Wednesday, November 14, 2007

Gunasthaan (गुणस्थान)

गुणस्थान

व्याख्या

व्याख्या

1 मिथ्यात्व

प्रकार: एकान्त, विपरीत, विनय, संशय, अज्ञान

लक्षण= धर्म अच्छा नहीं लगता: प्रकार:

· वस्तुस्वभाव एवं आत्मा शुद्ध स्वभाव

· उत्तम क्षमादि धर्म

· रत्नत्रय

· दया

2 सासादन

पारिणामिक भाव =

· दर्शन मोह की अपेक्षा नही।

· अनन्तानुबन्धी कषायो मे से एक के आ जाने पर यह गुणस्थान होता है।


अविरत से गिरते हुए ये होता है।

इसमे अतत्वश्रद्धान अव्यक्त, तथा st गुणस्थान मे व्यक्त होता है।

3 मिश्र

क्षायोशमिक भाव =

· मिथ्यात्व प्रकृति के सर्वघाति स्पर्धको क उदयाभाव रूप क्षय

· मिश्र प्रकृति का उदय

· अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं

मिश्र प्रकृति के उदय से मिश्ररूप परिणाम होते हैं।

इस गुणस्थान मे मरण नहीं होता।

इस गुणस्थान मे मरणान्तिक समुद्घात नहीं होता।

4 अविरत

उपशम, क्षयोपशम, क्षय

क्षायोशमिक (वेदक)=

· अनन्तानुबन्धी का अप्रशस्तोपशम अथवा विसंयोजन (अनन्तानुबन्धी का प्रशस्तोपशम नहीं होता)

· मिथ्याव, मिश्र प्रशस्त या अप्रशस्त उपशम या क्षयोन्मुखता(क्षय के सन्मुख) होने पर

· सम्यक्तव का उदय

· सम्यक्तव का वेदन करता है, इसलिये वेदक भी कहते हैं।

· दोष =

· . चल(चलायमान, चंचल),

· . मल(शंका),

· . अगाङ(सम्यक्त्व मे शिथिलता)

उपशम = प्रकृतियों का उपशम

क्षायिक = प्रकृतियों का क्षय

5 देशविरत

क्षायोशमिक भाव = चारित्रमोह की अपेक्षा

6 प्रमत्तविरत

क्षायोशमिक भाव = चारित्रमोह की अपेक्षा

संज़्वलन, नोकषाय के उदय से संयम मे मल उत्पन्न करने वाला प्रमाद भी होता है।

व्यक्त और अव्यक्त दोनो प्रकार से प्रमाद करता है।

रहने का उत्कृष्ट समय = अंतर्मुहूर्त

प्रमाद(१५) = स्त्रीकथा, भक्त कथा, राष्ट्र कथा, अवनिपाल कथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा, प्रणय

7 अप्रमत्तविरत

क्षायोशमिक भाव = चारित्रमोह की अपेक्षा

अधःकरण : उपर समयवर्ती जीवो के परिणाम, नीचे समय वाले जीवो के समान होते है, और असमान भी होते हैं।

Total परिणाम = अनंख्यात लोकप्रमाण

अनुकृष्टी रचना इस गुणस्थान मे होती है।

8 अपूर्वकरण

उपशम श्रेणी

औपशमिक भाव=चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

क्षायिक श्रेणी

क्षायिक भाव =चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

अपूर्वकरण : उपर समवर्ती जीवो के परिणाम, नीचे समय वाले जीवों के नहीं होते।

9 अनिवृत्तिकरण

औपशमिक भाव=चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

क्षायिक भाव =चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

अनिवृत्तिकरण :

Time: अधःकरण > अपूर्वकरण >अनिवृत्तिकरण

परिणाम: अपूर्वकरण > अधःकरण >अनिवृत्तिकरण

No of समय = No of परिणाम

- हर समय का परिणाम निश्चित होता है।

- इस गुणस्थान मे पूर्वस्पर्धक से अपूर्वस्पर्धक, बादरकृष्टी, सूक्ष्मकृष्टी की रचना होती हैं, जिनका उदय १०वें गुणस्थान मे होता है।

- अनुभाग : पूर्वस्पर्धक > अपूर्वस्पर्धक > बादरकृष्टी > सूक्ष्मकृष्टी

10 सूक्ष्मसाम्पराय

औपशमिक भाव=चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

क्षायिक भाव =चारित्रमोह की २१ प्रकृति का उपशम

-सूक्ष्म राग = लोभ कषाय से युक्त है।

11 उपशान्त मोह

औपशमिक भाव=चारित्रमोह की समस्त प्रकृति का उपशम

NA

12 क्षीण मोह

NA

क्षायिक भाव =चारित्रमोह की समस्त प्रकृति का उपशम

13 संयोग केवली

14 अयोग केवली

१८००० शील के भेदो के स्वामी हैं =

योग, करण, संज्ञा, इन्द्री, १० पृथ्वीकायादि जीव, १० धर्म: ****१०*१० = १८०००

गुणश्रेणी निर्जरा: (सातिशय मिथ्यादृष्टी = करण लब्धी में अपूर्वकरण परिणाम)

मिथ्यात्व दशा < सातिशय मिथ्यादृष्टी < गुणस्थान < गुणस्थान < गुणस्थान < अनंतानुबन्धी का विसंयोजन करने वाला <दर्शनमोह क्षय करने वाला < कषाय उपशम करने वाला करण में < ११ गुणस्थान < कषाय क्षय करने वाला करण में < १२ गुणस्थान < समुद्घात रहित केवली < समुद्घात सहित केवली

(उपर्युक्त मे असंख्यात गुणा निर्जरा बड्ती चली जाती है।)

निर्जरा का समय संख्यात गुणा घटता चला जाता है।

सुख के लिये क्या क्या करता है।

संसारी जीव:  सोचता है विषयो से सुख मिलेगा, तो उसके लिये धन कमाता है। विषयो को भोगता है। मगर मरण के साथ सब अलग हो जाता है। और पाप का बन्ध ओर ...