Tuesday, October 1, 2019

मेरा कल्पनायें

 मेरा कल्पनायें  वास्तविकता
 विषय सामग्री के मिलने पर मैं सुखी हूं। और ना मिलने पर मैं दुखी  कषाय रहित होने में मैं सुखी, सहित होने पर मैं दुखी
 धन होने पर मैं सुखी, दरिद्र होने पर मैं दुखी same as above 
 मान होने पर मैं दुखी, मान ना मिलने पर या अपमान होने पर मैं दुखी same as above
 ये व्यक्ति अच्छा है, ये बुरा है (इष्ट अनिष्ट बुद्धि)  ना कोई अच्छा, ना कोई बुरा
 यह कार्य मैने ही किया  कई निमित्तो से मिलकर कार्य हुआ
 यह वस्तु को मैने भोगा
 संयोगी अवस्था को अपना माना। उसमें इष्ट अनिष्ट पना मानना। मैं रंक, राजा, पदाधिकारी, रागी, द्वेषी आदि।  मैं मैं हूं, संयोग तो अनेक द्रव्यो से मिली जुली पर्याय है
 Expectations ना पूर्ण होने पर दुखी, पूरी होने पर सुखी

 Expectations ना होने पर सुखी
 न्याय मिलने पर सुखी, अन्याय पर दुखी

कर्म सिद्धान्त की दॄष्टि से सब कुछ ही न्याय है 
ऐसा लगता है कि ये धन, सम्बन्धी हमेशा मेरे साथ रहने वाले हैं

सारे संयोग अनित्य हैं
मुसीबत में ये मित्र ही मेरी शरण हैं

दुनिया में कोई भी मेरी शरण नहीं

सुख के लिये क्या क्या करता है।

संसारी जीव:  सोचता है विषयो से सुख मिलेगा, तो उसके लिये धन कमाता है। विषयो को भोगता है। मगर मरण के साथ सब अलग हो जाता है। और पाप का बन्ध ओर ...