ना मात मेरी, ना पिता मेरा, ना पत्नी मेरी ना ये घर
पूत मेरा ना, ना ये सामान, सबसे अलग मेरा घर ।
ना दुकान, ना घोङे गाङी, ना मित्र ना समाज
ना मरता ना जीता मैं, किसी के ना आऊं काज ।
ना मैं छोटा, ना मैं बङा, ना मैं उंचा ना नीचा
ज्ञान मात्र ही मेरी सीमायें, वही अस्तित्व है मेरा ।
ना मैं काला ना मैं गोरा, ना कमजोर ना बलवान
ना वात पित्त कफ़, इन सबसे भिन्न मैं भगवान ।
ना मैं भारतीय, ना अमेरिकी, ना पता कोई मेरा
ना कोई घर है ना मकान, ज्ञान ही सर्वस्व मेरा ।
ना कोई झगङा, ना कोई प्रेम, ना मेरा कोई मतभेद
ना प्रतिस्पर्धा, ना ग्लानि, ना मेरा लेन और देन ।
ना प्रेम है, ना घृणा है, ना कर्ता ना भोक्ता
ज्ञान लम्बाई, ज्ञान चोङाई, ज्ञान जितना ही मोटा ।
दुनिया रहे दुनिया में, ज्ञान रहे ज्ञान में
ज्ञान रहे सदा एक प्रमाण, वो मैं त्रिकाल घाम।
Wednesday, December 2, 2009
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इच्छा और अपेक्षा
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