटाने को, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


तर्को वितर्को के तीरो ने, मेरा सीना विदीर्ण कर डाला है

अब सत्य के मरहम लगाने को, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


यह विरह अब सही नहीं जाती, तुम तक रस्ता दिखाई पङता नहीं

अज्ञान की जंजीरे तोङ कर, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


अब तो दरश दे दो प्रभुवर, अब तो मुझे शरण दे दो प्रभुवर

तुम्हारे चरणो मे रहने, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।


हे सीमंधर। हे वीर प्रभू। हे चौबीसो जिन। हे बीस प्रभु।

अनन्त काल के पाप लिये, ये पथिक तुम नाम तक पहुंचा है अब

अब महायात्रा जो तुमने बतायी, उस पर चलने का मन करता है

तुम आशिर्वाद पाने को, प्रभु तुमसे मिलने का मन करता है।

1 comment:

P said...

Very very nice !!!

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